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Andhere Ujale / अंधेरे - उजाले

Author Name: Praveen Bahal | Format: Paperback | Genre : Letters & Essays | Other Details

अंधेरे-उजाले मेरी ज़िंदगी के उन क्षणों को याद कराते हैं जो क्षण कभी उदासी में तो कभी बहुत मुस्कुराते हुए बीतते थे। हर इंसान की ज़िंदगी में कभी अंधेरा तो कभी उजाला ज़रूर आता है पर इसे हर इंसान को बखूबी सहन करने की आदत रखनी चाहिए।

अंधेरा मेरी ज़िंदगी में तब आया जब मैं अंधेरे को पहचानता ही नहीं था, यानी मैं मात्र दो - ढाई वर्ष का था जब मेरी दोनों टाँगे पूर्णतः चली गई। ज़िंदगी भर मस्त रहते हुए मैं इस अंधेरे को दूर करता रहा। फिर यह अंधेरा मेरी ज़िंदगी में उजाला बन गया। यही कारण है की इस पुस्तक में मैंने काव्य के माध्यम से अंधेरे व उजाले दोनों पर लिखा।

मेरी ज़िंदगी के कुछ अंश भी इसमें डाले गये हैं। ये शायद आपको अच्छे लगेंगे। आप अपने विचारों से मुझे अवगत करवायें। आने वाली पुस्तकों में मैं और बेहतर लिखूँगा।

धन्यवाद....

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प्रवीण बहल

पिता: डॉ. मदनलाल बहल

व्यवसाय: रिटायर्ड मैनेजर (इंडियन ओवरसीज बैंक )

कॉलेज लाइफ से ही इन्हें अच्छी रचनाएँ लिखने का शौक था । कॉलेज मैग्जीन में ही इनकी कविताएँ, लघुकथाएँ पंजाबी और संस्कृत भाषा में प्रकाशित होती रहीं । 1980 में इन्होंने भारतीय विकलांग संघ कल्याण बनाकर विकलांगों की सेवा की और फिर हरियाणा विकलांग क्रिकेट एसोसिएशन के माध्यम से विकलांग खेलों को मान्यता दिलवाने की कोशिश की। भारतीय विकलांग कल्याण संस्थान ने इनकी कई पुस्तकों का प्रकाशन किया । जिनमें 'रिश्ता', ठुकराती राहें (उपन्यास) प्रकाशित हुईं, साथ ही इनकी रचनाएँ रेडियो पर भी प्रकाशित होती रहती हैं ।

प्रकाशित कृतियाँ : रिश्ता, ठुकराती राहें (उपन्यास), दिशा, खामोशी, कुछ पल कुवैत में (काव्य संकलन), आँसू बहते रहे, टूटे हुए सपने, जलते चिराग आदि ।

अन्य उपयोगी पुस्तकें : 1. नवीन फर्स्ट एड, 2. फर्स्ट एड, 3. सिविल डिफेंस, 4. दीया जलाए कौन है, 5. यह कैसे हुआ आदि ।

बाद में समय समय पर इनकी रचनाएँ एवं काव्य संकलन भी प्रकाशित होते रहे हैं ।

प्राप्त सम्मान : 1980 मैं इन्हें भारत के राष्ट्रपति महोदय ने नेशनल अवार्ड से सम्मानित किया, हरियाणा सरकार से दो बार जिला स्तर पर एवं 6 बार बड़े-बड़े पुरस्कार मिले हैं।

इनके संघर्ष भरे जीवन पर 600 पेज की एक जीवनी भी लिखी गई है।

पता : 94 सेक्टर 4, गुरुग्राम (हरियाणा)

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