जीवन कितना अनमोल है , इस बात का पता तब चलता है , जब हमारी सांसे छूटने को होती है। उस क्षण हमारे अंदर जीने की एक नई आस जाग जाती हैं। हम जीना चाहते है, हमे जीवन की कीमत समझ आने लगती हैं। कोरॉना भी हमारे जीवन में यही क्षण लेकर आया था! मैने और अपने देखा ही होगा कि कितनी हाहाकार मची हुई थी! चारो तरफ डर का साया छाया हुआ था! समय के साथ यह और भी खतरनाक होता गया! जीवन घरों में कैद था, फिर भी आजादी की मांग कोई नहीं कर रहा था,क्योंकि बाहर कोरॉना फैल रहा था! खालीपन, अकेलापन, सुनसान सड़के, शांत माहौल प्रकृति का मुख जरूर खोल रहे थे। प्रकृति में कुछ नयापन दिखाई दे रहा था पर जीवन के सभी रंग फीके पड़ चुके थे ! इस महामारी से हर कोई परेशान था!! कल,आज और कल में ,जो बीत गया,वो हम सब को पता है, क्या था.? हम कुछ इस तरह व्यस्त थे, हमारे पास सोचने तक का वक्त न था पर हमें आज का पता है कि हम किस संकट से जूझ रहे हैं!! लेखक ने हर तबके/वर्ग के लोगों के दर्द को बड़ी ही सहजता से अपनी पुस्तक # जीना सीखना पड़ेगा, कोरॉना के साथ # "काव्य संग्रह" में उतारा है। कोरॉना के चलते कैसे शिक्षा का रुख गया और कैसे मजदूरों का सुख गया, कोई चल दिया न जाने किस आस में कुदरत ने यह क्या खेल, खेल दिया! चहरा छुपाया बिन गलती के, कोरॉना ने फिर भी डराया भरी बस्ती में!!"जीना सीखना पड़ेगा,कोरोना के साथ" , "काव्य संग्रह" में लेखक ने कोरॉना के हालातो को कविताओं के माध्यम से प्रस्तुत किया है!यह काव्य संग्रह लेखक ने कोरॉना के आगमन के समय और उसके कुछ महीनों में क्या प्रभाव हुए ,तब लिखा था,पर प्रकाशित अब हुआ है।