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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Pal"Unless new wind blows, how will fragrance arise in creativity. Today time is creating its new dimensions and the era of monopoly in literature is standing on the verge of breaking down. Well, I can't say much about this right now, I can just do my work. What I have been doing continuously, thirty years have passed and now I am continuously getting praise from people for my work, continuous publication is happening and the reach from readers to editors is increasing. There are two main purposes of my writing.The first is that there should be so much appeal in the composition that readers startRead More...
"Unless new wind blows, how will fragrance arise in creativity. Today time is creating its new dimensions and the era of monopoly in literature is standing on the verge of breaking down. Well, I can't say much about this right now, I can just do my work. What I have been doing continuously, thirty years have passed and now I am continuously getting praise from people for my work, continuous publication is happening and the reach from readers to editors is increasing. There are two main purposes of my writing.
The first is that there should be so much appeal in the composition that readers start reading Hindi literature and the second is that "Prayag Raj", which has been the center of literature, should once again be recognized for its cultural heritage."
Achievements
आज कहीं भी, किसी भी ऑफिस में चले जायें, स्थिति यह है कि हर जगह छल प्रपंच छाया हुआ है, ऐसा लगता है कि ईमानदार व्यक्ति के लिए इस समाज में कहीं भी काम करने के लिए जगह ही नहीं है। इतना ह
आज कहीं भी, किसी भी ऑफिस में चले जायें, स्थिति यह है कि हर जगह छल प्रपंच छाया हुआ है, ऐसा लगता है कि ईमानदार व्यक्ति के लिए इस समाज में कहीं भी काम करने के लिए जगह ही नहीं है। इतना ही नहीं, धूर्तता का आलम यह है कि ईमानदार और परिश्रमी कर्मचारी पूरे साल मेहनत करते हैं और धूर्त ऑफिसर व कर्मचारी प्रपंच कर सारे लाभ पर डाका डाल देते हैं । हम लोगों को सब कुछ होते हुये दिखाई देता है लेकिन परिस्थितियाँ कुछ ऐसी रच दी जाती हैं कि आंखों से दिखाई देता सच, झूठ नजर आने लगता है और एक काल्पनिक झूठ किसी चमत्कार की तरह सच के समांतर खड़ा कर दिया जाता है । इस शॉर्ट टर्म काल्पनिक झूठ का सच बस इतना होता है कि वह सेन्सेशन पैदा कर मनचाहे लोगों को लाभ पहुंचा कर विलुप्त हो जाये। इस उपन्यास की पृष्ठभूमि यही शॉर्ट टर्म काल्पनिक झूठ है जो सम्पूर्ण कार्पोरेट जगत की हकीकत बन गया है । सटायर की दुनिया से चल कर व्यंग्य उपन्यास तक का सफर अनजाने ही मुझे गहरी संतुष्टि की अनुभूति प्रदान कर रहा है ।
This book is aknoledeged by World Famous Writer Dr. Shashi Tharoor
Translation of famous author Murli Manohar Srivastava's Book
"Abhi To Jeena Shuru Kiya Hai "
By Deepak Danish
This book is aknoledeged by World Famous Writer Dr. Shashi Tharoor
Translation of famous author Murli Manohar Srivastava's Book
"Abhi To Jeena Shuru Kiya Hai "
By Deepak Danish
This book is aknoledeged by World Famous Writer Dr. Shashi Tharoor
Translation of famous author Murli Manohar Srivastava's Book
"Abhi To Jeena Shuru Kiya Hai "
By Deepak Danish
This book is aknoledeged by World Famous Writer Dr. Shashi Tharoor
Translation of famous author Murli Manohar Srivastava's Book
"Abhi To Jeena Shuru Kiya Hai "
By Deepak Danish
"मानवता की ऊँचाई का जायजा लेने वाली ये कविताएँ कोमल कविमन की गहरी संवेदना की सघन अभिव्यक्तियाँ हैं। संग्रह में मैत्री, स्नेह और वात्सल्य जैसी मानवीय भावनाओं से परिपूरित अनेक क
"मानवता की ऊँचाई का जायजा लेने वाली ये कविताएँ कोमल कविमन की गहरी संवेदना की सघन अभिव्यक्तियाँ हैं। संग्रह में मैत्री, स्नेह और वात्सल्य जैसी मानवीय भावनाओं से परिपूरित अनेक कविताएँ हैं लेकिन ये वैसी मूल्यपरक कविताएँ नहीं हैं जिनमें जब तक दो-चार बार प्रेम-प्रेम या स्नेह-स्नेह शब्द न आए तब तक हम मान ही न पाएँ कि यह भी भला कोई रसयुक्त कविता है! फ़ेसबुक और तथाकथित नवीन जनसंचार माध्यमों के ज़माने में मुरली की कविताओं के अर्थ गूढ़ हैं। उतने ही गूढ़, जितने किसी कवि की ज़िन्दगी में होते हैं। संकोच, सार्थकता, कोमलता, विचारशीलता और भोक्ता के सत्य से युक्त इस कवि को ध्यान से पढ़े जाने की दरकार है। इस कविता संग्रह में तमाम कविताएँ हैं जो हमारी जड़ों, गुम होती चली जा रही हमारी विरासत, हमारी सोच और चिंतन की विसंगतियों की ओर इशारा करती हैं। ये कविताएँ संग्रह में सुसंगठित रूप से अलग-अलग क्रम में उपस्थित होती हैं लेकिन हमारे वर्तमान परिवेश और मानवता की मनोवैज्ञानिक पड़ताल करती हैं। ये सहज मानवीय गरिमा और अस्तित्व के लिए संघर्ष करती हुई कविताएँ हैं। यहाँ तमाम ऐसे देशज शब्द हैं, जिन्हें पढ़कर आनंद तो आता है लेकिन दुख भी होता है कि उन शब्दों को बड़ी चालाकी से अर्थविहीन और निरर्थक बनाया जा रहा है। अपनी भाषा के संबंध में यहाँ यह अहसास होता है कि किस तरह हम सब लोगों को एक खास भाषा और एक विशेष संस्कृति में रंगने की खतरनाक साजिशें जारी हैं। कुल मिलाकर यह एक सार्थक और पठनीय कविता संग्रह है क्योंकि यहाँ जीवन ही कविता बन गया है।"
प्रांजल धर ( प्रसिद्ध साहित्यकर )
अपनी छोटी बड़ी कविताओं के जरिए मुरली मनोहर श्रीवास्तव सच्ची, सादगी भरी और ईमानदार जीवन की बार बार वकालत करते दिखाई देते हैं। वह बार बार मोहब्बत की बातें करत
अपनी छोटी बड़ी कविताओं के जरिए मुरली मनोहर श्रीवास्तव सच्ची, सादगी भरी और ईमानदार जीवन की बार बार वकालत करते दिखाई देते हैं। वह बार बार मोहब्बत की बातें करते हैं, संग-साथ के मनोरथ भाव रचते हैं। मशीनी लाइफ के मारक प्रहार से बचने के लिए यह जरूरी भी है। शक और शुबहा को दूर करने के लिए असमंजस में बने रहने की बजाय वह स्नेहिल स्पर्श की जरूरत पर बल देते हैं। यानी वह निरंतर संवाद के आकांक्षी दिखाई देते हैं ताकि दूरियां कम हों और साहचर्य फलित हो। विकास की आंधी से वर्तमान को बचाने के लिए सुनहरे अतीत से प्रेरणा लेने से उन्हें गुरेज नहीं, बशर्ते उसमें बेहतरी की गुंजाइश हो। अच्छी भावनाओं से तैयार नए कविता संग्रह के लिए मुरली मनोहर श्रीवास्तव जी को बधाई।
भविष्य के लिए शुभकामनाएं।
-रणविजय सिंह सत्यकेतु
इलाहाबाद
(साहित्यकार और वरिष्ठ पत्रकार )
श्री मुरली मनोहर श्रीवास्तव की सामाजिक सामाजिक संवेदनशीलता एवं सम सामयिक विषयों पर अपने विचारों की मौलिक अभिव्यक्ति सहसा अत्यन्त रोमांचित करती है । इसी कारण इनकी कोई भी रचना पढ़ना प्रारम्भ करने पर जब तक समाप्त नहीं होती उसे छोडना मुश्किल होता है ।
डॉ राजीव त्रिपाठी
(प्रोफेसर इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग विभाग & पूर्व निदेशक)
MNNIT इलाहाबाद
प्रयागराज ।
“इस डर से नहीं पढता कि इमोशनल न हो जाऊं” सच कहूँ जब मेरे मित्र ऐसा कहते हैं तो सोच में पड़ जाता हूँ। भीतर खुशी भी होती है कि जो कह रहा हूँ वह दिल और दिमाग को चीर कर पढ़ने वाले क
“इस डर से नहीं पढता कि इमोशनल न हो जाऊं” सच कहूँ जब मेरे मित्र ऐसा कहते हैं तो सोच में पड़ जाता हूँ। भीतर खुशी भी होती है कि जो कह रहा हूँ वह दिल और दिमाग को चीर कर पढ़ने वाले को अंतस्तल तक स्पर्श कर रहा है । जिंदगी एक लाइव परफारमेन्स है । यहां जो कुछ हुआ उसका रिपीट टेलीकास्ट नहीं होता । यह जिंदगी किसी हसीन फिल्म की तरह है , बस फर्क यह है कि यहां आपको अपने सींस के शॉट री टेक का मौका नहीं मिलता।
सो न जाने क्यों जब भी कुछ कहता हूँ तो मुझे भी नहीं पता होता कि , कह क्या रहा हूँ यह लाइफ कोई स्क्रिप्टेड तो है नहीं कि किसी राईटर डायरेक्टर ने मुझे बता दिया , स्टेज पर जाओ कैमरे के सामने खड़े हो और यह एक्टिंग करते हुए ऐसे डायलाग बोल दो । हमें बहुत बार लगाता है कि , घटनाएं रिपीट हो रही हैं जैसे “हिस्ट्री रिपीट इट सेल्फ” लेकिन ऐसा होता नहीं है क्योंकि वक्त अभी निगेटिव एक्सिस पर प्लॉट नहीं होता।
देखिये , कविता, कहानी, व्यंग्य , उपन्यास आदि मै लिखता हूँ उसे कहता नहीं हूँ । लिखने और कहने में फर्क है , लिखता हूँ तो कहीं न कहीं कुछ होता है जिसे संस्कार में बाँध देता हूँ , जैसे कविता , कहानी और व्यंग्य के अपने संस्कार होते हैं जो भाव व कैरेक्टर के साथ चलते हैं , लेकिन कहने में कहीं कुछ होता ही नहीं , इसलिए मुझे पता ही नहीं होता कि कह क्या रहा हूँ , बस कहता चला जाता हूँ और मज़ा यह कि मेरे बिना कुछ कहे भी आप वह पढ़ लेते हैं जो मैने कहा । शब्द ही तो हैं जो पढ़ रहे हैं और मै कहता जा रहा हूँ , बात आपके दिल को सुनाई दे रही है। पढ़ तो आपकी आँखें रही हैं और सुनाई दिल को दे रहा है।
यह पुस्तक NBT में प्रकाशित मुरली मनोहर श्रीवास्तव के सर्वाधिक पापुलर ब्लाग्स का कलेक्शन है , जिसे रीडर्स ने मोस्ट पापुलर ब्लाग्स की कैटेगरी में ला खड़ा किया है ।
यह ब्ला
यह पुस्तक NBT में प्रकाशित मुरली मनोहर श्रीवास्तव के सर्वाधिक पापुलर ब्लाग्स का कलेक्शन है , जिसे रीडर्स ने मोस्ट पापुलर ब्लाग्स की कैटेगरी में ला खड़ा किया है ।
यह ब्लाग्स पाठक के भीतर एक लहर पैदा करने के साथ ही उसे एक बार फिर से जीने के लिए तैयार कर देते हैं , जिसे पढ़ कर व्यक्ति अपने दिल के भीतर हंसने और रोने लगता है । एक बार किसी ब्लाग को पढ़ना शुरू करने के बाद वह कुछ इस तरह खो जाता है कि उसे अपना और अपने आस पास का पता नहीं होता ।
सो वह जो आपके दिल तक पहुँच जाता है और जो मैं बिना कहे कुछ कह देता हूँ , बस इसे ही यहाँ ले आया हूँ ।“ कि हम और आप किसी अनजाने रिश्ते में बंधे हैं “ , कि जहां आप मुझे जानते हैं औ
सो वह जो आपके दिल तक पहुँच जाता है और जो मैं बिना कहे कुछ कह देता हूँ , बस इसे ही यहाँ ले आया हूँ ।“ कि हम और आप किसी अनजाने रिश्ते में बंधे हैं “ , कि जहां आप मुझे जानते हैं और मै आपको । एक अजीब सी जान पहचान है यह , जो बस शब्दों के माध्यम से भीतर तक बैठी है । यह सालों की नहीं युगों की पहचान है जो दिखाई नहीं देती बस खामोशी के साथ चली जा रही है। यह वही है जो, “ मै बिना कुछ कहे कह देता हूँ और आप बिना कुछ बोले सुन लेते हैं”
सभी कहानियाँ मैगजीन में प्रकाशित हैं , पत्रिकाओं का सर्कुलेशन लाखों में है
कहानी का किस्सा खुद में बड़ा दिलचस्प है। इसे सन 2018 के अप्रैल के बाद आए किसी मेल से शुरू करता
सभी कहानियाँ मैगजीन में प्रकाशित हैं , पत्रिकाओं का सर्कुलेशन लाखों में है
कहानी का किस्सा खुद में बड़ा दिलचस्प है। इसे सन 2018 के अप्रैल के बाद आए किसी मेल से शुरू करता हूं । एक दिन मेल चेक कर रहा था देखा तो मेरी सहेली के संपादक की तरफ से एक मेल आया था , धन्यवाद देते हुए , कि हम लोग आपके आभारी हैं , आपकी रचनाओं ने हमारी पत्रिका को हिंदी की सर्वाधिक बिकने वाली पत्रिका बना दिया है।
मैंने देखा तो, मुझे गूगल पर विकिपीडिया में डाटा मिल गया पत्रिका का सर्कुलेशन तीन करोड़ वार्षिक दिखा रहा था। लेकिन
बात कहीं बड़ी थी और इसे गंभीरता से देखने पर यह मुझे और बड़ी लगी।
किसी पत्रिका का करोड़ों में सर्कुलेशन और उस पत्रिका के संपादक का अपने लेखक को धन्यवाद देते हुए मेल भेजना साथ में यह अनुरोध कि आप अपना सहयोग हमें इसी तरह प्रदान करते रहेंगे , मुझे रोमांचित करने वाला था।ऐसी पत्रिका में छप जाना ही बड़ी बात होती है धन्यवाद की बात कौन करे । खैर मैं लगातार लिख रहा था और छप भी रहा था यह प्रकाशन इतना हो चुका था कि मेरे छपने की भूख मिट चुकी थी लेकिन इस मेल ने मुझे लिखने के प्रति गंभीर कर दिया।
मैं प्रतिमाह लाखों लोगों तक अपनी कहानियों के पढ़े जाने को लगातार सोच रहा था। अभी बहुत कुछ बाकी था।
न्यूज पेपर में व्यंग्य लिखते हुए मेरा अनुमान सत्तर हजार एक लाख रीडर्स तक रहा , फिर पता चला ऐसा नहीं है किसी भी नेशनल पेपर का एडिट पेज पूरे देश भर में वही रहता है और कई पेपर्स की यह सर्कुलेशन साठ सत्तर लाख प्रतिदिन है।
This is
Translation of famous author Murli Manohar Srivastava Book
"Abhi To Jeena Shuru Kiya Hai "
By
Deepak Danish
This is
Translation of famous author Murli Manohar Srivastava Book
"Abhi To Jeena Shuru Kiya Hai "
By
Deepak Danish
दिल को छूती कविता की पुस्तक , जो बस सामान्य भाषा में हृदय में उतर जाती है । साहित्य कोई ऐसी बात नहीं है जो किसी खास शब्द और भाषा से जन्म लें । हमारे और आपके भीतर जो भाव हैं उनकी अभिव्
दिल को छूती कविता की पुस्तक , जो बस सामान्य भाषा में हृदय में उतर जाती है । साहित्य कोई ऐसी बात नहीं है जो किसी खास शब्द और भाषा से जन्म लें । हमारे और आपके भीतर जो भाव हैं उनकी अभिव्यक्ति ही साहित्य है ।
तुमने नहीं सुनी
और मेरी बात
लाखों तक जा पहुंची
तुम सुन लेते तो
खुदा जाने क्या होता।
यह पुस्तक नवभारत टाईम्स , राष्ट्रीय सहारा , हिंदुस्तान दैनिक सहित विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित मेरे व्यंग्य का संकलन है ।
सभी रचनायें वैसे तो देश काल परिस्थिति के अनुर
यह पुस्तक नवभारत टाईम्स , राष्ट्रीय सहारा , हिंदुस्तान दैनिक सहित विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित मेरे व्यंग्य का संकलन है ।
सभी रचनायें वैसे तो देश काल परिस्थिति के अनुरूप अलग अलग अर्थ रखती हैं लेकिन व्यंग्य होंने के कारण इन रचनाओं की प्रासंगिकता सदैव बनी रहती है ।
जिस प्रकार न्यूज पेपर में पाठकों ने इन रचनाओं को पढ़ा व सराहा है , मुझे विश्वास है यह पुस्तक समग्र रूप में मेरे पाठकों को और भी आनंद प्रदान करेंगी ।
यह पुस्तक किंडल प्लेटफार्म पर ई बुक के रूप में पहले से ही उपलब्ध है ।
इसका पेपर बैक फार्म में पाठकों तक पहुंचना मेरे लिए एक सुखद अनुभूति है । मैं Notion Press को इस पुस्तक के प्रकाशन के लिए हृदय से धन्यवाद देता हूँ ।
मुरली मनोहर श्रीवास्तव
बड़ी खामोशी से गुजर रही थी जिंदगी , कि किसी ने जैसे वक्त के सीमित होंने का अहसास करा दिया। बस गुजरते समय को पंख लग गए और जिंदगी में ठहराव आ गया। दोनों एक दूसरे के विरोधाभ
बड़ी खामोशी से गुजर रही थी जिंदगी , कि किसी ने जैसे वक्त के सीमित होंने का अहसास करा दिया। बस गुजरते समय को पंख लग गए और जिंदगी में ठहराव आ गया। दोनों एक दूसरे के विरोधाभासी भाव हैं , जिंदगी में ठहराव कुछ इस सेन्स में आया कि कुछ कर गुजरना है तो वक्त नहीं है और वक्त को पंख इसलिए लगे कि कुछ करने के लिए सिर्फ दौड़ने से काम नहीं चलेगा उड़ाना पडेगा। ऊपर वाले ने इंसान को कल्पना के पंख दिए हैं जिस से वह उड़ान भर ले।
यह जो काम करने का सिलसिला है वही तो मुझे ज़िंदा रखता है। मुझे काम न हो तो थकान हो जाती है , एक अजीब सी आदत हो गयी है अपने एक एक मिनट को अपने पसंद के काम में लगा देने की और तब खुद ब खुद अहसास होता है वक्त बहुत कम है।
सम्भावना कविता संग्रह सन 2018 में प्रकाशित हुआ था । इस कविता संग्रह को दैनिक जागरण व लमही द्वरा सन 2018 में प्रकाशित श्रेष्ठ साहित्यिक पुस्तकों में शामिल किया गया है । इस पुस्तक की सम
सम्भावना कविता संग्रह सन 2018 में प्रकाशित हुआ था । इस कविता संग्रह को दैनिक जागरण व लमही द्वरा सन 2018 में प्रकाशित श्रेष्ठ साहित्यिक पुस्तकों में शामिल किया गया है । इस पुस्तक की समीक्षा लिखते हुये अमर उजाला ने इसे "कुछ नया तो है" माना है ।
यह पुस्तक साहित्य जगत में लगातार सराही जा रही है और नित नए आयाम स्थापित कर रही है । पुस्तक का अग्रेजी में अनुवाद हो चुका है जो 'Possibility' के नाम से किंडल पर पूरे विश्व में उपलब्ध है । यह घटना हिन्दी साहित्य जगत के लिए नई घटना के रूप में सामने आई है । अधिकांशत: हम लोग अग्रेजी से हिन्दी में अनुदित पुस्तकें ही पढ़ते हैं या उन पुस्तकों के ही बारे में जानते - सुनते हैं । हिन्दी लेखक जो अग्रेजी में लिखते हैं वे मूलत; अग्रेजी पुस्तक लिखते हैं और हम उन पुस्तकों के अग्रेजी से हिन्दी में हुये अनुवाद पढ़ते हैं ।
इसके विपरीत यह पुस्तक हिन्दी भाषा में लिखी गई है और इस पुस्तक का अग्रेजी अनुवाद हुआ है जो विदेशों में बहुत पसंद किया जा रहा है ।
यह पुस्तक सन 2000 में प्रकाशित हुई है । इस पुस्तक का प्रथम संस्कारण प्रकाशित होते ही पुस्तक पापुलर हो गई थी । शीर्षक रचना सत्य जीतता है अनेक बार विभिन्न मंच पर पढ़ी गई व सराही गई है&n
यह पुस्तक सन 2000 में प्रकाशित हुई है । इस पुस्तक का प्रथम संस्कारण प्रकाशित होते ही पुस्तक पापुलर हो गई थी । शीर्षक रचना सत्य जीतता है अनेक बार विभिन्न मंच पर पढ़ी गई व सराही गई है ।यह रचना श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देती है । पुस्तक की भूमिका प्रसिद्ध कवि व वरिष्ठ साहित्यकार श्री अशोक चक्रधर जी ने लिखी है ।
पुस्तक की लगातार बनी हुई मांग को देखते हुये इसका द्वितीय संस्काण प्रकाशित हुआ है । द्वितीय संस्कारण में पुस्तक से जुड़ी कुछ और बातें लेखक ने शेयर की हैं जो बड़ी ही रोचक हैं ।
अशोक चक्रधर की लेखनी से :-
संघर्ष में अचानक लेखनी आती है और व्यक्तिगत जीवन का खून कर डालती है । यह खून जब पृष्ठों पर पड़ता है तो कविता की शक्ल अख़्तियार करता है ।जीवन के रण – मैदान में व्यक्ति की निजता लहूलुहान , आहात और क्षत – विक्षत हो जाती है और जीतती है लेखनी , जो अपने - पराये के मोहग्रस्त संबन्धों से ऊपर उठकर निर्वैयक्तिक हो चुकी होती है । मुरली मनोहर श्रीवास्तव की कविताएं पढ़ने के बाद कविता के बारे में उनकी समझ को लेकर कुछ ऐसी ही अवधारणा बनती है ।
न्यूनाधिक रूप से यह बात हर ‘जैनुइन’ कवि की काव्य प्रक्रिया पर लागू होती है । कविता संवेदनाओं की ईमानदारी और ज्ञान- निष्कर्षों की तथ्यात्मकता यदि नहीं आई तो कवि का आत्म स्वयं को धिक्कारने लगता है ........ और यहीं से प्रारंभ हो जाता है एक आत्म - संघर्ष । इस संकलन की अधिकांश कविताओं में इस आत्म – संघर्ष का कहीं वर्णनात्मक , कहीं विश्लेषणात्मक और कहीं तत्काल अनुभूव – प्रसूत लेखा जोखा है । इस आत्म –संघर्ष का फ़लक अत्यंत व्यापक है क्योंकि इसके मूल में जो दर्द है वह सीने में पलने वाला नहीं है । उसने मस्तिष्क से जन्म लिया है ।
Sambhavna is an individual’s deep probing into his own psyche and his responses to various stimuli in his environment. Hence at one level it is personal and yet it’s brilliance lies in the universality of its appeal. The reader finds himself reflected in many of the poems like The Distance, The Idealistic Mask, Tears etc.
I felt the powerful draw to the poems as I read them in Hindi first. Mr. Murli is a prolific writer no doubt, but
Sambhavna is an individual’s deep probing into his own psyche and his responses to various stimuli in his environment. Hence at one level it is personal and yet it’s brilliance lies in the universality of its appeal. The reader finds himself reflected in many of the poems like The Distance, The Idealistic Mask, Tears etc.
I felt the powerful draw to the poems as I read them in Hindi first. Mr. Murli is a prolific writer no doubt, but more than that he’s is earnest and honest in his expressions. There is no guile in what he writes. The reader is not led through a labyrinth of linguistic conundrums to deceive him, instead the poets forthright style, endears him to the reader.
Murli Ji chooses a wide variety of subjects as the poems will reveal but the presence of the Almighty, is clearly evident. A superior being, a driving force revealing to him the purpose of his life as the years go by, string the poems together.
The title Possibility is unique in itself, for it’s like a fluid situation with no finality to it. And life is exactly so Fluid, it can be moulded, shaped bettered always.
The poem “Truth of the DNA” reveals the poets anathema for material gain, vulgar display of wealth and the mindless race there of. He finds himself lost till his figurative death leads him back to the truth—- his DNA. This for me is his finest poem in this collection.
Amrita Chatterji
Ex-Faculty, English Literature
St. Josephs College Allahabad
पहली कहानी जहां परिवार और समाज में स्त्री के अस्तित्व की खोज है, वहीं दूसरी कहानी सीधे-सीधे होम आइसोलेशन में लेखक की आपबीती लगती है। आइसोलेशन में कथा नायक ने अपने आपको पढ़ा। वह घ
पहली कहानी जहां परिवार और समाज में स्त्री के अस्तित्व की खोज है, वहीं दूसरी कहानी सीधे-सीधे होम आइसोलेशन में लेखक की आपबीती लगती है। आइसोलेशन में कथा नायक ने अपने आपको पढ़ा। वह घरवालों से बुरा बर्ताव करता था, ऑफिस का गुस्सा घर में उतारता था। जबकि घरवाले उससे कितना स्नेह करते हैं। उसने कभी घर को ध्यान से नहीं देखा। वह सबसे कहता था, बहुत काम है-पर आएसोलेशन में पड़े रहने पर ऑफिस से कोई कॉल नहीं आई। इससे यह भी पता चलता है कि नौकरी को अपने घर, परिवार और अपने जीवन से भी अधिक महत्व दे डालना भी सही नहीं है।
अज्ञेय की एक बेहद चर्चित कविता की पंक्तियां हैं, 'दुख सबको मांजता है/और चाहे स्वयं सबको मुक्ति देना वह न जाने, किंतु/ जिनको मांजता है, उन्हें यह सीख देता है कि सबको मुक्त रखें।'
मुरली मनोहर श्रीवास्तव की यह किताब सिर्फ कोरोना के विरुद्ध नहीं, बल्कि किसी भी विपत्ति के विरुद्ध मनुष्यता को जूझने और जीतने का हौसला देगी। कल्लोल चक्रवर्ती ( संपादकीय मण्डल - अमर उजाला )
जिंदगी क्या देती है , जिंदगी क्या क्या दे सकती है ! और जिंदगी कितनी बड़ी है ---
जिंदगी क्या देती है - जैसे ही हम खुद को देखते हैं इसका पता लग जाता है । जिंदगी क्या दे सकती है
जिंदगी क्या देती है , जिंदगी क्या क्या दे सकती है ! और जिंदगी कितनी बड़ी है ---
जिंदगी क्या देती है - जैसे ही हम खुद को देखते हैं इसका पता लग जाता है । जिंदगी क्या दे सकती है , यह तब पता चलता है जब हम ज़िदगी से कुछ मांगते हैं । और यह जो तीसरा सवाल जिंदगी कितनी बड़ी है इसका पता बड़ी मुश्किल से चलता है ।
जिंदगी कितनी बड़ी है इसका पता तब चलता है जब जिंदगी वरदान देती है । बड़ी अजीब सी बात कह रहा हूँ , आपको आपकी जिंदगी से अलग कर रहा हूँ । इतना ही नहीं जैसे ही आप इस खयाल में डूबते हैं , तो लगता है दूर तो अब तक थे , आप अपनी ही जिंदगी से , अब उसके करीब आ गए हैं । दरअसल आप और आपकी जिंदगी एक ही है , बस अभी तक आप कभी अपनी जिंदगी में डूबे ही नहीं । और जैसे ही जिंदगी में डूबे कि आप , आप रहे ही नहीं । इतना ही तो जिंदगी का वरदान है कि आप और आपकी जिंदगी एक हो जाये ।
भ्रम
तुम
ख्वाब हो कि
हकीकत ,
यह भ्रम ताउम्र बना रहा,
और मैं जिंदगी को ख्वाब,
और ख्वाब को ,
जिंदगी समझ कर जी गया।
यह किताब आपको आपसे ही मिलवाती है ।
हिन्दी अकादमी दिल्ली द्वारा प्रकाशित ' सत्य जीतता है ' व दैनिक जागरण द्वारा सन 2017 की सर्वश्रेष्ठ साहित्यिक पुस्तकों में शामिल "संभावना" के पश्चात यह मेरा तीसरा कविता संग्रह है । स
हिन्दी अकादमी दिल्ली द्वारा प्रकाशित ' सत्य जीतता है ' व दैनिक जागरण द्वारा सन 2017 की सर्वश्रेष्ठ साहित्यिक पुस्तकों में शामिल "संभावना" के पश्चात यह मेरा तीसरा कविता संग्रह है । सत्य जीतता है के बाद मेरी दूसरी पुस्तक संभावना के प्रकाशन में मुझे 17 वर्ष लग गए । इस बीच लगातार पत्र पत्रिकाओं में लेखन करता रहा ।
मेरे व्यंग्य , नवभारत टाईम्स , राष्ट्रीय सहारा , हिंदुस्तान दैनिक , जागरण सखी सहित विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में आ रहे थे तो कहानियां मेरी सहेली , जागरण सखी , वनिता व दैनिक जागरण में प्रकाशित हो रही थीं । इस बीच कनाडा के मेरे मित्र श्री सुमन घई जी ने पुस्तक बाजार , कनाडा से मेरी दो पुस्तकें " गुरू गूगल दोऊ खड़े " व्यंग्य संग्रह व "क्षमा करना पार्वती" कहानी संग्रह प्रकाशित कर दिया । वस्तुत: 'सत्य जीतता है ' और फिर ' संभावना ' को जिस तरह से साहित्य जगत में सराहा गया उसने मुझे कविता के प्रति अपने नैसर्गिक लगाव से गहराई से जोड़ दिया ।कविता लिखी नहीं जाती , यह जन्म लेती है । इस पुस्तक की कवितायें पाठक को अपने जीवन व हृदय के आस पास नजर आती हैं ।
Notion Press ने मुझे यह अवसर प्रदान कर जिस प्रकार अपने पाठकों से मुझे जुडने का अवसर प्रदान किया है , उसके लिए मैं Notion Press के प्रकाशन टीम का हृदय से आभारी हूँ ।
मुरली श्रीवास्तव
यह पुस्तक नवभारत टाईम्स , राष्ट्रीय सहारा , हिंदुस्तान दैनिक सहित विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित मेरे व्यंग्य का संकलन है ।
सभी रचनायें वैसे तो देश काल परिस्थिति के अनुर
यह पुस्तक नवभारत टाईम्स , राष्ट्रीय सहारा , हिंदुस्तान दैनिक सहित विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित मेरे व्यंग्य का संकलन है ।
सभी रचनायें वैसे तो देश काल परिस्थिति के अनुरूप अलग अलग अर्थ रखती हैं लेकिन व्यंग्य होंने के कारण इन रचनाओं की प्रासंगिकता सदैव बनी रहती है ।
जिस प्रकार न्यूज पेपर में पाठकों ने इन रचनाओं को पढ़ा व सराहा है , मुझे विश्वास है यह पुस्तक समग्र रूप में मेरे पाठकों को और भी आनंद प्रदान करेंगी ।
यह पुस्तक किंडल प्लेटफार्म पर ई बुक के रूप में पहले से ही उपलब्ध है ।
इसका पेपर बैक फार्म में पाठकों तक पहुंचना मेरे लिए एक सुखद अनुभूति है । मैं Notion Press को इस पुस्तक के प्रकाशन के लिए हृदय से धन्यवाद देता हूँ ।
मुरली मनोहर श्रीवास्तव
गूगल झूठ नहीं बोलता
आज लिखते हुये मेरी आँखों में आँसू हैं , जिन्हें अभी मैंने अपनी हथेलियों से पोंछा है । यह आसूँ न खुशी के हैं न दर्द के , शायद आनंद के हों अभी आसुओं की परिभाषा क
गूगल झूठ नहीं बोलता
आज लिखते हुये मेरी आँखों में आँसू हैं , जिन्हें अभी मैंने अपनी हथेलियों से पोंछा है । यह आसूँ न खुशी के हैं न दर्द के , शायद आनंद के हों अभी आसुओं की परिभाषा कहाँ कर पाया हूँ । क्या करूँ वही लिखता हूँ जो मन में आँखों में हृदय में अविरल किसी धारा सा बह रहा होता है । यह कौन सा स्रोत है , यह कौन सी नदी है जो अविराल प्रवाहमान है ।
देखने में आसूँ एक ही होते हैं देखने वाले की निगाह में । ऊपर वाला वह निगाह बहुत कम लोगों को देता है जो आसुओं की भाषा जानते हैं । यह कुछ वही भाषा है जब माँ घर से बाहर दूर कहीं नौकरी को जा रहे अपने बेटे को आशीर्वाद देते हुये साड़ी के कोर से आँख पोंछते हुये कहती है । मैं रो कहाँ रही हूँ , नहीं मैं रो नहीं रही यह- यह कुछ नहीं है । देखो हाथ लाओ देखो हाथ लगा कर मैं कहाँ रो रही हूँ । जबकि हाथ रखते ही वहाँ नमीं मिल जाती है और कहीं उन आसुओं को महसूस करने के लिए बेटे ने माँ के दिल पर हाथ रख दिया तो बस हिचकियाँ छूट पड़ेंगी और वह कहेगी नहीं मैं रो कहाँ रही हूँ । मेरा बेटा पढ़ने जा रहा है कि मेरे बेटे को अच्छी नौकरी मिली है मैं खुश हूँ । मैं रो कहाँ रही हूँ ।
मेरे मित्र और जानने वाले जो सालों से बस एक लाईन कह देते हैं ‘ मुरली तुम बहुत अच्छा लिखते हों ‘ न जाने मुझ से क्या कराते जा रहे हैं । यह जो “मुरली की दुनियाँ” है , जिसे लाखों ब्लागर की भीड़ में गूगल पढ़ने वालों , समीक्षकों प्रसंसकों के आधार पर सेकेंडों में ढूंढ कर दिखा देता है ‘Post by best bloggers in Hindi’ उनका हृदय से धन्यवाद ।
ट्रेनिंग में समय लग रहा था उसे जाने का उतावलापन भी था । समय तो लगा ट्रेनिंग पूरी होंने में , मुझे लगा आज यह अपने बच्चे का जन्मदिन मनाने जाना चाहती है लेकिन जा नहीं पा रही है मैं उस
ट्रेनिंग में समय लग रहा था उसे जाने का उतावलापन भी था । समय तो लगा ट्रेनिंग पूरी होंने में , मुझे लगा आज यह अपने बच्चे का जन्मदिन मनाने जाना चाहती है लेकिन जा नहीं पा रही है मैं उसकी भावनात्मक स्थिति समझ रहा था । मुझे लगा क्यों न इसके बच्चे के लिए एक कविता ही दे दूँ और मैंने छोटी सी चार लाईनें लिखी –
डाक्टर, इंजीनियर और अफसर
तो सभी बन जाएँगे ,
तुम मानस हो ,
बड़े हो कर ,
बस मानस ही बनना ।
जैसे ही ट्रेनिंग पूरी हुई मैंने लोकल को आर्डिनेटर को कहा यह अपने फेकलटी के बच्चे के लिए मेरी तरफ से बर्थ डे गिफ्ट भेज दो बस छोटी सी कविता है ।
वे बोले सर आप ही बोल कर सुना दीजिये ।
मैंने कविता सुना दी ।
मेरे लिए इस कविता के सुनाने के बाद की घटना काफी बड़ी हो गई । उस ट्रेनिंग में मेरे साथ 7 – 8 लोग और बैठे थे जिन पर मैंने ध्यान नहीं दिया था और मेरी कविता के वे भी श्रोता हो गए थे । जैसे ही कविता समाप्त हुई मुझे तालियाँ सुनाई देने लगीं । और जब मैंने चौंक कर देखा तो सभी मेरी इस चार पाँच लाईन पर ताली बजा रहे थे और फिर बोले , सर आपने बहुत सुंदर लिखा है । कहाँ मेरी एक छोटी सी भावना थी कि चलो एक छोटे से बच्चे के लिए कुछ लाईन लिख दें वह भी उसके सुंदर नाम से स्वत: मन में आ गई थीं लेकिन वे लाईनें सुनने वालों को इतनी अच्छी लगेंगी यह मैंने नहीं सोचा था । इतना ही नहीं जिस बच्चे के लिए लिखी हैं उनके पेरेंट्स के मन को भावनात्मक रूप से इस गहराई तक छू लेंगी कि वे अपनी थकान भूल कर इस कविता के लिए कृतज्ञ हो जाएँगे यह भी मैंने नहीं सोचा था । और इसके बाद मुझे आश्चर्य तब हुआ जब सुनने वालों में कुछ लोग बोल उठे सर प्लीज एक मेरे लिए भी लिख दीजिये ।
उम्मीद
रोज इस उम्मीद के साथ उठता हूँ,
आज दुनियां बदल जाएगी।
रोज दुनियां बदल जाती है,
उम्मीद नहीं।
हौसला
मुश्किलें
कभी खत्म नहीं होंगी,
हौसला है ,
उम्मीद
रोज इस उम्मीद के साथ उठता हूँ,
आज दुनियां बदल जाएगी।
रोज दुनियां बदल जाती है,
उम्मीद नहीं।
हौसला
मुश्किलें
कभी खत्म नहीं होंगी,
हौसला है ,
तो मुश्किलों से
दोस्ती कर लो।
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हर दर्द की एक उम्र होती है,
और कोई जरूरी नहीं कि,
किसी दर्द की उम्र,
उस आदमीं की उम्र के ,
बराबर या छोटी हो ,
और जब ,
किसी दर्द की उम्र ,
आदमीं की उम्र से ,
बडी होती है ,
तो उसे , पुनर्जन्म लेना पडता है,
उस बचे हुये दर्द की उम्र को , जीने के लिये,
वह पैदा ही दर्द में होता है,
और पूरी उम्र उसे ढ़ोता रहता है,
खत्म होंने के इन्तजार में,
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