द्वापर युग के महाभारतकालीन अपराजित योद्धा पितामह भीष्म के पश्चात वीर उधमसिंह के अतिरिक्त अन्य कोई महापुरुष सम्पूर्ण विश्व के इतिहास में दूर दूर तक भी दिखाई नहीं देता जो अपनी प्रतिज्ञा के लिए इतना समर्पित रहा हो जितना कि ये दोनों महापुरुष रहे हैं । क्रांतिवीर उधम सिंह ने बीस वर्षों के लम्बे अन्तराल तक अपनी प्रतिज्ञा की रक्षा करते हुए अंततः अपने प्राणों का बलिदान कर दिया । इस पुस्तक में वीर उधमसिंह के इसी धैर्य, साहस और बलिदान के बारे में विस्तार से लिखा है । इस पुस्तक में पश्चिम देशों की उपनिवेशवाद की अतृप्त तृष्णा के परिणामस्वरूप मिले दोनों विश्वयुद्धों के बारे में, और कोलंबस व वास्कोडिगामा के वास्तविक ध्येय पर भी चर्चा की गयी है जिसे इतिहासकारों ने हम से छिपा कर मात्र दोनों का महिमामंडन ही किया है । इस पुस्तक में अंग्रेजों की न्याय व्यवस्था में अथाह श्रद्धा रखने वाले तत्कालीन भारतीय शीर्ष राजनैतिक नेतृत्व और ग़दर पार्टी जैसे राष्ट्रभक्त दलों के बारे में भी विस्तार से लिखा गया है, ग़दर पार्टी उन राष्ट्र भक्तों की पार्टी थी जिन्होंने 1957 की क्रांति के पश्चात फिर से अंग्रेजों के विरुद्ध सशस्त्र क्रांति करने का प्रयास किया, और अंग्रेजों को इतना भयभीत कर दिया कि अंग्रेजों ने अपनी सेना को भी शस्त्रविहीन कर दिया था । और इस पुस्तक में डायर नाम के भ्रमजाल को भी दूर करने की कोशिश की है, जिससे ये पता चलता है कि डायर नाम के एक नहीं बल्कि दो व्यक्ति थे । इतिहास में रूचि रखने वालों के लिए और भी बहुत सी अद्भुत व अनकही जानकारियों का संग्रह है ये पुस्तक क्रांतिवीर उधमसिंह ।
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