मंथन अर्थात चिंतन _मनन जो निरंतर हमारे भीतर बहता रहता है। जो हमारे ना केवल व्यक्तित्व को बल्कि हमारी प्रतिभा को भी प्रभावित करता है। अपने इस नवांकुर काव्यसंग्रह (मन मंथन )का पाठक बनने के लिए मैं आप सभी का हृदय से आभार व्यक्त करती हूं।
लेखन वास्तव में सृजन ही है और इसके लिए कल्पना में गोते लगाने से बेहतर है, वास्तविक भाव भूमि में उतरना ।यदि समाज और विचारों में आए बदलाव को जीना हो तो काव्य ही वह विधा है, जो आपको समुद्र मंथन के कलश से अमृत पान करा सकती है। समय-समय पर समुद्र की छाती पर उठती गिरती लहरों की तरह ही ,मैंने भी अपने मन के मंथन से मोती एकत्र किए और माला रूप में आपके सामने रखा ।इसे आपकी सराहना की अपेक्षा है ।यह काव्य सभी आयु वर्ग के लिए है। इसे युवावस्था तक पहुंचाने के लिए आपके सुझाव भी प्रशंसनीय रहेंगे ।
आपकी नवोदित लेखिका
माया मंगला