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राहुल दयाल श्रीवास्तव, एक शोध-प्रधान विचारक, लेखक और समाज-संवेदनशील विश्लेषक हैं, जो भारतीय सभ्यता, इतिहास, संस्कृति और जनसांख्यिकीय परिवर्तनों पर दीर्घकालिक अध्ययन करते रहे हैं। उनका कार्य क्षेत्र केवल लेखन तक सीमित नहीं, बल्कRead More...
राहुल दयाल श्रीवास्तव, एक शोध-प्रधान विचारक, लेखक और समाज-संवेदनशील विश्लेषक हैं, जो भारतीय सभ्यता, इतिहास, संस्कृति और जनसांख्यिकीय परिवर्तनों पर दीर्घकालिक अध्ययन करते रहे हैं। उनका कार्य क्षेत्र केवल लेखन तक सीमित नहीं, बल्कि सामाजिक व्यवहार, सांस्कृतिक परिवर्तन, धार्मिक अध्ययन और राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों को भी गहराई से समेटता है।
बचपन से भारतीय इतिहास और परंपराओं के प्रति रुचि रखने वाले राहुल दयाल श्रीवास्तव ने वर्षों तक विभिन्न स्रोतों, ग्रंथों, शोध, रिपोर्टों और आधुनिक अकादमिक अध्ययनों का तुलनात्मक विश्लेषण किया है। परिणामस्वरूप यह पुस्तक एक गहन और संतुलित दृष्टिकोण प्रदान करती है, जिसमें सांस्कृतिक चुनौतियों के वास्तविक तंत्र और उनके समाधान का स्पष्ट विश्लेषण मिलता है।
लेखक का मानना है कि सभ्यता की रक्षा केवल धर्म से नहीं—बल्कि शिक्षा, अर्थशास्त्र, परिवार, मीडिया, डिजिटल दुनिया और बौद्धिक नेतृत्व के संगम से होती है। यही कारण है कि उनकी लिखावट प्रामाणिक, प्रमाण-आधारित और गहराई से शोधित होती है।
यह पुस्तक विशेषतः उन पाठकों के लिए है जो भारतीय संस्कृति, सभ्यता, समाज और भविष्य को लेकर सजग हैं और वैचारिक स्पष्टता की तलाश में रहते हैं। लेखक की दृष्टि है—
“एक जागृत समाज ही सभ्यता को बचाता है—और एक संगठित समाज ही भविष्य बनाता है।”
“क्या हिंदू क़ौम ज़िंदा रहेगी?” एक ऐसी महत्वपूर्ण पुस्तक है जो भारत की सांस्कृतिक चेतना, जनसांख्यिकीय परिवर्तनों, वैचारिक संघर्षों और सभ्यता के भविष्य पर गंभीर प्रश्न उठात
“क्या हिंदू क़ौम ज़िंदा रहेगी?” एक ऐसी महत्वपूर्ण पुस्तक है जो भारत की सांस्कृतिक चेतना, जनसांख्यिकीय परिवर्तनों, वैचारिक संघर्षों और सभ्यता के भविष्य पर गंभीर प्रश्न उठाती है। यह पुस्तक बताती है कि हिंदू समाज किन ऐतिहासिक, राजनीतिक, शैक्षणिक, आर्थिक और डिजिटल चुनौतियों से गुजर रहा है—और इनके समाधान कहाँ छिपे हैं।
पुस्तक में मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण, शिक्षा में पक्षपात, वोकिज़्म, धर्मांतरण, जनसंख्या असंतुलन, डिजिटल ब्रेनवॉश, मीडिया नैरेटिव, न्यायिक असमानता, इतिहास का विकृतिकरण, वैश्विक हिंदू पहचान और भविष्य की रणनीति जैसे विषयों पर तार्किक, शोध-आधारित और प्रमाणिक विश्लेषण प्रस्तुत है।
यह पुस्तक केवल समस्याएँ नहीं बताती—यह समाधान, नीतियाँ, व्यावहारिक कदम और 100-वर्षीय Hindu Civilizational Vision भी प्रदान करती है।
यह उन सभी पाठकों के लिए आवश्यक है जो भारत के सांस्कृतिक भविष्य, समाज की मजबूती और सनातन सभ्यता की निरंतरता को लेकर गंभीर हैं।
“क्या हिंदू क़ौम ज़िंदा रहेगी?” एक ऐसी महत्वपूर्ण पुस्तक है जो भारत की सांस्कृतिक चेतना, जनसांख्यिकीय परिवर्तनों, वैचारिक संघर्षों और सभ्यता के भविष्य पर गंभीर प्रश्न उठात
“क्या हिंदू क़ौम ज़िंदा रहेगी?” एक ऐसी महत्वपूर्ण पुस्तक है जो भारत की सांस्कृतिक चेतना, जनसांख्यिकीय परिवर्तनों, वैचारिक संघर्षों और सभ्यता के भविष्य पर गंभीर प्रश्न उठाती है। यह पुस्तक बताती है कि हिंदू समाज किन ऐतिहासिक, राजनीतिक, शैक्षणिक, आर्थिक और डिजिटल चुनौतियों से गुजर रहा है—और इनके समाधान कहाँ छिपे हैं।
पुस्तक में मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण, शिक्षा में पक्षपात, वोकिज़्म, धर्मांतरण, जनसंख्या असंतुलन, डिजिटल ब्रेनवॉश, मीडिया नैरेटिव, न्यायिक असमानता, इतिहास का विकृतिकरण, वैश्विक हिंदू पहचान और भविष्य की रणनीति जैसे विषयों पर तार्किक, शोध-आधारित और प्रमाणिक विश्लेषण प्रस्तुत है।
यह पुस्तक केवल समस्याएँ नहीं बताती—यह समाधान, नीतियाँ, व्यावहारिक कदम और 100-वर्षीय Hindu Civilizational Vision भी प्रदान करती है।
यह उन सभी पाठकों के लिए आवश्यक है जो भारत के सांस्कृतिक भविष्य, समाज की मजबूती और सनातन सभ्यता की निरंतरता को लेकर गंभीर हैं।
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