यह किताब समाज की कुरीतियों और कुप्रथा पर आधारित है
आज भी कहीं ना कहीं कुरीतियों के जंजीर ने हमें जकड़ कर रखा है जिससे निकलना जरूरी हैं|
पहनावे-अोढ़ावे और बोलचाल की भाषा में तो हम आधुनिकता को अपना रहे हैं लेकिन जब बात पुरानी प्रथाओं की आती है तो हम आज भी कहीं न कहीं पीछे हैं|
इन प्रथाओं और नियमों को हमारे पूर्वजों ने बनाया था
लेकिन हमलोगो अपने फायदे के लिए इसका इस्तेमाल कर रहे हैं|
जो कि गलत है|
इसका सबसे बड़ा और बूरा प्रभाव नारियों पर पड़ रहा है हमारा समाज मां दुर्गा-काली- सरस्वती की प्रतिमाओं का बड़े सम्मान और श्रद्धा भाव से पूजा अर्चना करते हैं तो क्यों यहां नारियों का तिरस्कार हो रहा है नारी भी तो देवी का ही रूप है|
यह कैसा समाज है
जहां नारी को श्रद्धा का रूप देकर नारी का तिरस्कार किया जा रहा है नारी ना तो घर में सुरक्षित है और ना ही बाहर|
यहां नारियों को दहेज के बलि चढ़ाया जाता ,गर्भ में ही हत्या कर दिया जाता , बलात्कार करके मार दिया या जला दिया जाता
क्या यह वही समाज है जिसकी हम कल्पना कर रहे थे?
एक तरफ तो हमारी सरकार बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ का नारा देती है, पाबंदी , परंपरा के बेरिया और गुलामी की दहलीज को पार करने की सलाह देती है
लेकिन कैसे बढ़े आगे , कैसे करें कोई नारी दहलीज को पार
जहां बाहर उसे दबोचने के लिए बैठा हो हैवान-रूपी-इंसान|