"जिले पल पल इस कदर खुद को पहचान कर"कविता संग्रह में विकास कुमार ने जीवन जीते हुए जिंदगी के ढेर सारे अनुभवों को, मन की गहराई में छुपे भावनाओं को अपने शब्दों और वाक्य के माध्यम से कविता के रूप में बहुत ही सुंदर तरीके से साझा करने का प्रयास किए हैं।
इस कविता संग्रह में जिन विषयों के ऊपर कविता लिखी गई है वह सभी कविताएं आज के परिपेक्ष में सटीक बैठती है। जिंदगी के पल-पल के बारे में, जिंदगी के रिश्तों के बारे में,निसर्ग के बारे में , उम्मीदों के सहारे के बारे में कविताएं लिखी गई है।
विकास कुमार ने ऐसे कई विषय हैं जिसके ऊपर उन्होंने कविता लिखी है, जो सोए हुए मन को जगाने की ताकत रखती है , मन में नया उत्साह निर्माण करने की क्षमता, जीवन जीने का या उम्मीद जगा सकती है।
इस कविता संग्रह में जीवन की ढेर सारे संवेदनाओं को व्यक्त किया गया है।
उम्र के सभी वर्गों के लोगों का अनुभव इस किताब में कविता के माध्यम से व्यक्त किया गया है।
"तनहाई में", "जिंदगी की शिल्पकार हो गई" ," कहां नहीं ढूंढा मैं तुझको","कर उजाला खुद के मन में" "बचपन की यादें" " वक़्त निकालता गया उम्र ढलती गई"। ट्रैकमैन, और भी कई मन को छू लेने वाले विषयों के साथ विकाश कुमार द्वारा
"जिले पल पल इस कदर खुद को पहचान कर"कविता संग्रह में जीवन को समझने के लिए काफी सुंदर रचनात्मक प्रयास किया गया है।
अधिवक्ता गौतम कुमार
सिविल कोर्ट शेरघाटी (गया) बिहार।
Sorry we are currently not available in your region. Alternatively you can purchase from our partners
Sorry we are currently not available in your region. Alternatively you can purchase from our partners