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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palप्रकाशित पुस्तकों का विवरण: • पिंकू के कारनामे (पंजाबी में अनुवादन),1993 (प्रकाशन विभाग भारत सरकार, दिल्ली)• गीत गुलशन (बाल गीत संग्रह), 2001 (राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर के सौजन्य से)• कबूतर उड़ गए (बाल कथा संग्रह), 2002 (प्रकाशन विभाग भारRead More...
प्रकाशित पुस्तकों का विवरण:
• पिंकू के कारनामे (पंजाबी में अनुवादन),1993 (प्रकाशन विभाग भारत सरकार, दिल्ली)
• गीत गुलशन (बाल गीत संग्रह), 2001 (राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर के सौजन्य से)
• कबूतर उड़ गए (बाल कथा संग्रह), 2002 (प्रकाशन विभाग भारत सरकार, दिल्ली)
• परंपरागत खेल (फ्लिप बुक), 2010 (रूम टू रीड, दिल्ली)
• द मंकी एंड द ओल्ड वूमेन, 2015 (रूम टू रीड, दिल्ली)
• मारू फिर कब आओगे (बाल उपन्यास), 2017 (प्रकाशन विभाग, भारत सरकार, दिल्ली)
• ग़ुब्बारों की एकता (बाल कथा संग्रह), (प्रकाशाधीन: प्रकाशन विभाग, भारत सरकार, दिल्ली)
• नानक वाणी, 2017 (साहित्यगार जयपुर)
• अंत भले का भला (बाल कथा संग्रह), 2018 (साहित्यगार जयपुर)
• राधा इस्कूल जावैगी (राजस्थानी बाल-कथा संग्रह), 2021 (सनातन प्रकाशन जयपुर)
• अभी ज़िंदगी और है (प्रौढ़ कथा संग्रह), 2021 (साहित्यगार प्रकाशन जयपुर)
• हम सब एक हैं (बाल एकांकी संग्रह), 2021 (साहित्यागार प्रकाशन जयपुर)
• बालक बना महान (प्रेरक बाल कथाएं), 2022
• खट्टा मीठा बचपन (बाल धारावाहिक), 2022
पाठ्य पुस्तकों में रचनाओं का प्रकाशन:
• मधुप हिंदी पाठमाला-2 में कविता "परंपरागत खेल", 2019 (मधुबुन बुक्स, दिल्ली)
• मधुप हिंदी पाठमाला-4 में नाटक 'चाणक्य', 2019 (मधुबुन बुक्स, दिल्ली)
• बच्चों का देश, अणुव्रत विश्वभारती, राजसमंद में बालक बना महान सीरीज का निरंतर प्रकाशन
विशेष उपलब्धि:
• स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत लघु नाटिका ‘प्लास्टिक ना भाई ना’ का लेखन, निर्देशन एवं अभिनय। तथा जिला परिषद की ओर से उसका मंचन।
• राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा माह- 2021 के दौरान लघु नाटिका ‘जीवनदान’ का निर्देशन एंव मंचन एंव अभिनय।
• राष्ट्रीय सुरक्षा सुरक्षा माह सड़क सुरक्षा-जीवन रक्षा के दौरान संभलकर चलो राह में हेतु प्रशस्ति पत्र।
• बाल नाटिका 'धमाचौकड़ी-काम की बड़ी' का लेखन एवं निर्देशन तथा अणुव्रत विश्वभारती की ओर से उसका मंचन।
• बाल नाटिका "हमारे संस्कार: वैज्ञानिक हैं आधार' का लेखन एवं सलिला संस्था, सलूंबर की ओर से उसका मंचन।
साहित्यिक सम्मान:
स्वाधीनता दिवस समारोह, 2021 में राजस्थान सरकार की ओर से साहित्यिक उपलब्धियों हेतु प्रशस्ति पत्र एवं प्रशस्ति पदक। भगवती प्रसाद देवपुरा स्मृति बाल साहित्यकार भूषण सम्मान। सृजन सेवा संस्थान की ओर से जसवंत कौर सृजन सम्मान आदि।
सम्पर्क:
कुसुम अग्रवाल, 90 महावीर नगर, कांकरोली (राजसमंद) - 313324
Mob: 9461179465, kusumagarwal0702@gmail.com
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क से कहानी बाल साहित्य की अनेक विधाओं में सर्वाधिक लोकप्रिय विधा है। बच्चों को कहानी पढ़ना-सुनना अच्छा लगता है। वे कहानी के पात्रों के माध्यम से बहुत कुछ सीखते व समझते भी हैं। कह
क से कहानी बाल साहित्य की अनेक विधाओं में सर्वाधिक लोकप्रिय विधा है। बच्चों को कहानी पढ़ना-सुनना अच्छा लगता है। वे कहानी के पात्रों के माध्यम से बहुत कुछ सीखते व समझते भी हैं। कहानियाँ बच्चों को सहज रूप में ही वह सब सिखा देती हैं जो अभिभावक या अध्यापकगण अत्याधिक परिश्रम के बाद भी नहीं सिखा पाते हैं। मैंने अपने इस बाल कथा संग्रह ‘हैलो मिस मैगी’ में कुछ ऐसी ही कहानियों का संकलन किया है।
कहानियाँ ‘सही दिशा में’, ‘रंगीन हो गई होली’ तथा ‘हैलो मिस मैगी’ जिसके नाम से इस पुस्तक का शीर्षक है, बॉडी शेमिंग से जुड़ी हुई हैं। विशेष शारीरिक रंग-रूप या मानसिक या शारीरिक अक्षमता के रहते ही बालक कैसा महसूस करता है, इन कहानियों में बख़ूबी दर्शाया गया है। कहानियाँ ‘प्यारे-प्यारे दादाजी’, ‘डांडिया के बहाने’, ‘छोटा सा प्रयास’ मानवीय जीवन में संबंधों की मिठास को बनाए रखने में के प्रयास में लिखी गई है। ‘बंटी की उत्तरपुस्तिका’ तथा ‘तुम्हारी कॉपी में ग़लतियाँ हैं’, दोनों कहानियाँ आधुनिक नौनिहालों का विद्यार्थी जीवन में मार्गदर्शन करने में क़ामयाब होंगी।
‘बेकार तोहफ़ा’ कहानी में पुस्तकों की उपयोगिता दर्शाई गई है।‘जिया बदल गई है’ कहानी स्वच्छता का संदेश देती है।
‘कैंप में चिप्स के पैकेट्स’ कैंपिंग के दौरान हुए नए-नए अनुभवों का वर्णन कर कैंपिंग के प्रति रोमांच पैदा करती है।
मुझे पूरा विश्वास है कि इस कथा संग्रह को बच्चे तथा बड़े दोनों ही बड़े चाव से पढ़ेंगे।
मेरै ई बाल गीत संग्रै “टाबरां का गीत” में भांत-भांत की इक्यावन कविता है। कवितावां का विषै टाबरां के मन भावै जिसा है। हाँसी-मजाक की कविता भी है तो चोखी सीख सिखावण की भी। पंछियां
मेरै ई बाल गीत संग्रै “टाबरां का गीत” में भांत-भांत की इक्यावन कविता है। कवितावां का विषै टाबरां के मन भावै जिसा है। हाँसी-मजाक की कविता भी है तो चोखी सीख सिखावण की भी। पंछियां अर जिनावरां की कविता भी है तो दादो-दादी की भी। अै कवितावां टाबरां ने राजस्थानी भासा सीखणै में भी मदद करैगी।
चाणक्य एवं अन्य नाटक पुस्तक ऐसे नाटकों का संकलन है जिन्हें बड़ी आसानी से मंचित किया जा सकता है। इन नाटकों में ऐतिहासिक, सामाजिक तथा बाल-मनोविज्ञान से जुड़े कई नाटक हैं जिन्हें प
चाणक्य एवं अन्य नाटक पुस्तक ऐसे नाटकों का संकलन है जिन्हें बड़ी आसानी से मंचित किया जा सकता है। इन नाटकों में ऐतिहासिक, सामाजिक तथा बाल-मनोविज्ञान से जुड़े कई नाटक हैं जिन्हें पढ़कर या मंचित कर पाठक सहज ही आनंद की अनुभूति कर सकते हैं।
नि:संदेह, साहित्य की अन्य विधाओं में से नाटक अपना अलग स्थान रखते हैं क्योंकि यही वह विधा है जो एक साथ सैकड़ों दर्शकों के मन पर गहरी छाप छोड़ सकती है और अपने संवादों की सरसता से उन्हें अपने साथ बाँधे रखने में कामयाब हो सकती है।
प्रस्तुत संग्रह में बाल पाठकों के लिए कुछ ऐसी कहानियों को संकलित किया गया है जिन में भाँति-भाँति के पशु-पक्षी ही पात्र हैं। ये कहानियाँ मनोरंजन के साथ हमारे नौनिहालों को जीवन के
प्रस्तुत संग्रह में बाल पाठकों के लिए कुछ ऐसी कहानियों को संकलित किया गया है जिन में भाँति-भाँति के पशु-पक्षी ही पात्र हैं। ये कहानियाँ मनोरंजन के साथ हमारे नौनिहालों को जीवन के आदर्शों को अपनाने एवं नैतिकता के मार्ग पर चलने के लिए भी प्रेरित करेंगी साथ ही भावी जीवन में आने वाली कई समस्याओं से जूझने में भी मदद करेंगी।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। अतः समाज में रहते हुए उसे समाज के नियम-क़ायदों को स्वीकारना पड़ता है। परंतु इसके साथ साथ उसकी कुछ व्यक्तिगत इच्छाएँ और ज़रूरतें भी होती है जिन्हें
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। अतः समाज में रहते हुए उसे समाज के नियम-क़ायदों को स्वीकारना पड़ता है। परंतु इसके साथ साथ उसकी कुछ व्यक्तिगत इच्छाएँ और ज़रूरतें भी होती है जिन्हें वह चाहकर भी नज़रअंदाज़ नहीं कर पाता है। ऐसे में शुरू हो जाती है एक कश्मकश और इसी कारण ज़िंदगी में कई अप्रायश्चित फ़ैसले भी करने पड़ते हैं। बस ऐसे ही घटती है घटनाएँ और ऐसे ही कुछ घटनाओं से कहानियाँ बन जातीं हैं। ‘बस दो मिनट’ ऐसी ही कुछ कहानियों का संग्रह है जिन्हें आप अपने जीवन की क़रीब पाएँगे।
‘क’ से कहानी और ‘क’ से ही कविता होती है। कविता और कहानी दोनों में ही ‘क’ से कथन होता है तथा दोनों में ही ‘क’ से कल्पना का समावेश भी हो सकता है। इस तरह कविता और कहानी में
‘क’ से कहानी और ‘क’ से ही कविता होती है। कविता और कहानी दोनों में ही ‘क’ से कथन होता है तथा दोनों में ही ‘क’ से कल्पना का समावेश भी हो सकता है। इस तरह कविता और कहानी में काफ़ी समानताएँ हैं परन्तु फिर भी कुछ भिन्नताएँ भी हैं और इन्हीं विभिन्नताओं ने मुझे कहानियों के साथ-साथ कविताएँ लिखने के लिए लालायित किया।
थोड़े शब्दों में ही अपनी बात कहने का सामर्थ्य, छंदबद्धता तथा गेयता कविता और कवि के कुछ ऐसे विशेष गुण हैं जिनके कारण कविताएँ साहित्य की अन्य विधाओं से हटकर प्रतीत होती है। और फिर बाल गीतों की तो बात ही कुछ निराली होती है। नन्हे-नन्हे बच्चे, अपनी तुतलाती बोली में, जब इन गीतों को गुनगुनाते हैं तो वातावरण सुमधुर हो जाता है और जब कवि इन नन्हें-नन्हें गीतों में भाँति-भाँति के भाव भर देता है तो सुनने वाला उनको सुनकर भाव विभोर हो जाता है। नन्हें बालक तो नादान होते हैं। वे कविता के अर्थ नहीं समझते परंतु उसकी लय-ताल और तुकांतता उसे भी आकर्षित करतीं हैं और इसी आकर्षण के कारण वे उठते-बैठते सोते-जागते, पढ़ते-खेलते, इन कविताओं को गुनगुनाते हैं।
‘गीत गुनगुनाओ’ मेरा दूसरा बाल-गीत संग्रह है। मेरा पहला बाल-गीत संग्रह ‘गीत-गुलशन’ 2001 में ‘राजस्थान साहित्य अकादमी’ के सौजन्य से प्रकाशित हुआ था। इसके बाद बहुत से बाल-गीत लिखे और वे विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित भी होते रहे परंतु उनके संग्रह प्रकाशित न करवा पाई। परंतु इन दिनों मैंने यह महसूस किया कि अधिकाधिक बालकों को लम्बे समय तक बालगीत उपलब्ध कराने के लिए बाल-गीत संग्रह प्रकाशित करवाने की नितांत आवश्यकता है। बस इसी प्रयास में इस बाल-गीत संग्रह को तैयार किया है।
बचपन आज भी भोला और भावुक होता है लेकिन हम उन पर ऐसे-ऐसे तनाव और दबाव का बोझ डाल रहे हैं कि बच्चे कुम्हला रहे हैं। उनकी खनकती-खिलखिलाती किलकारियाँ बरकरार रहें, इसके ईमानदार प्रयास
बचपन आज भी भोला और भावुक होता है लेकिन हम उन पर ऐसे-ऐसे तनाव और दबाव का बोझ डाल रहे हैं कि बच्चे कुम्हला रहे हैं। उनकी खनकती-खिलखिलाती किलकारियाँ बरकरार रहें, इसके ईमानदार प्रयास हमें ही तो करने हैं इसलिए यह ज़रूरी है कि हम कोमल बचपन की यादें सहेजें और उन्हें मुलायम-मुस्कुराता-लहलहाता बचपन दें। ताकि उनका नटखट रुप यूँ ही खटपट करता रहे, मीठे-तुतलाते बोलों से चहकता-महकता रहे।बस इसी प्रयास में रची गई है यह पुस्तक- खट्टा मीठा बचपन जिसमें एक आम नटखट बच्चे के जीवन में घटित घटनाओं के माध्यम से मनोरंजन है तथा छिपी हुई सीख भी।
लेखिका एवं संपादिका: कुसुम अग्रवाल
आवरण: पार्थो मोंडल
चित्रांकन: गणेश
इस पुस्तक में ऐसे व्यक्तियों के बचपन की सच्ची कहानियां हैं जिन्होंने अपने जीवन में बहुत से ऐसे काम किये और ऊंचाइयों को छुआ कि उनका जीवन हमारे लिए प्रेरणा स्रोत्र बन गया है।
इस पुस्तक में ऐसे व्यक्तियों के बचपन की सच्ची कहानियां हैं जिन्होंने अपने जीवन में बहुत से ऐसे काम किये और ऊंचाइयों को छुआ कि उनका जीवन हमारे लिए प्रेरणा स्रोत्र बन गया है।
कहानियों में बताया गया है कि उन व्यक्तियों ने अपने बचपन में किन-किन कठिनाइयों का सामना किया।परंतु फिर भी वे नहीं डरे और अंत में उन्होंने अपने लक्ष्य को प्राप्त किया साथ ही मानवता की सच्चे सेवक के रूप में पहचाने गए।
चाहे विज्ञान का क्षेत्र को या कला का,चाहे राजनीति का क्षेत्र हो या धर्म का या हम खेलों और देश-प्रेम की बात करें, हर क्षेत्र में सफलता पाने के लिए जन्मजात प्रतिभा के साथ-साथ बचपन से ही ईमानदारी और सच्चाई सादगी बहादुरी तथा धैर्य जैसे सद्गुणों और सच्ची लगन का होना भी ज़रूरी है।
सभी के पास पर्याप्त साधन नहीं होते। हमें अपने सीमित साधनों का उपयोग करके ही आगे बढ़ना होता है। महान पुरुषों का बचपन भी ऐसा नहीं लगता परंतु फिर भी वे आगे बढ़े। क्योंकि उसमें साहस और क़ीमतों की कोई कमी नहीं थी महान पुरुषों का बचपन भी आम बच्चों जैसा ही था हाँ इतना अवश्य कह सकते हैं कि पूत के पाँव पालने में ही नज़र आ जाते है। यह कहावत महान व्यक्तियों पर अवश्य चरितार्थ होती है।
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