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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Pal
हमें मिला हुआ अमूल्य मनुष्य जन्म, कितना महत्वपूर्ण है यह बहुत कम लोग ही समझ पाते हैं | हमारी भारतीय संस्कृति एवं सनातन धर्म ज्ञान बहुत अधिक गहन एवं परिपोषित है, मगर यह हमारा दुर्भ
हमें मिला हुआ अमूल्य मनुष्य जन्म, कितना महत्वपूर्ण है यह बहुत कम लोग ही समझ पाते हैं | हमारी भारतीय संस्कृति एवं सनातन धर्म ज्ञान बहुत अधिक गहन एवं परिपोषित है, मगर यह हमारा दुर्भाग्य है कि आज बहुत कम लोग इस बात को समझ रहे हैं या समझने की कोशिश कर रहे हैं | कुछ लोग मैं सनातनी हूँ, मैं हिन्दू हूँ बोल कर अपने हिन्दू होने का गर्व तो दिखाते हैं मगर सनातन धर्म का मूल क्या है, धर्म क्या है, ज्ञान क्या है, आचरण क्या है इन सबके बारे में जानने की कोशिश ही नही करते हैं या कह सकते हैं हमारे आज के पाठ्य पद्धति में ऐसी सुविधा नही है|
बचपन से ही मैंने अपने घर पर गौ माता को देखा है, हमारे घर पहला रोटी गौ माता को ही दिया जाता है। पढ़ाई के दौरान कई बार मैंने गौ माता से जुड़ी कई बातों को तथा उसके वैज्ञानिक कारण क्या है, उन बिंदुओं को भी मैंने नोट किया था। जब मुझे गौ माता पर विश्व रिकॉर्ड बनाने का अवसर मिला तो उस अवसर पर मैंने सोचा कि क्यों ना उन सभी बिंदुओं को एक साथ सरल एवं सहज भाषा में लिखकर एक पुस्तक रूपांतरण किया जाए ताकि जन-जन तक गौ माता के महत्व को बताया जा सके।
उपनिषद् शब्द का सामान्य अर्थ है - ‘समीप उपवेशन’ अथवा ‘समीप बैठना’ (ब्रह्मविद्या प्राप्ति हेतु गुरु के पास शिष्य का बैठना) | उपनिषद् में ऋषि तथा शिष्य के मध्य बहुत ही सुन्दर
उपनिषद् शब्द का सामान्य अर्थ है - ‘समीप उपवेशन’ अथवा ‘समीप बैठना’ (ब्रह्मविद्या प्राप्ति हेतु गुरु के पास शिष्य का बैठना) | उपनिषद् में ऋषि तथा शिष्य के मध्य बहुत ही सुन्दर तथा गूढ़ संवाद है | उपनिषद् में ऋषियों के ज्ञान-चर्चाओं का सार प्राप्त होता है जो संस्कृत में लिखे गये हैं | इनमें परब्रह्म तथा आत्मा के स्वभाव व सम्बन्ध का अति ज्ञानपूर्वक वर्णन प्राप्त होता है | हमारे भारतीय सभ्यता का अमूल्य धरोहर उपनिषद् हैं |
उपनिषद् के विषय में यदि लिखना भी चाहे तो लिख नही सकते क्योंकि यह असीमित ज्ञान का भंडार है | यह ज्ञान इतना विशाल है कि अरबों पर्वतों के ऊँचाई से भी तुलना नही किया जा सकता है | यह ज्ञान इतना गहरा है कि अरबों सागर की गहराई से भी तुलना नहीं जा सकता | यह उपनिषद् द्वारा ऐसी शक्ति प्राप्त होती है जिसके द्वारा मनुष्य अपने जीवन-संग्राम का धैर्य और साहस के साथ सामना कर सकता है | यदि उपनिषद् नहीं होते तो भगवद्गीता भी नही होता क्योंकि भगवद्गीता उपनिषद् के ऊपर ही आश्रित है | उपनिषद् में ही हमारे आत्मिक, मानसिक तथा सामाजिक समस्याओं से निपटने का ज्ञान वर्णित है |
उपनिषद् की संख्या अलग अलग बताई जाती है, कहीं 200 तो कहीं 220 हैं | प्रत्येक उपनिषद् किसी न किसी वेद से जुड़ा हुआ है | ऋग्वेद से 10 उपनिषद्, शुक्ल यजुर्वेद से 19 उपनिषद्, कृष्ण यजुर्वेद से 32 उपनिषद्, सामवेद से 16 उपनिषद्, अथर्ववेद से 31 उपनिषद्, अतः कुल मिलाकर 108 उपनिषद् को मुख्य माना गया है | इनमें भी 13 उपनिषद् प्राचीन एवं प्रमुख माना जाता है | जगद्गुरु आदि शंकराचार्य जी ने मुख्य दशोपनिषद् पर अपना भाष्य दिया हुआ है |
हम सब के लिए बहुत सौभाग्य की बात है कि पिछले एक-दो वर्षों से भारत में वैदिक ज्ञान, संस्कृति एवं आचरण के वैज्ञानिकता के ऊपर चर्चाएं होने लगी हैं एवं कई जगह कक्षायें भी शुरू की गयी ह
हम सब के लिए बहुत सौभाग्य की बात है कि पिछले एक-दो वर्षों से भारत में वैदिक ज्ञान, संस्कृति एवं आचरण के वैज्ञानिकता के ऊपर चर्चाएं होने लगी हैं एवं कई जगह कक्षायें भी शुरू की गयी हैं| हम और भी भाग्यशाली है की भारत का वैदिक विज्ञान का पहला अध्ययन केंद्र सर्व आराध्य भारत रत्न से सम्मानित पण्डित मदन मोहन मालवीय जी के बगिया काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में शुरू हुआ| एक अतिथि शिक्षक के तौर पर कई कक्षाएं लेने का भी सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ है|
किसी भी विद्यालय में अलग विषयों के अनेकों छात्र-छात्रायें पढ़ने लिखने तो आते ही है, मगर कुछ छात्र या छात्रायें अपने किसी विषय पर इतना अधिक गहन अध्ययन करने लगते है कि हम उन्हें मेधावी छात्र या छात्रा कहते हैं|
ऐसी ही एक छात्रा सुश्री नेहा सिंह है जो काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी के वैदिक विज्ञान केन्द्र के प्रथम सत्र की छात्रा हैं, जिन्होंने कम समय में अधिक से अधिक जानने का निरंतर प्रयास किया और अपने वैदिक विज्ञान का गहन अध्ययन करना जैसे एक तपस्या ही मान लिया हो| ललित कला से स्नातकोत्तर होने के बाद, वैदिक विज्ञान विषय को पढ़ने एवं जानने में इतना रूचि रखना आज के नव-युवाओं में बहुत कम देखा गया है|
सुश्री नेहा सिंह द्वारा लिखित “वैदिक विज्ञान – सरल एवं संक्षिप्त परिचय” नामक पुस्तक में वैदिक साहित्य के सक्षिप्त परिचय के साथ साथ हम सबके आम जीवन में अपनाने वाले कई आचरण एवं संस्कृतियों का सरल परिचय देने का प्रयास किया गया है जो किसी भी व्यक्ति को समझने के लिये बहुत आसान है | इनका प्रयास वास्तव में अति प्रशंसनीय एवं सराहनीय है|
पंचतत्व
यदि पृथ्वी पर जीवन है तो उसका मुख्य कारण है पंचतत्व| यह पंचतत्व हम सभी के जीवन को प्रभावित करता है क्योंकि इसके बिना हम जीवन जीने की कल्पना ही नही कर सकते| यह पंचतत्व अथ
पंचतत्व
यदि पृथ्वी पर जीवन है तो उसका मुख्य कारण है पंचतत्व| यह पंचतत्व हम सभी के जीवन को प्रभावित करता है क्योंकि इसके बिना हम जीवन जीने की कल्पना ही नही कर सकते| यह पंचतत्व अथवा पंचमहाभूत हैं : पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु तथा आकाश| हम सब यह जानते भी हैं कि हमारा शरीर पांच तत्व से बना है किन्तु यह शरीर के किस भाग में हैं? इनका क्या आकर है? इनका रूप कैसा है? इनका प्रभाव कैसे पड़ता है आदि अनेकों प्रश्न के उत्तर नही जान पाते हैं| इस किताब में पंचभूत के संक्षिप्त एवं सरल परिचय देने का प्रयास किया गया है|
महावाक्य
ऐसे वाक्य हैं जो देखने में बहुत छोटे हैं किन्तु उनके अन्दर बहुत गहन विचार निहित हैं| यह महावाक्य मनुष्यों को हर क्षण सम्भालने वाला वाक्य है जो सरल भी है साथ ही कल्याणकारी भी है| मानव शरीर व उसकी इन्द्रिया तथा मन यह केवल संघटन मात्र नही हैं अपितु सुख-दुःख, जन्म-मृत्यु से भिन्न, दिव्य स्वरूप व आत्म स्वरूप है| प्रमुख उपनिषदों में से निम्नवत को महावाक्य माना गया है :
अहं ब्रह्मास्मि – तत्त्वमसि - अयम् आत्मा ब्रह्म - प्रज्ञानं ब्रह्म |
भारत रत्न से सम्मानित काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक श्रद्धेय पंडित मदन मोहन मालवीय जी जैसे अनेक महात्मा इस भारत भूमि पर अवतरित हुए हैं और ऐसे लोग हर नकारात्मकता को पछा
भारत रत्न से सम्मानित काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक श्रद्धेय पंडित मदन मोहन मालवीय जी जैसे अनेक महात्मा इस भारत भूमि पर अवतरित हुए हैं और ऐसे लोग हर नकारात्मकता को पछाड़ते हुए साधारण से असाधारण कर्मों से अपने सनातन धर्म को निभाते हुए भावी पीढ़ि के लिए अतुल्य एवं अनुकरणीय छाप छोड़ गए हैं ।
ऐसे महात्मा स्वधर्म एवं कर्तव्य बोध से अपने भीतर की विभूतियों को समझने तथा निखारने के लिए श्रीमद्भगवद्गीता द्वारा निरन्तर ज्ञानार्जित करते रहे हैं ।
बड़े से बड़े लक्ष्य को पूर्ण करने में या अपने अपने क्षेत्र में सफल होने में आज के युवा पीढ़ी निरंतर प्रयासरत रहते हैं, किन्तु सही दिशा एवं मार्गदर्शन के लिए उन्हें श्रीमद्भगवद्गीता के ज्ञानरस का पान करते रहना चाहिए ।
वैदिक विज्ञान केन्द्र की छात्रा सुश्री नेहा सिंह द्वारा पुस्तक का लेखन कार्य अत्यंत प्रशंसनीय एवं प्रासंगिक है |
इस पुस्तक “जीवन दर्शन गीता” में आज की युवा पीढ़ी को गीता के मूल तत्वों का सरल परिचय देने का प्कीरयास किया गया है, जो अत्यंत सराहनीय है एवं सभी लोगों के लिए प्ररेणादायक है ।
जीवन यात्रा में कभी रिश्ते-नातों या समाज में हमसे जुड़े अथवा ना जुड़े लोगों के बीच या इर्द गिर्द घटित होती घटनाओं के बीच कभी कभी कुछ क्षण ऐसे भी निकल आते हैं जब आदमी सोच-विचार एवं भा
जीवन यात्रा में कभी रिश्ते-नातों या समाज में हमसे जुड़े अथवा ना जुड़े लोगों के बीच या इर्द गिर्द घटित होती घटनाओं के बीच कभी कभी कुछ क्षण ऐसे भी निकल आते हैं जब आदमी सोच-विचार एवं भाव-विभोर में डूब जाता है, मेरी हर कविता का जन्म भी कुछ ऐसे ही हुआ है ।
महिला सशक्तिकरण का नारा जितना भी लगा लो, मगर जब तक एक लड़की को सिर्फ पराया धन समझने वाला और घर गृहस्थी तक सीमित सोच रखने वाला समाज रहेगा तब तक महिला सशक्तिकरण का नारा सिर्फ नारा तक ही रह जाता है । देखे हुए हर सपनों को शादी के बाद छोड़ने पर मजबूर कई बहनों को सुना है, उन लोगों के हालत को अनुभव किया है । मेरी कविता श्रृंखला में कई ऐसे अनुभवों की संरचना है ।
“उप सामीप्येन, निनितरां, प्राप्नुवन्ति
परब्रह्म यया विद्यया सा उपनिषद्”
अर्थात् जिस विद्या के द्वारा परब्रह्म का सामीप्य एवं तादात्म्य प्राप्त किया जाता है, वह ‘उप
“उप सामीप्येन, निनितरां, प्राप्नुवन्ति
परब्रह्म यया विद्यया सा उपनिषद्”
अर्थात् जिस विद्या के द्वारा परब्रह्म का सामीप्य एवं तादात्म्य प्राप्त किया जाता है, वह ‘उपनिषद्’ है | उपनिषद् को वेद का शीर्ष भाग कहा गया है, वेदान्त कहा गया है, क्योंकि यह वेदों का अन्तिम (सर्वश्रेष्ठ) भाग है | दो सौ से अधिक उपनिषदों में प्रमुख्य दस उपनिषद् की मान्यता सर्वाधिक है |
चित्रकला में स्नातकोत्तर करने के बाद जब काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के वैदिक विज्ञान केंद्र में पढ़ने का मौका मिला तो मुझे वेद, उपनिषद्, श्रीमद्भगवद्गीता जैसे ग्रंथों के बारे में अधिक जानकारी मिली और अधिक से अधिक जानने की जिज्ञासा हुई | छह माह तक प्रमुख्य दस उपनिषदों को निरंतर पढ़ते रहे और एक कलाकार होने के नाते अपने अंतरात्मा में कहीं न कहीं हर एक उपनिषद् का चित्रांकन भी होता गया तथा गुरुजनों के आशीर्वाद से कैनवास पर उकेरने का प्रयास किया| बाद में दस उपनिषद् के चित्रकला के साथ "दशोपनिषदों" के सारांश के साथ दुनिया का पहला 'डिजिटल प्रिंटेड एल्बम' के रूप में प्रकाशित हुआ, जिसका विमोचन काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के वैदिक विज्ञान केंद्र के विद्वानों द्वारा किया गया |
लोगों द्वारा "दशोपनिषदों" एल्बम की बहुत सराहना हुई और एल्बम की कॉपी की भी माँग होने लगी, मगर एल्बम का खर्च बहुत अधिक होने के कारण जनमानस तक उसको पहुंचा पाना मुश्किल था। इसलिए "दशोपनिषद्" एल्बम का यह पुस्तक रूपांतरण आप सभी को सादर समर्पित है |
भारत में भगवान संकल्प एवं आध्यात्मिकता कितना अधिक वैज्ञानिक है, ये बात आज भी बहुत कम लोग जानते हैं । संस्कृत भाषा के एक एक शब्द हो या शब्दों से बुने अक्षरों के समूह हों, हर एक में ज
भारत में भगवान संकल्प एवं आध्यात्मिकता कितना अधिक वैज्ञानिक है, ये बात आज भी बहुत कम लोग जानते हैं । संस्कृत भाषा के एक एक शब्द हो या शब्दों से बुने अक्षरों के समूह हों, हर एक में जीवन उपयोगी कई वैज्ञानिक गुण छिपे हुए हैं। इसी प्रकार भगवान 'श्रीराम' का भी नाम है । इस अकेले एक नाम लेने से प्रभु श्रीराम जी के एवं हनुमान जी के जो गुणों के बारे में विद्वतजन वर्णन करते हैं, हमारे अंदर भी प्रफ़ुल्लित होने लगते हैं और हम मन से, वचन से, कर्म से नकारात्मकता से सकारात्मकता की ओर बढ़ने लगते हैं ।
भागदौड़ एवं माया मोह से अत्यंत ग्रसित इस आधुनिक काल में सुश्री नेहा सिंह द्वारा इतने कम उम्र में 'राम' शब्द की वैज्ञानिकता एवं गुणों का वर्णन करते हुए एक ऐसा किताब लिखना अत्यंत सराहनीय कार्य है एवं युवा पीढ़ी के लिए अनुकरणीय है । ऐसा आचरण ही हमारे भारत के संस्कृति, आध्यात्मिकता एवं सनातन कर्म कर्तव्यों को जीवित रखने में एवं युवा पीढ़ी को सही दिशा में मार्गदर्शन करने के लिए प्रेरक बन सकते हैं ।
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