एहसास-ए-जिं़दगी नाम से लिखित यह ऊटपटांग चंद पृष्ठ समर्पित है उन तमाम ऐसे व्यक्तित्वों को जो दिल के अन्दर आग लिए बैठ है, लेकिन उपर्युक्त शब्दों के न मिलने से या उपर्युक्त भावों के क्रियान्वित न होने की वजह से उनके दिल के भाव उनके अन्दर ही रह जाया करते है और वह एक घुटन में घुट-घुट कर जीते है और चाह कर भी अपने भावो को उचित आयाम नहीं दे पाते हैं।
उक्त चन्द पृष्ठों में कविता और शायरी के द्वारा एक तालमेल बनाकर कुछ ऐसा कहने का प्रतीत करने का प्रयास किया है जो कुछ-कुछ एहसास-ए-ज़िंदगी को छूने का प्रयास करता हो। लिखने को तमाम फिलॉसफी पड़ी है, कहते है कि जहाँ न पहुंचे रवि वहाँ पहुंचे कवि। लेकिन तमाम अनुभव और दर्दो को समेटते हुए प्रथम बार प्रयास किया है कविता और शेर रूपी चंद पंक्तियों के माध्यम से कुछ कहने का। खामियों का मिलना स्वाभिवक है और अगर खामियां नहीं मिलती है तो फिर मनुष्य की श्रेणी में आने के लायक ही नही बचूंगा इसलिए इसमें आयी खामियों की आलोचना करने के बजाये समालोचनात्मक तरीके से अवगत कराते हुए अपने विचारों को रू-ब-रू करते हुए उचित माध्यम से अपने स्नेह पूर्ण आशीर्वाद प्रदान कीजिएगा