जहां तक मेरे सोच का प्रकाश पहुंचेगा वहां तक के दृश्य को गर मैं अवलोकित करूं तो पाऊंगा की हर एक मनुष्य के अन्दर कोई न कोई कला अवश्य होती है और जो अपनी कला को पहचान जाता है, बुझने कि कगार में पड़ी कला को दोबारा प्रज्वलित कर देता है वो बहुत दूर तक पहुंच जाता है।