बचपन आज भी भोला और भावुक होता है लेकिन हम उन पर ऐसे-ऐसे तनाव और दबाव का बोझ डाल रहे हैं कि बच्चे कुम्हला रहे हैं। उनकी खनकती-खिलखिलाती किलकारियाँ बरकरार रहें, इसके ईमानदार प्रयास हमें ही तो करने हैं इसलिए यह ज़रूरी है कि हम कोमल बचपन की यादें सहेजें और उन्हें मुलायम-मुस्कुराता-लहलहाता बचपन दें। ताकि उनका नटखट रुप यूँ ही खटपट करता रहे, मीठे-तुतलाते बोलों से चहकता-महकता रहे।बस इसी प्रयास में रची गई है यह पुस्तक- खट्टा मीठा बचपन जिसमें एक आम नटखट बच्चे के जीवन में घटित घटनाओं के माध्यम से मनोरंजन है तथा छिपी हुई सीख भी।
लेखिका एवं संपादिका: कुसुम अग्रवाल
आवरण: पार्थो मोंडल
चित्रांकन: गणेश