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एक सरकारी अधिकारी के बंगाली परिवार में पले बढ़े हैं सुबोध । मध्य प्रदेश के कटनी शहर में बचपन बिता कर वो परिवार के साथ अम्बरनाथ, महाराष्ट्र चले आए थे । वहीं पर स्कूल और फिर आर्ट स्कूल की शिक्षा पूरी की । बचपन से ही रRead More...
एक सरकारी अधिकारी के बंगाली परिवार में पले बढ़े हैं सुबोध । मध्य प्रदेश के कटनी शहर में बचपन बिता कर वो परिवार के साथ अम्बरनाथ, महाराष्ट्र चले आए थे । वहीं पर स्कूल और फिर आर्ट स्कूल की शिक्षा पूरी की । बचपन से ही रचनात्मक कलाओं में सघन रुचि रखने वाले सुबोध की कला को निखारने में सर जे जे उपयोजित कला विद्यालय ने बड़ी मदद की ।
सदा कला में रमे रहनेवाले को विज्ञापन जगत ने अपने आप में समाहित कर लिया ।कई वर्ष विज्ञापन के जगत में गोते लगाते हुए सुबोध ने उपभोक्ताओं के मन में घर करना सीख लिया था।
अमूल, नेरोलैक, महिन्द्रा, सन्तूर आदि से सुबोध ने कहानी गढ़ना और कहानी प्रस्तुतीकरण को रोचक बनाना भी सीख लिया ।
सुबोध खुद चित्रकार होने की वजह से धीरे-धीरे उनकी लिखावट भी चित्रों की तरह उभरने लगी ।
अपने चित्रकला को कई बार इटली, फ्रान्स, मोरोक्को और अपने देश के विभिन्न प्रान्तों में प्रदर्शित करने के साथ साथ सुबोध अपनी काल्पनिक कहानियाँ लिखते रहे । ‘राहुला’ इनकी पहली प्रकाशित पुस्तक है।
गौतम बुद्ध को उनके पुत्र राहुला के दृष्टिकोण से देखने का ये बिलकुल नया प्रयास है राहुला ।
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राहुला तो यही सपने संजो कर बैठा था कि उसके पिता, राजकुमार सिद्धार्थ कपिलवस्तु अवश्य लौट आएंगे। राज करेंगे। और एक दिन राहुला का राज्याभिषेक भी करवाएंगे । परन्तु हाय! उसके सुनहरे
राहुला तो यही सपने संजो कर बैठा था कि उसके पिता, राजकुमार सिद्धार्थ कपिलवस्तु अवश्य लौट आएंगे। राज करेंगे। और एक दिन राहुला का राज्याभिषेक भी करवाएंगे । परन्तु हाय! उसके सुनहरे सपने चूर चूर हो गये जब उसने राज प्रासाद के द्वार पर आए उस भिक्षू को देखा जिसके बदन पर गेरुआ चीथड़े और हाथ में भिक्षा पात्र था । अम्मा यशोधरा ने कहा कि वही उसके पिता हैं !
यह कहानी उसी राहुला की है जिसके मन की बात कोई न जान सका क्योंकि सारा परिवार, सारा कपिलवस्तु बरसों बाद लौटे राजकुमार सिद्धार्थ में लीन हो गया था । तथागत बन गया था उनके आंखों का तारा सिद्धार्थ जिसका उपदेश सुनने को सारा देश उमड़ पड़ा था । एसे में राहुला की कौन सुनता? कौन पूछता उस से- क्यों? पिता को देख कर लजा गये का?
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