वह सारे जज़्बात जिन्हें आज हम चुटकी में दरकिनार कर सकते हैं, जब पहले-पहल महसूस हुए थे, तब उनका जो रुतबा था, वही रुतबा आज भी इस किताब में कायम है। यह छोटी -छोटी कविताएं, कच्ची-पक्की गजलें गज़लें, लावारिस शेर, मैं सच कहूं तो मेरी जिंदगी के तमाम जज़्बातों की तहरीरें हैं जो अधूरी रह कर भी मुकम्मल किस्सा बन गईं। मेरी डायरी में कई गज जगह इन किस्सों और जज़्बातों की है। यह अपने से लगेंगे आपको, अगर आप जज़्बाती हुए।