'ऐसा मेरे साथ ही क्यों होता है।' यह एक ऐसा स्वाभाविक प्रश्न है जो कई लोगों के दिलो दिमाग में यदाकदा उभर ही आता है। जिसके परिणाम स्वरूप मनुष्य में निराशा की नकारात्मक भावना उत्पन्न होती है। किन्तु यदि मनुष्य में ऎसी भावना की उत्पत्ति होती भी है, तो क्यों होती है। इसका कारण क्या है ? क्या इसका कोई उत्तर है ? कोई समाधान है ? क्या ऐसे उद्वेग से छुटकारा प्राप्त किया जा सकता है? यह विचारणीय है। इस पर एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाएं जाने की आवश्यकता है।