आज कहीं भी, किसी भी ऑफिस में चले जायें, स्थिति यह है कि हर जगह छल प्रपंच छाया हुआ है, ऐसा लगता है कि ईमानदार व्यक्ति के लिए इस समाज में कहीं भी काम करने के लिए जगह ही नहीं है। इतना ही नहीं, धूर्तता का आलम यह है कि ईमानदार और परिश्रमी कर्मचारी पूरे साल मेहनत करते हैं और धूर्त ऑफिसर व कर्मचारी प्रपंच कर सारे लाभ पर डाका डाल देते हैं । हम लोगों को सब कुछ होते हुये दिखाई देता है लेकिन परिस्थितियाँ कुछ ऐसी रच दी जाती हैं कि आंखों से दिखाई देता सच, झूठ नजर आने लगता है और एक काल्पनिक झूठ किसी चमत्कार की तरह सच के समांतर खड़ा कर दिया जाता है । इस शॉर्ट टर्म काल्पनिक झूठ का सच बस इतना होता है कि वह सेन्सेशन पैदा कर मनचाहे लोगों को लाभ पहुंचा कर विलुप्त हो जाये। इस उपन्यास की पृष्ठभूमि यही शॉर्ट टर्म काल्पनिक झूठ है जो सम्पूर्ण कार्पोरेट जगत की हकीकत बन गया है । सटायर की दुनिया से चल कर व्यंग्य उपन्यास तक का सफर अनजाने ही मुझे गहरी संतुष्टि की अनुभूति प्रदान कर रहा है ।
प्रसिद्ध साहित्यकार रणविजय सिंह सत्यकेतु
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