यह पुस्तक “बाबूनामा” केवल मेरी कहानी नहीं है, बल्कि उन सभी की आवाज़ है जिन्होंने अपने जीवन में सीमाओं से आगे बढ़कर सोचने, जीने और बदलाव लाने का साहस किया। “बाबू” शब्द का इतिहास जितना गूढ़ है, उतनी ही जटिल है एक व्यक्ति की जीवन यात्रा – और यही इस पुस्तक का मूल है। इसमें मेरे 70 वर्षों के अनुभवों का सार है – एक प्रशासक, उद्यमी, वक्ता, लेखक और फोटोग्राफर के रूप में। यह आत्मकथा नहीं, बल्कि संस्मरणों का संग्रह है – जिसमें विचारों की यात्रा है, संघर्ष हैं, और आत्मबोध की झलक है। मैंने जीवन से जो सीखा, उसे "पस्तोर डॉक्ट्रीन" नाम दिया – जिसमें पहला सिद्धांत है बादलों की तरह हल्कापन और स्वतंत्रता, और दूसरा नदी की तरह निरंतरता और आत्मविलयन। पुस्तक के पहले भाग में जीवन की घटनाएँ हैं जिन्होंने सोच को आकार दिया, और दूसरे भाग में वैचारिक परिवर्तन की यात्रा – बचपन में कम्युनिस्ट, जवानी में समाजवादी, फिर पूंजीवादी और अब एक धार्मिक दृष्टिकोण के करीब। यह किताब आपको अपने भीतर झाँकने और जीवन को एक नए दृष्टिकोण से देखने की प्रेरणा देगी।
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