1
क्यों न चूमूँ तुम्हारे नक्श-ए-क़दम
बानी-ए-इंक़लाब-ए-हुस्न हो तुम
2
अगर मिले कभी फ़ुर्सत तो देख लेना इन्हें
तुम्हारी आँखों में कुछ ख़्वाब छोड़े जाता हूँ
3
मक़तल में इम्तेहान नया दे रहे हैं हम
ख़ंजर को बढ़के अपना गला दे रहे हैं हम
4
अर्श से आई हूँ मैं आयत-ए-मुतलक़ की तरह
क़ल्ब-ए-हाज़िर पे कोई अपने उतारे मुझको
5
ये लोग कौन हैं आख़िर कहाँ से आते हैं
जो जिस्म नोच के फिर बेटियाँ जलाते हैं
ये किताब ग़ज़लों का एक ख़ूबसूरत संग्रह है मैं आशा करता हूँ कि ये किताब तमाम शायरी से मोहब्बत करने वाले और शायरी को पढ़ने वाले तमाम
लोगों को बहुत पसंद आयेगी।