मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। अतः समाज में रहते हुए उसे समाज के नियम-क़ायदों को स्वीकारना पड़ता है। परंतु इसके साथ साथ उसकी कुछ व्यक्तिगत इच्छाएँ और ज़रूरतें भी होती है जिन्हें वह चाहकर भी नज़रअंदाज़ नहीं कर पाता है। ऐसे में शुरू हो जाती है एक कश्मकश और इसी कारण ज़िंदगी में कई अप्रायश्चित फ़ैसले भी करने पड़ते हैं। बस ऐसे ही घटती है घटनाएँ और ऐसे ही कुछ घटनाओं से कहानियाँ बन जातीं हैं। ‘बस दो मिनट’ ऐसी ही कुछ कहानियों का संग्रह है जिन्हें आप अपने जीवन की क़रीब पाएँगे।