गाँव की गोरी। एक ऐसी लड़की की दास्तां, जिसे उसके घर वालों ने उसकी कोख में पलती हुई बच्ची के लिए ठुकरा दिया। समाज से ठुकराए जाने के बाद उसने कैसे खुद को जिंदा रखा और कैसे उसने अपनी पेट में पल रही बच्ची को जन्म दिया और फिर पाला। कैसे उसने एक चुटकी उधार के सिंदूर को अपनी ताकत बनाया और फिर उस लड़की गोरी को ऐसी शिक्षा दी कि उसने ज़माने में एक ऐसा मुकाम हासिल किया कि समाज वालों ने अपने दांतों तले उंगलियाँ दबा ली। कमलेश और गोरी के संघर्ष की दास्तां है गाँव की गोरी।