उपनिषद् शब्द का सामान्य अर्थ है - ‘समीप उपवेशन’ अथवा ‘समीप बैठना’ (ब्रह्मविद्या प्राप्ति हेतु गुरु के पास शिष्य का बैठना) | उपनिषद् में ऋषि तथा शिष्य के मध्य बहुत ही सुन्दर तथा गूढ़ संवाद है | उपनिषद् में ऋषियों के ज्ञान-चर्चाओं का सार प्राप्त होता है जो संस्कृत में लिखे गये हैं | इनमें परब्रह्म तथा आत्मा के स्वभाव व सम्बन्ध का अति ज्ञानपूर्वक वर्णन प्राप्त होता है | हमारे भारतीय सभ्यता का अमूल्य धरोहर उपनिषद् हैं |
उपनिषद् के विषय में यदि लिखना भी चाहे तो लिख नही सकते क्योंकि यह असीमित ज्ञान का भंडार है | यह ज्ञान इतना विशाल है कि अरबों पर्वतों के ऊँचाई से भी तुलना नही किया जा सकता है | यह ज्ञान इतना गहरा है कि अरबों सागर की गहराई से भी तुलना नहीं जा सकता | यह उपनिषद् द्वारा ऐसी शक्ति प्राप्त होती है जिसके द्वारा मनुष्य अपने जीवन-संग्राम का धैर्य और साहस के साथ सामना कर सकता है | यदि उपनिषद् नहीं होते तो भगवद्गीता भी नही होता क्योंकि भगवद्गीता उपनिषद् के ऊपर ही आश्रित है | उपनिषद् में ही हमारे आत्मिक, मानसिक तथा सामाजिक समस्याओं से निपटने का ज्ञान वर्णित है |
उपनिषद् की संख्या अलग अलग बताई जाती है, कहीं 200 तो कहीं 220 हैं | प्रत्येक उपनिषद् किसी न किसी वेद से जुड़ा हुआ है | ऋग्वेद से 10 उपनिषद्, शुक्ल यजुर्वेद से 19 उपनिषद्, कृष्ण यजुर्वेद से 32 उपनिषद्, सामवेद से 16 उपनिषद्, अथर्ववेद से 31 उपनिषद्, अतः कुल मिलाकर 108 उपनिषद् को मुख्य माना गया है | इनमें भी 13 उपनिषद् प्राचीन एवं प्रमुख माना जाता है | जगद्गुरु आदि शंकराचार्य जी ने मुख्य दशोपनिषद् पर अपना भाष्य दिया हुआ है |
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