आज कविता सामाजिक विसंगति, धार्मिक पाखंड, साम्प्रदायिकता, राजनीति, भ्रष्टाचार, शोषण आदि के लिए पीड़ित संत्रस्त समाज की ओर से आस्थामूलक प्रतिबद्धता का प्रतिनिधित्व करती है, सत्य और तथ्य का यथार्थ चित्र प्रस्तुत करती है। कवि की प्रगतिशील आस्था मानवीय सामयिक सरोकार को , नैतिक मूल्यों के क्षरण अथवा विषम परिस्थितियों को यथास्थिति व्यक्त करती है । कविता रचने के लिए भाव प्रमुख हैं। सर्वप्रथम कोई भाव कोई विचार हमारे मस्तिष्क में उदित होता है, शिल्प आदि बाद की बातें हैं।
प्रस्तुत कविता संग्रह ' गुलाब का गुलाब' में मैंनें अपनी छंदमुक्त कविताओं को संग्रहित किया है। कविताओं के विषय समसामयिक विषमताएं, विसंगतियों, प्रकृति, मानव प्रकृति आदि के साथ कुछ देखे कुछ भोगे हुए यथार्थ के शब्द-चित्र हैं । छंदमुक्त अभिव्यक्ति होते हुए भी मेरा प्रयास रहा है कि मेरी कविताएं शुद्ध गद्य न हो पाएं, इनमें सहज प्रवाह और गति रहे इसलिए कविताओं को एक सुगठित संरचनात्मक स्थापत्य देने की कोशिश की है जिनमें अन्तर्विरोध है, देश समाज का समकालीन दृष्टिकोण है । मेरी कविताएं सायास नहीं ,स्वतः स्फूर्त हैं जब जो विचार मन में उठे, उन्हें लिपिबद्ध कर लिया। कविता के अधिकांश विषय आसपास के जीवन से लिए हैं। यही मेरी लोकधर्मिता है, कविकर्म है।