कहते हैं एक झूठ को छुपाने के लिए सौ झूठ और बोलने पड़ते हैं | पर झूठ बोलने वाला कभी ये नहीं सोचता कि उसके झूठ का सामने वाले पर क्या प्रभाव पड़ेगा, या शायद सोचकर भी वो इसे ज्यादा भाव नहीं देता | झूठ बोलने के कई कारण हो सकते हैं – डर, घृणा, गुस्सा, या फिर ये भी हो सकता है कि कोई कारण हो ही नहीं | पर झूठ, झूठ ही होता है; और जिससे हम झूठ बोलते हैं उसे हम धोखा ही दे रहे होते हैं | हम चाहे अपने झूठ को कितना भी अपनी मजबूरी का नाम दे दें, पर फिर भी हम उस कर्म से अपना पीछा नहीं छुड़ा सकते जो हमने अपने झूठ से किसी को प्रभावित करके अर्जित किया | और जब हमारे झूठ से बनी परतें एक के बाद एक खुलती हैं, तो उसके अन्दर से निकला सच किसी के जीवन को कितना भयंकर रूप से प्रभावित कर सकता है, ये हम सोच भी नहीं सकते |
"झूठ की परत" झूठ की इन्हीं परतों में उलझे जीवन की कहानी है |
प्रत्याशा नितिन कर्नाटक प्रांत के मैसूर नगर की निवासी हैं | वह एक लेखिका एवं चित्रकार हैं | वो धर्म सम्बन्धी कहानियां लिखना पसंद करती हैं | उनका उद्देश्य ऐसी कहानियां लिखने का है जो लोगों को अपनी जड़ों से वापस जोड़ सकें एवं उनके मन में भक्ति भाव जागृत कर सकें | उनकी हिंदी एवं अंग्रेजी में लिखी कहानियां प्रज्ञाता नामक ऑनलाइन पत्रिका में प्रकाशित हुई हैं | उनकी पहली लघुकथा "मायापाश" एक राजकुमार के चरित्र की परीक्षा की कहानी है, जो किंडल पर उपलब्ध है |