JUNE 10th - JULY 10th
नैना जब से अपनी मेडिकल की पढ़ाई अधूरी छोड़ इंडिया आई है जाने कैसी हो गई है, कभी घंटों ख़ला में निहारती रहती है, कभी नींद में चौंक कर बैठ जाती है , कभी बैठे बैठे सिसकियाँ भरने लगती है तो कभी बस , खोई खोई सी रहती है. उसके जिस्म के बाएं तरफ ने काम करना बंद कर दिया है। डॉक्टरों का कहना है कि गहरे सदमे की वजह से अक्सर ऐसा होता है। वह कभी रोती है, कभी हंसती है। कभी किसी गहरी अंधेरी शाम अकेले बैठे बैठे पुकारती है , " ऐड्रिक , नताल्या नोरा , इज़ाबेला , रोज़लीन साशा , कहाँ हो तुम ! आज हमें डैमिस्टर घाटी के कैनियन में उगी जड़ी बूटियां देखने चलना है , और सदर्नबग के छोरों पर पर फैले रेडॉन वाटर से बीमारियों का इलाज करना सीखना है! पर इससे पहले, समोवार गरमा चुका है आओ मोहब्बतों की चाय का लुत्फ़ उठायें " मानो आज की राख़ में दबे, गुज़िश्तां कल के चमकदार अंगारों की हिद्दत तलाश रही हो .... आहिस्ता आहिस्ता.....
उसने खुद से बाहर आने की कोशिश में रिमोट ले टीवी ऑन किया. युद्ध का छांछटवां दिन , वही भगदड़, वही आगज़नी , दिल दहला देने वाली आवाज़ें और वही पुतिन, वही ज़ैलेन्सकी ! इन दोनों के आपसी नज़रिये ने आधा रूस और पूरा यूक्रेन बर्बाद कर दिया था. किसी की नस्लें ज़मीनदोज़ थीं तो किसी की उम्र भर की कमाई। किसी की हसरतें तो किसी के ख्वाब। किसी की मोहब्बत और किसी का सुकून ! पर नैना !!!! इस लड़ाई में उसकी ज़िंदगी के ख्वाब बुनते तीन साल मलबे के ढेर के नीचे दब गए थे. तीन साल। तीन लम्बे साल , तीन दिलरुबा और होश रुबा साल ! वे साल कि जब जवानी की देहलीज़ पर करवटें लेती उमंगें कसमसा कर ख़्वाबों की बाहों में पनाह लेने लगती हैं। वे साल कि जब पहले पहल नज़रे इंसानियत जज़्बात तराशने लगती है , वे साल कि जब आदम के नन्हे नन्हे नौनिहाल मुहब्बतों के पर निकाल , जुगनुओं की दुनिया में उड़ना सीखते हैं। हाँ वही तीन साल, जबकि नस्ले इंसानी अपनी सबसे सुनहरी यादें बुनती है वही तीन साल तो दिए थे नैना ने ! जबकि उसने कीव मेडिकल यूनिवर्सिटी ऑफ़ यू ए एफ एम में दाखिला लिया था.
कीव. तीन लाख लोगों से आबाद ज़मीन का यह टुकड़ा क़ुदरत के दिलावेज़ करिश्मों का जैसे खज़ाना ही नहीं बल्कि यूक्रेन की राजधानी होने के नाते ज़िन्दगी के तमाम खुशनुमां रंगों से रोशन भी था. चमक तो जैसे क़ुदरत ने इस पर निसार होकर इसे ऐसे ही दे दी थी, " तोहफे में " .
जब वह पहली दफे एयरपोर्ट पर उतरी थी शाम का हसींन सूरज दिन के माथे पर अलविदा लिख डूबने को था। खेतों के दाहिने बाज़ू से आने वाली ठंडी , रेशमी हवा ने नैना के बालों को सहलाया था. कार हरी भरी घाटियों को तराश कर बनी, नागिन सी ज़मीन पर फैली, बलखाती स्याह सड़क पर उतर आई थी. रंग, खूबसूरती और सजावट की महारत ऐसी कि एक पल को नैना पलकें झपकाना भी भूल गई थी. उनकी कार कैम्पस से ज़रा फ़ासले पर सनोबरों के झुरमुट में छिपी एक सुर्ख इमारत के पास आ कर रुकी थी। इस इमारत की तीसरी मंज़िल पर उसका कमरा था. जिसके लैम्प की हल्की रोशनी में उसे अपनी पहली रूममेट की एक झलक मिली थी.नताल्या पेश्कोव। एक पल को लगा था, नीले स्वेटर में सुनहली अलकें फैलाये कोई जलपरी सोयी हो. बेपरवाह। ज़र्द रोशनी की मासूम छुअन से वह उठ बैठी थी. " एम नताल्या। वैतिंग फॉर यूं" वह मुस्कुरा कर गले लगी थी ,जब उसे पापा की हिदायत याद आई थी , " दु निया की सबसे खूबसूरत महिलाओं के देश में जा रही हो तुम. देखो !!! कभी उनसे अपनी तुलना मत कर बैठना। वे जितनी हसीन होती हैं , उनका दिल उससे भी ज़्यादा हसीन होता है. नताल्या ! नैना की आँखों से आंसू बह चले थे । जंग शुरू हुए पंद्रह दिन हो गए थे। खाने के सामान की कमी होनी चालू हो गई थी. एक शाम नताल्या स्टोर में ब्रेड लेने गई थी, फिर वह नहीं लौटी.... ..... उफ़!!! ये गर्म गर्म आंसू उसका पीछा ही नहीं छोड़ रहे थे जबकि वह अब उस मुल्क से इतनी दूर अपने देस हिन्दुस्तान में बैठी है। हाँ! उसका दिल ख़ूबसूरत ही तो था तब ही तो ज़िद करके, ख़ुद गई थी ब्रेड लाने ! काश! ए काश ! भूक की ये त्रासदी ! नस्ले इंसानियत को न मिली होती !
डॉक्टर ने उसे ज़्यादा सोचने को मना किया है। उसे सिर्फ बीते कल से अच्छी बातें याद करनी है। उसने आँखें बंद की। उसे महसूस हुआ जैसे वह कीव में है। रात भर बारिश हुई थी , इसी से सुबह बड़ी सुहानी है ; सुबह के नौ बजे हैं; वह और नताल्या ब्रेकफास्ट ले सनोबरों के झुंडों से होते हुए, बस के लिये सड़क तक आ गए हैं; बस में बैठे एड्रिक ने उसकी तरफ मुस्कुरा कर हाथ हिलाया है, वह उसकी बगल वाली सीट पर बैठी है एड्रिक रूसी अंदाज़ में अंग्रेज़ी बोल उसे शहर की खूबसूरती दिखा रहा है, " नैना दीयर ! सी फ्रॉम द आईज़ ऑफ़ अदरीक" उसकी लम्बी रूसी नाक नैना के गालों से थोड़े ही फ़ासले पर है और....और अचानक ! अचानक जैसे धमाके होने लगे हैं, स्याह होते आसमान ने इस शहर की हरियाली और झरनो के बेहद तिलस्माती हुस्न को ढँक लिया है। रातें सोना भूल चुकी हैं और दिन बंकरों की ज़द में आ गए हैं। घबराहट के मारे उसने अपना मुंह तकिये में दे दिया और सब कुछ भूल जाने की कोशिश करने लगी.
एड्रिक ख़ारकीव का रहने वाला था , बर्फीले हुस्न का क़द्दावर रूसी और दिल का इतना भोला जैसे फरवरी माह का आसमान। उसे याद आया , वह फरवरी का महीना ही तो था जब वे क्लास के बाहर पहली बार मिले थे. एड्रिक काले स्वेटर में कितना दिल फरेब लग रहा था ! वह एक साफ़ सुथरी तारों भरी रात थी, आसमान बिलकुल साफ़ था और चाँद की किरणों से छन कर आती चांदनी में हैसिन्थ के चमकीले फूलों का टियारा, नैना के बालों में मोहब्बतों के रंग भर रहा था. एड्रिक की मज़बूत हथेली नैना के नाज़ुक हाथ को अपनी गिरफ्त में लेकर उसे ऐसा महसूस करवा रही थी मानों वे ज़िन्दगी भर ऐसे ही मोहब्बत से बैठे रहेंगे; औंस ऐसे ही ज़मीन का सिंगार करती रहेगी ; ब्लूबेल फव्वारे की हल्की हल्की फुहारें नए मोहब्बत करने वालों को ऐसे ही भिगोती रहेंगी और " द ब्लू कप " की खुशबूदार कॉफ़ी से उठने वाली भाप के पीछे , एक दूसरे को निहारते प्रेमी जोड़े ऐसे ही बैठे रहेंगे , हमेशा , हमेशा। नैना ने अपने कानों पर हाथ रख लिए , पर रेडियो कहीं बोलने से रुकता है ! खबरें कह रहीं थीं , ‘स्कॉर्च्ड अर्थ मेथड’ के चलते रूस ने उत्तरी यूक्रेन को पूरी तरह नष्ट कर यूक्रेनी सेना को बाहर खदेड़ दिया है , अस्पताल , स्कूल और कैफे हाउज़ भी इससे अछूते नहीं रहे। नैना ने अलमारी खोली और उससे डिप्रेशन की दवाई निकाल कर खाई। उस रात उसने ख्वाब देखा, " रोज़ की तरह वह और एड्रिक " द ब्लू कप " रेस्तरां में बैठे हैं. अचानक शाहबलूत के दरख्तों पर एक चमक कौंदती है , फिर एक ज़ोरदार धमाके के साथ एड्रिक के जिस्म के परखच्चे उड़ जाते हैं उसका खून से सना हाथ नैना के हाथों में रह जाता है." नैना फिर चीख मार कर जागी है। डॉक्टर्स ने कहा था अबकि बार भी वह चीख मार कर उठी तो उसे पागल घोषित कर दिया जाएगा। उसके दिमाग़ को इलेक्ट्रिक शॉक दिया जाएगा , जिससे वह नार्मल हालत में आ सके। शुक्र है ! उसकी चीख़ किसी ने नहीं सुनी। ध्यान बाँटने को इंटरनेट चालू कर नैना अपना मोबाइल देखने लगी. एक बड़े पॉलिटिशियन की क़यासआराई है धीरे धीरे यह लड़ाई एक विश्वयुद्ध में परिवर्तित हो जाएगी और दुनिया को फिर से महायुद्धों के दौर से गुज़रना होगा. नैना ! जिसे जीने की खातिर कईं कईं दिन मरना पड़ा था ; नैना जो कईं कईं दिन भूखी रही थी; नैना जो लाशों के बीच सोयी थी; नैना जो बमों से बाल बाल बची थी; जिसने युद्ध के दानव को नज़दीक से देखा था; जिसे खुद को बचाने के लिए भागना पड़ा था; जिसे कभी कभी कचरे की टोकरी से भी खाना उठाना पड़ा था; जिसने विदेशी मुल्क में जान बचाने की खातिर जिस्म, भूख, आत्मसम्मान और आंसू पता नहीं किन किन चीज़ों का सौदा किया था, उसके दिमाग पर अचानक हथौड़े चलने लगे थे, हाँ ! वह इन युद्धों के लिए तैयार नहीं थी; युद्ध उसके लिए नार्मल नहीं थे; ये युद्ध किसी के लिए भी नार्मल कैसे हो सकते हैं !!!! स्कूल के दिनों में उसे समाजी साइंस में सिखाया गया था कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है , युद्ध उसका मूल स्वभाव नहीं है, और जब युद्ध उसका मूल स्वभाव नहीं है तो उसे किसने बाँटा है ? रब ने संसार बनाया था और बनाया था इंसान। फिर किसने बनाये ये महाद्वीप, देश, राज्य, धर्म, समाज और परिवार ? क्या हमने धरती को जितने चाकुओं से गोदा है और उसे जितने टुकड़ों में बांटा है, इनमे से एक टुकड़ा भी हम अपने साथ बाँध कर ले जा सकते है ? फिर हम इसके लिए क्यों लड़ते हैं ? और इस तरह सब लड़ कर ख़त्म हो गए तो कौन कहेगा , "समोवार गरमा चुका है आओ मोहब्बतों की चाय का लुत्फ़ उठायें" .... वह फूट फूट कर रोने लगी थी; वह चीख रही थी. कभी हंसती थी, कभी रोती थी. " पर वह भी किस दौर में रो रही है ! उसे रोते रोते ख़याल आया, जो डार्विन के " स्ट्रगल फॉर सर्वाइवल " के सिद्धांत पर खड़ा है! युद्ध जिस दौर की रग रग में है ! ऐसे दौर में तो युद्ध रुकने पर रोना एक आसामन्य घटना है, युद्ध होना नहीं ! वह अब खुद पर ज़ोर ज़ोर से हंसने लगी कि क्या देखती है कि सारे लोग उसके इर्द गिर्द जमा थे. हे भगवान् !!! यक़ीनन अब उसे गहरे शॉक लगवाए जाएंगे और तब तक लगवाए जाएंगे जब तक कि वह युद्धों को एक साधारण घटना के रूप में न लेने लगे. वह चीखी !!! " मुझे माफ़ कर दो ! लड़ाइयां अच्छी होती हैं, मैं लड़ाई करूंगी , मैं भी फ़ौज में जाउंगी , लोगों को मौत के घाट उतारूंगी !! मुझे माफ़ कर दो.... माफ़.....लड़ाई.... बम "
" छोटे कार निकालो, इसे पागलखाने ले चलना है शॉक लगवाने। " पापा ने भाई को आदेश दिया। पापा को यक़ीन था। इलाज के बाद नैना युद्धों को नार्मल लेने लगेगी.
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sangudubey59
Achchi khani
if
cizi
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