इन्सान बनने के लिए इंसानियत को सीखना होगा । विचारों की चाहत, जन जाग्रति लोकतंत्र का एक रूप है।किसी की जिन्दगी में , व्यवस्था में हस्तक्षेप करना नहीं, कुछ पाने की कामना नहीं है। हो सकता है कि मेरे लिखें विचारों से आपके विचार मेल नहीं खाते हो , विचारों का सम्मान ना हो। यदि सम्मान , इज्ज़त देनी है तो इनको व्यवहारिक जीवन ( प्रेक्टिकल ) अमल में लाया जाए। अन्यथा यही सोच लीजिए कि हवा किधर से आती है, किधर जाती है। केवल अनुभव करो और सुस्त, निठल्ले इन्सान की तरह फल लेने का इन्तज़ार करो।
मेरे विचारों पर गौर किया जायेगा या नहीं ? मै नहीं जानता हूं। यदि गौर करने वाले दीया लेकर ढूंढने से भी नहीं मिले । फिर सोचूंगा कि हम कहां हैं? मै यहां धर्म की आलोचना नहीं कर रहा हूं । आलोचना भी सफ़लता का एक रूप है । समाज में फैली हुई बुराइयों , कमजोरियों को अपने हिसाब से बोलने की कोशिश कर रहा हूं। हर इन्सान को अपने विचार बयां ,व्यक्त करने की आज़ादी है। मै इस मौलिक अधिकार का उपयोग कर रहा हूं।
- सुरेन्द्र पैट्रिक
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