मैंने अपने जीवन में हमेशा खुद को औरों से अलग पाया है। मैं अपने विचारों में शांति, व्यवहार, समानता, सामाजिक सद्भाव और प्रेम -भाईचारे पर जोर देता हूं।
आज कल जिस तरह से लोगों को जाति, धर्म, ऊंच- नीच आदि के नाम पर समाज में बुराई फैल रही है, मैं उसका विरोध करता हूं।। मैं केवल प्रकृति को ही ईश्वर के रूप में मानता हूं। अतः मैं प्रकृति को ही अपनी दुनिया मानता हूं। क्योंकि मेरा मानना है कि आज की दुनिया में मानव -मानव का शोषण करता है, यहां तक कि निजी स्वार्थ में अपना अपने ही लोगों पर घात कर देता है। और एक तरफ प्रकृति है जो कि मानव को व अन्य सभी प्राणियों को निस्वार्थ सबकुछ अर्पित करती है।