मैं लेखक अभिषेक पटेल मैंने अपने नजरिए से देखा और समझा है आपका अपना नजरिया अलग हो सकता है
लेकिन मैंने जो देखा समझा जाना उसके हिसाब से कह रहा हूं ,
आज कल के पीढ़ियों के लोग हिंदी से ज्यादा लगाव नहीं रख रहे हैं लेकिन प्यार और मोहब्बत जहां है वहा जरूर आकर्षित होते हैं इसलिए मैंने उन्हें अपनी किताब ‘ धुंधलें ख़्वाब ’ में प्यार और मोहब्बत की कविताएं लिखकर हिंदी की ओर आकर्षित करने का प्रयास किया है ।
मेरी यह किताब ‘हिंदी माँ’ के चरणों में एक छोटी सी भेंट है । मैं हिंदी साहित्य में छोटा सा योगदान देने का प्रयास किया है । मेरे से पहले कई आए मेरे बाद कई आयेंगे इसी तरह हिंदी माँ कारवां अनंत काल तक चलता जाएगा ।
“चिरागों के बाद इक नया चिराग आएगा
'हिंदी माँ' का कारवां यूं ही चलता जाएगा ।”
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