भोरमदेव मंदिर पर, अंग्रेज अधिकारियों के बाद डॉ. सीताराम शर्मा और डॉ. गजेन्द्र कुमार चन्द्रौल जैसे विद्वानों के अध्ययन-क्रम में अब अजय चंद्रवंशी ने बीड़ा उठाया है। वे न सिर्फ क्षेत्रीय इतिहास, बल्कि फिल्म, साहित्य आदि के भी सजग अध्येता हैं और तथ्यों की प्रस्तुति में रोचकता और विश्वसनीयता का संतुलन बनाए रखते हैं। उनकी यह पुस्तक भोरमदेव से संबंधित अब तक प्रकाशित लगभग सभी महत्वपूर्ण प्रकाशन, स्रोत-सामग्री का उपयोग कर तैयार की गई है, जिसमें उनकी सजग मीमांसा-दृष्टि के भी दर्शन होते हैं। इसलिए यह प्रकाशन भोरमदेव, क्षेत्रीय इतिहास और कला परंपरा की दस्तावेज के रूप में उपयोगी प्रतिमान साबित होगा, मेरा ऐसा विश्वास और शुभकामनाएं हैं।
-राहुल कुमार सिंह