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"It was a wonderful experience interacting with you and appreciate the way you have planned and executed the whole publication process within the agreed timelines.”
Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Pal
प्रेम अंतरिक्ष में बने ब्लैक-होल जैसा ही है। जहाँ पड़ कर इंसान अपना अतीत, भविष्य और वर्तमान खो देता है। वहाँ पड़े तारों की तरह प्रेमी भी हर पल टूटता ही रहता है। तारों के टूटने से आ
प्रेम अंतरिक्ष में बने ब्लैक-होल जैसा ही है। जहाँ पड़ कर इंसान अपना अतीत, भविष्य और वर्तमान खो देता है। वहाँ पड़े तारों की तरह प्रेमी भी हर पल टूटता ही रहता है। तारों के टूटने से आसमान में बड़ी हलचल तो होती है पर देखने वालों को वो कितनी तरलता का आभास देता है। ठीक वैसे ही प्रेम में भी होता है।
हमने प्रेम में पड़े लड़कों को देखा है, प्रेम में तड़पते युवाओं को देखा है, प्रेम पर हंसकर मज़ाक उड़ाते प्रौढ़ों को देखा है। लेकिन इस उपन्यास में प्रेम में पड़ कर तड़पते, कभी-कभी अपने प्रेम का मज़ाक उड़ाते पर फिर भी आख़िरी साँस तक अपनी प्रेमिका का इंतज़ार करते एक बूढ़े को हम देखेंगे।
किस तरह प्रेम अस्सी साल के बूढ़े को छब्बीस का नौजवान बना जाता है। किस तरह प्रेम में घट रहे द्वंद्व से, अंतर्द्वंद्व से बार बार सामना करवाता है। किस तरह अब तक जी गयी ज़िंदगी के चुनिंदे पलों को आँखों के सामने रख रखकर अनसुलझे सवालों के जवाब के लिए तड़पाता रहता है।
वहीं एक तरफ़ सब कुछ मौन ही देखने बाली ज़िंदगी होती है जो चुपचाप ही देखती रहती है कि व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक जीवन से प्रेम किस तरह से धीरे-धीरे प्रेमी को पृथक कर देता है। वो वक़्त आने पर दिखाने लगती है कि दुनिया किस तरह गिरगिट की तरह रंग बदलती है और भी उंगली दिखा-दिखा कर कहती है कि ये था गिरगिट, वो था गिरगिट, तू था गिरगिट, तेरी प्रेमिका थी गिरगिट। सब के सब गिरगिट थे, वक़्त आते ही तुम सब अपने रंग बदलने लगे। और वो अंत में ये तर्क प्रेमी के सामने रखती है कि अब फ़ायदा क्या है, अतीत पर रोने से या उसके बहाव में अपने वर्तमान को छेड़ने से?
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