दो जून की रोटी
मजदूर वर्ग हमारे देश का वो हिस्सा है जिस पर देश की नींव, देश की बुनियाद टिकी हुई है। किसी भी देश की उन्नति का आधार ये मजदूर वर्ग ही है जैसे एक शरीर को यथावत सुचारु रूप से चलाने के लिए हृदय का निरंतर कार्य करना सर्वाधिक आवश्यक है उसी प्रकार मजदूर वर्ग किसी भी देश में हृदय के रूप से निरंतर कार्य करने को अग्रसर रहता है इनके रुकने का अर्थ है देश की प्रगति में रोड़ा आ जाना, किंतु इसी वर्ग को अपने अधिकारों से वंचित रखा गया, कितने ही परिश्रम के उपरांत भी इस वर्ग को उसका हक पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं हो पाया। दो जून की रोटी में मजदूर वर्ग की वेदना, पीड़ा का मार्मिक वर्णन किया गया है, तानाशाह वाले समाज में उनकी स्तिथि को दर्शाने का मूल ध्येय उनके हक के अधिकारों को उन्हें दिलवाना और उनकी भीतरी परिस्थितियों को समाज के सामने लाना ही है। इस पुस्तक के माध्यम से यदि मजदूर वर्ग की स्तिथि में लेश मात्र भी सुधार आता है तो ये पुस्तक का संयोजन अपना मूल ध्येय प्राप्ति में सफल होगा।।