वक़्त सबकुछ को परखता है – रिश्तों और संबंधों को भी, दोस्तों और परिस्थितियों को भी। वह हर चीज़ की सार्थकता पर प्रश्नचिह्न लगा देता है। ख़ुशियों और आंसुओं को भी तौलता है। ऐसे में जीवन में जब-जब, जैसा-जैसा आया वैसी ही अनुभूति को लिखकर स्मरणीय बनाने का लेखक ने एक लक्ष्य साधा और उसकी परिणति यह कृति है। कुछ हक़ीक़त-सा, तो बहुत कुछ उनके सपनों की दुनिया का।
आत्मानुभूति के अनेक रंग और रेखाएं हैं और यह सब बहुत सहज नहीं हैं। कभी-कभी अवचेतन की स्मृतियां उदास करती हैं तो कभी भविष्य की चेतना रुला ही देती है। प्रेम की, प्रेम में प्रतीक्षा की, प्रेम में परिस्थितियों की तथा प्रेम में सफलता और विफलता की- यह सब एक वैचारिक स्थिति है जो जीवन में अनेक दर्शनों से रूबरू कराती है।
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