अब लौट चलूं-4

कथेतर
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कुछ नहीं संध्या जी चूहों ने उत्पात मचा रखा हैं आप जा कर सो जाए..


मेरे खाते में फिर एक गलती जुड़ चुकी थी मै चाह कर भी अभिषेक को अपने हाँथो से खाना नहीं खिला पा रहीं थी..

आज अभिषेक मुझसे भी बहुत आगे निकल गया... यहीं सोचते सोचते मैने अपने कदम कमरे की तरफ मोड़ लिए...


और में फिर हारी हुई सी बेड पर आकर लेट गई थी..


मन में काफ़ी जद्दोजहद थी कभी मन करता के क्यों ना गुम नाम ही हो जाऊं... किसी को कुछ भी ना पता चले...

लेकिन कैसे...? बस एकबार मनु को जी भर के देख लूं... बस फिर कभी किसी के सामने नहीं आउंगी.... लेकिन उसे देखने भर से क्या मुझें सुकून मिलेगा...? शायद ये भी तो हो सकता हैं कि वो मुझें एकबार देखें और फिर मोहब्बत जाग जाए... वो तो मुझसे प्यार करता था... मेरे लिए तो उसने क्या नहीं किया इतने सालों तक यहां मेरी ही यादों के सहारे ही तो रहा हैं... भले अभी इनका मन मुझसे खफ़ा हैं... मुझें पक्का यकीन हैं मनु मुझें देख फिर मेरा हाथ थाम लेगा रवि को भी अपनी गलती का एहसास होगा कि उसने किसी के प्यार को छीन कर कितना बड़ा पाप किया हैं....


तभी फोन की घंटी घन घना उठी थी...

हैल्लो.... हां पापा... प्रणाम पापा...

जी पापा.... जी.... हां... हां.... पापा... ओके...

ठीक हैं.... जी मै कल उनको लेकर बेंगलोर पहुँचता हूं पापा.... जी सुबह जल्दी निकल जाऊँगा....


बेंगलोर...? आखिर बेंगलोर क्यों...? मुझें कुछ समझ नहीं आ रहा था... आखिर बेंगलोर क्यों वापस जाया जा रहा हैं अगर मनु को वही मिलना ही था तो फिर मै यहां क्यों आई...? कहीं रवि तो मनु के कॉन्टेक्ट में तो नहीं हैं... रवि ऐसा नहीं कर सकता... ये ज़रूर मनु की ही चाल होंगी... बदले की भवना से उसने ज़रूर कोई ना कोई चाल चली होंगी मुझें और रवि को निचा दिखाने के लिए... शायद मैने यहां आकर बहुत बड़ी गलती कर दी... मुझें यहां नहीं आना चाहिए था...


तभी अभिषेक आया था..

आप अभी तक जाग रहीं हैं..? हमें सुबह जल्दी यहां से निकलना हैं...

क्यों...? कहा के लिए निकलना हैं?

जब जाएंगे तो पता चल जाएगा..

मै यहां से कही नहीं जाउंगी.. अपने पिता से कहो वो यही आजाये...

मिलने की ललक आपको थी उन्हें नहीं... आपको वही चलना होगा...

मैने कहा ना मै यहां से कही नहीं जाउंगी....

ओके...

इतना कह कर अभिषेक वहां से चला गया था...


बेंगलौर... ! जिसके लिए मैने अपनी सारी ज़िन्दगी बर्बाद कर दी आज मेरा अपना कुछ भी नहीं रहा...मैने बहुत बड़ी गलती की मुझें यहां नहीं आना चाहिए था... मुझें चुप चाप यहां से भी चले जाना चाहिए अब कोई मेरी कदर करने बाला नहीं हैं... जिसने प्यार किया था मैं उसकी ना हो सकी और जिसको मैने चाहा वो भी मेरा ना हो सका.... मैं यही सोचते सोचते वहां से जानें को उठी थी और मेन गेट तक पहुंची तो गेट में अंदर से ताला लगा हुआ था... क्या करू अभिषेक से ताला खोलने का कहूँ... मेरे कदम यकायक उसके कमरे की तरफ बढ़ गए कमरे में मध्यम रौशनी थी अभिषेक एक और टेबल पर बैठा शायद कुछ काम कर रहा था... शायद वो मेरे आने की आहट को पहचान गया था..


क्या बात हैं नींद नहीं आ रहीं आपको...?

अभिषेक मुझें जाना हैं...

लेकिन क्यों...? फिर आप आई किस लिए थी...?


अब वो मैं नहीं बता सकती मुझें अभी और इसी वक़्त जाना हैं...

अभिषेक अपनी जगह से उठा था और उसने बड़ी लाइट जलाते हुए मेरे पास आया था...

मैं मनु नहीं हूं अभिषेक हूं जो मैं अपने पापा की तरह आपके पीछे हाथ पैर जोड़ता रहूं और आप अपनी हर ज़िद अपनी मन मानी से करती रहें... फिर क्यों आई आप यहां...? आपको क्या लगता हैं सब वेबकूफ हैं आप ही समझदार हैं... चुप चाप जा कर आराम करें और मुझें भी करने दें... सुबह जल्दी निकलना भी हैं...


मैं बेंगलोर वापस नहीं जाउंगी मनु को यही इसी घर में बुलाना होगा...


मेरे पिताजी अब पहले जैसे नहीं रहें हैं संध्या जी ज़माने और लोगों को कैसे सही रास्ते पर लाया जाता हैं वो बहुत अच्छी तरह से जानते हैं... और कुछ तरिके मै भी उनसे कही बेहतर जानता हूं... आप वे बजह परेशान हो रहीं हैं... शायद मेरी बात आपको समझ आ गई होंगी...मैं पिताजी के आदेश को नहीं टाल सकता...


तो क्या मुझें जबरदस्ती लेकर जाओगे....?


अगर आप ये सब देखना चाहती हैं तो सुबह तक का इंतज़ार करो... आपको पता चल जाएगा.. आप बेवजह खुद परेशान हो रहीं हैं और मुझें भी कर रहीं हैं...


अभिषेक का क्रोध उसके चेहरे पर उभरने लगा था...

यहां अब किसी की भी हमारे सिबाय मनमर्जिया नहीं चलती....

इतना कह कर अभिषेक वहां से चला गया था... मेरा हर दाओ बेअसर हो चुका था तब में अपने आप में ही सिमट कर रह गई थी....


किसी ज़माने में इस घर में मेरी मर्ज़ी चला करती थी और मनु चुपचाप मेरी ज़िद के आगे झुक जाया करता था. ठीक उसी तरह आज में अभिषेक के आगे झुक गई थी एक अजीब सी दहशत उसके चेहरे पर दिखाई दी थी... जिसने मुझें सहमने पर मज़बूर कर दिया था...

सुबह के 4 बज चुके थे अभिषेक मेरे पास आया था... में जाग रहीं थी..


संध्या जी... ! चलिए जल्दी से तैयार हो जाइये बस हमें 1 घंटे में निकलना हैं...

मुझें लगता हैं तुम बेबजह परेशान हो रहें हो..

देखिये सुबह सुबह मै कोई फालतू बात ना करना चाहता हूं और नाही सुनना... आप से जितना कहा हैं उतना करें तो आपके लिए बेहतर होगा..


मै चुपचाप उठ कर वाश रूम की तरफ आ गई थी अभिषेक उसी कमरे मै रुका रहा था


वाश रूम से बहार आकर जब मै कमरे के पास आई तो मेरा बेग लिए अभिषेक पहले से ही खड़ा था... वो तैयार था बिलकुल किसी बड़े आदमी की तरह उसकी छवि लग रहीं थी बिलकुल उसी तरह जब मनु को मैंने पहली बार देखा था....


अब क्या सोच रहीं हैं...?


क.. कुछ नहीं... और मै बाहर की तरफ चल दी अभिषेक मेरे पीछे पीछे आने लगा था... बाहर 2लग्ज़री कारे ख़डी थी और 4-5 लोग भी थे जिसमें 2 महिलाये थी उन में से एक ने कार का दरवाजा खोला..


इस में डेठियेगा मेम...

मैंने अभिषेक को देखा तो उसने आँखो से इशारा करके इजाजत दी... मै कार में सबर हो गई थी और दूसरी तरफ से दूसरी महिला मेरे बाजू में आ कर बैठ गई थी मै दोनों के बीच मे किसी कैदी की तरह उलझा सा महसूस कर रहीं थी तभी एक आदमी कार में ड्राइवर के पास बाली सीट पर आकर बैठ गया था...अभिषेक दूसरी कार में था उसकी गाडी चलते ही हमारी कार भी उसके पीछे पीछे हो ली थी...


4घंटे के सफऱ में हम मुकाम पर पहुँचे थे.... शहर के पोश एरिया की एक आलिशान बिल्डिंग अरे ये तो रवि का ऑफिस हैं... हम सब कार से बाहर निकले ही थे कि मैंने अभिषेक के पास जाते ही पूछा था हम यहां एम एस कार्पो-रेशन में क्यों आए हैं...?

मुझें नहीं पता... आप चुपचाप रहेंगी तो आपके लिए बेहतर होगा...

तभी उन महिलाओ ने मुझें इशारे से चुप रहने को कहा...


लेकिन ये तो रवि का ऑफिस हैं... अभिषेक ये तुम अच्छा नहीं कर रहें हो.. अगर रवि के साथ बात करनी ही थी तो घर चलकर कर सकते थे यहां ऑफिस में.... तमाशा करने की क्या जरूरत थी... मैंने कितना बखेड़ा खड़ा कर दिया.. लेकिन हम सब दूसरे रास्ते से होते हुए बिल्डिंग के टॉप फ्लोर पर पहुंचने के लिए लिफ्ट में दाखिल हो चुके थे... रवि अक्सर कहा करता था उसके मालिक के जहां जहां ऑफिस हैं वहां वहां आलिशान उनके फ्लेट भी हैं.. जरूर मनु ने रवि के बॉस से जान पहचान होंगी तभी तो वो मुझें यहां लेकर आया हैं लेकिन उन्हें हमारी इस पर्शनल लाइफ में क्यों आने की ज़रूरत पढ़ रहीं हैं... मेरे मन में ये विचार चल ही रहें थे कि हम लिफ्ट से निकल कर एक लम्बे टनल से कड़ी सुरक्षा के बीच से गुजरते होते हुए एक आलिशान लॉबी में दाखिल हो चुके थे अंदर का इंटीरियर देखते ही मेरी आँखे फटी की फ़टी रह गई... साथ में आने बाले लोग बाहर ही रुक गये थे मेनगेट बंद हो चुका था इस वक्त मै ओर अभिषेक ही थे... मै सोच में डूबी हुई किसी भी निर्णय पर नहीं पहुंच पा रहीं थी कि तभी कोई मेरे पैरों में किसी के होने का एहसास हुआ मैंने अपने पैरों की तरफ देखा तो एक बच्चा सिर रख कर मेरे पैरों में लेटा हुआ था.. मै कुछ समझ नहीं पाई थी...

ये आपके अंश का अंश हैं संध्या जी मेरा बेटा अंश...


मेरी आँखे इतना सुनते ही भर आई थी... मैंने उसे अपनी गोदी में उठाना चाहा तो अंश मुझसे दूर हो गया...


संध्या जी ये मेरी वाइफ मीनाक्षी...


एक शांत सौम्य सी मूरत ने मेरे पैर छुए थे.. इस पल मुझें एहसास हुआ था कि वो कल और आज में वाकई में काफ़ी लम्बा समय गुज़र गया हैं... तभी अभिषेक ने मीनाक्षी को कहा


मीनाक्षी आप अंश के साथ अंदर जाओ और वो अंश को लेकर अंदर चली गई थी... मै अंश को जाते हुए देख रहीं थी कि तभी एक तरफ का दरवाज़ा खुला था...

ओह नहीं यार.... मैंने कहा ना मै और अभिषेक कल आपके पास पहुंच जाएंगे...


हैं भगवान ये तो मनु हैं.... मै सिर्फ उसे देख ही रहीं थी और वो मेरे सामने आ कर खडे हो गये थे...


अरे आप खड़ी क्यों हैं.. बैठिये ना... ओह संध्या जी वक़्त के साथ सब बदल गया.... सिर्फ कुछ यादों को छोड़ कर बस वहीं ज़िन्दा हैं जो ठहरी हुई हैं ...


मनु सामने वाले सोफे पर बैठ गए थे..... और मेँ भी उसे देखती हुई बैठ गयी थी....एक दम बदला अंदाज़.... तभी अभिषेक ने मनु से पूछा था..

पापा मै जाऊं...?


नहीं बेटे तुम मेरी जिंदगी के अहम् हिस्सा हो आज तुम्हारा इस वक्त रहना बहुत ज़रूरी हैं... आप भी यही बैठो... हातो संध्या जी अब आपकी ज़िन्दगी में ये उथल पुथल कैसी...?


मनु ने सिगार सुलगाते हुए मुझसे पूछा था लेकिन मै मनु के परिवर्तन को देख रहीं थी जो कभी मेरे रहते नहीं दिखाई दिया था... मेरे मुँह से चाह कर भी कोई शब्द नहीं निकल पा रहा था...


अगर आप यू ही मुझें देखती रहेंगी तो कैसे चलेगा...? अगर आप ये सोच रहीं हैं कि मै आपके इस अंदाज़ से पिघल जाऊँगा तो ये आपकी बेबकूफी हैं... इंसान से गलतियां होती हैं पर बार -बार नहीं... खैर इतने सालों बाद हम कैसे याद आ गये आपको...?

मै चुप ही थी जिसके चलते सन्नाटा सा रहा वो दोनों मेरे जवाब का इंतज़ार करते रहें लेकिन मै एकदम शून्य थी... अंदर से ऐसा लग रहा था के उठ कर यहां से भाग जाऊं लेकिन अब ऐसा कर पाना मेरे बस के बाहर था शुरुआत मैंने की थी.... तभी किसी के आने की आहट हुई तो मेरी नज़रे उस और उठ गई थी....

सामने के दरवाजे से रवि, अरविन्द और संजना अंदर आ रहें थे. सहमे और डरे हुए से रवि अपना सर झुकाये चुप चाप मनु के सामने खड़ा हो गया था...

बैठिये आप लोग...

नो सर थेंक्स.... रवि ने कहा था


इस वक़्त हम एक सामान्य दोस्त हैं रवि बैठ जाओ


और रवि मेरे पास आकर बैठ गया था अरविन्द और संजना दूसरी तरफ बैठ गये थे..


तभी मनु ने रवि से पूछा था.... आप मेरी इस फर्म में कितने वर्षो से काम कर रहें हैं...?

जी सर लग भग 15-16 सालों से

इन 15-16 सालों में मैंने कभी आपको आपके किसी भी परसनल मेटर पर आपसे बात की...?

नहीं कभी नहीं.. !

आप मुझें कब से जानते हैं...? यानी इस कंपनी के मालिक के तौर पर..?

सर पिछले 2-3 सालों से... !

जबकि मै आपको जब से जानता हूं मिस्टर रवि जब आपने मेरी ये कंपनी ज्वाइनिंग ली थी....असल में मैं ये बात इस लिए कर रहा हूं क्योंकि मेरी एक आदत हैं मैं किसी के परसनल मेटर में या उसकी निजी ज़िन्दगी में कभी भी नहीं झांकता जो मेरे साथ दग़ा करता हैं... हा ये बात और हैं वो वक़्त कुछ और था ये वक़्त कुछ और हैं लेकिन मै अच्छे वक़्त में किसी के साथ गलत नहीं करता... चाहे वो मेरा दुश्मन ही क्यों ना हो... मै अपने बुरे वक़्त के समय अपने आपको ईश्वर के हाँथो में सोप देता हू... क्योंकि कि इस दुनियां में उसके सिवा मेरा कोई नहीं हैं... मै तो अनाथ था ना मेरे माता पिता कौन ये मै आज तक नहीं जान पाया... समय गुजरता गया...

क्रमशः-5

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