JUNE 10th - JULY 10th
"तुझे आज ही चलना जरूरी था ?" बारिश और ठंड में काँपती हुई श्यामा अपने भाई से कहती है । बस स्टैंड की सीट पर बैठे दोनों ने वाद-विवाद के साथ इस ठंडे मौसम में गरमाहट पैदा कर दी थी । पर अफ़सोस बेचारे काँप तो अब भी रहे है । क्या इतनी गरमाहट काफी नहीं ?
खैर…राधे बात बदलने की चेष्टा करते हुए, उसे थोड़ा छेड़ते हुए कहता है - "और तुम तो बिना कुछ ओढ़े-पहने आने वाली थी (जोर जोर से हंसने लगता है ) वह तो अच्छा है पापा ने ...
“अच्छा, तूने तो बड़ा…” श्यामा कहना ही चाहती थी कि ...राधे तुरंत बात काटते हुए कहता है - "अरे ! बस आ गयी। यही है ना ?" वह सोचता है कि चलो पीछा छूटा वरना अभी बड़े-बड़े लेक्चर देती । श्यामा हां करते हुए जल्दी से बस रुकवाती है और दोनों चढ़ जाते हैं इतनी देर से चल रही वाद विवाद प्रतियोगिता का बस में चढ़ते ही समापन हो जाता है । ऐसा मालूम होता है जैसे बस की पहली सीढ़ी पर कदम धरते ही वह एक नए समय में पहुंच गए तथा सारा संघर्ष वहीं, उसी स्टैंड पर ठंड से लड़ता रह गया ।
राधे अभी दसवीं कक्षा में ही पढ़ता था । अपने अन्य मित्रों की भांति उसे बाहर निकलने का, घूमने फिरने का अनुभव बिलकुल न था । और यही वजह थी कि किताबें लाने के लिए उसने अपनी बड़ी बहन श्यामा को चुनना उपयुक्त समझा ।
पर वह ऐसे दिन घर से निकले, जब बूँदें लगातार धरती को सींच रही थी जैसे आज उसकी प्यास को तृप्त करके ही मानेंगी। आसमान का रंग गाढ़ा होते ही जा रहा था। ऊपर से ठंड के चपत आग में घी थी।
हालांकि, दोनों अच्छे से सिर से पैर तक ढके हुए थे तथा अब बस में बैठ चुके थे जिससे उनके दिमाग से ठंड नाम का भूत भी थोड़ा उतरा गया ।
श्यामा को खिड़की वाली सीट पर बैठना ही पसंद था ताकि वह बाहर के सुंदर नजारों का आनंद ले सके । यहां सुंदर नजारों से हमारा तात्पर्य खेत-खलियानों, हरे-भरे पेड़ पौधों, पहाड़ों, पशु-पक्षियों के मनोहर दृश्य आदि न होकर, नयी-पुरानी इमारतें, ऊँची-नीची गाड़ियां, गाड़ियों से भरी सड़कें, और आते-जाते लोग ही हैं ।
बस एक लाल-बत्ती पर रूकती है। श्यामा खिड़की के बाहर झांकती है उसकी नजर अनेक गाड़ियों के बीच से निकलती हुई सड़क के उस किनारे जाती है जहां तीन बच्चे हंस-हंसकर खेल रहे हैं। समाज द्वारा बनाएं नियमों के अनुसार देखें तो एक लड़का, एक लड़की तथा एक अभी लिंग की पहचान से दूर कुछ महीनों का बच्चा।
तीन से चार साल तक के वह दोनों बच्चे अपनी ही मस्ती में लगे हुए हैं। लड़की का रंग साफ है और दिल साफ होने में कोई दो राह नहीं है । पर दोनों के ही शरीर पर आसमान का गहरा काला रंग चढ़ चुका है। उनकी भीतरी ख़ूबसूरती देखने वालों को ही दिखती है ।
श्यामा देख रही है कि बच्ची के देह को एक गंदा, फटा सा कमीज ढकने की पूरी चेष्टा कर रहा है तथा वह भी रह-रहकर उस कमीज से शरीर के जिस हिस्से को हवाएं छूकर रेल से गुजर जाती वह कांपते स्टेशन सी अपने कमीज रुपी फाटक को उस ओर खींच देती । उस लड़के को भी तन ढकने जितने कपड़े मिले ही थे। छोटा बच्चा नंग-धड़ंग।
वह लड़की उस बच्चे को उठाती, फिर फुटपाथ पर रखती और खेल में व्यस्त हो जाती । उसके गाड़ियों की तरफ भागने पर पुनः उठाती। जैसे कोई बिल्ली या कुत्ता अपने बच्चे को मुंह में उठाता है वैसे ही अपने बूते से बाहर उस बच्चे को दोनों हाथों में हाथ डालकर आधा उठाती, आधा पैरों को लटकाती हुई, सड़क के इस कोने से गाड़ियों के बीच से उस पार जाती है। जैसे भय रस का अस्वादन अभी बाकी है । और उसी ख़ुशी के साथ बैठकर खेलने लगती है।
श्यामा उसे ही इतनी देर से देख रही थी। वह सोची "वास्तव में उत्तरदायित्व प्रौढ़ता का जनक है उम्र नहीं ।"
उसने एक बार अपने कपड़ों को देखा फिर उसके, अपने दिल को फिर उसके, अपनी स्थिति को फिर उसकी, जिसे अभी न जमीन की सच्चाई का पता न आसमान की गहराई का । अपने में ही मस्त ।
बस चल पड़ी । वह एक गहन विचार में डूबी रही । शायद खुद भी नहीं जान पा रही कि वह क्या सोच रही है और क्या नहीं सोच पा रही । उसने सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और मानवता जैसे अनेक पक्षों से भीतर ही भीतर द्वन्द छेड़ रखा था और हां बीच-बीच में खुद से भी । उसने इतने युद्ध लड़ने पर खुद को बस में बैठे उन अनेक लोगों में से ही एक पाया जो रोज यहीं से ये सब देखते या अनदेखा करते गुजर जाते है और सब वैसा ही रहता है । उसने एक गहरी सांस ली
" क्या फायदा !"
"मैं भी क्या ही कर सकती हूँ ?
" पर कर भी सकती हूँ ।"
फिर झुंझलाकर चुप किया अपने इन उबड़-खाबड़ विचारों को और सोचने लगी
"इनको आदत हो जाती है। "
"पर…”
“ नहीं, पर वर कुछ नहीं अब ।"
लगभग उसके एक घंटे बाद बस रुकी । " चलो बस-स्टैंड आ गया " राधे ने उठते हुए कहा ।
जैसे ही उन्होंने बाहर कदम रखा, श्यामा ने महसूस किया कि हवा काफी तीखी चल रही है। उसके मोटे कोट से होती हुई वह तीर की तरह चुभी। और फिर एकाएक जैसे उसे कुछ याद आया और कहा "हम सच में बहुत लकी है राधे। राधे ने मुड़कर पूछा "क्या ?"
"कुछ नहीं, चल अब जल्दी" और वह अपने-अपने लक्ष्य की ओर बढ़ गए। अब श्यामा को वैसी ठंड भी महसूस नहीं हो रही जैसी कुछ घंटो पहले थी । ये मौसम का परिवर्तन था या कुछ ओर, यह वो ही जानती थी ।
#165
21,467
800
: 20,667
16
5 (16 )
devasharma2611
kalu.sharma127
JatinSingh11
Description in detail *
Thank you for taking the time to report this. Our team will review this and contact you if we need more information.
10
20
30
40
50