रिश्तें मनुष्य के जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.... रिश्तें हमें त्याग करना सिखाते हैं, प्रेम करना सीखते हैं और एक दुसरे के दुखो में भी शामिल होने के लिए प्रेरित करते हैं..... इसलिए हमें हर रिश्ते की कदर करनी चाहिए....बहुत कम ही लोग होते है जिन्हें प्यार सम्मान और अपनेपन के साथ कोई रिश्ता मिलता है वो होता है मन का रिश्ता। क्या मन का रिश्ता गलत है?
मन के रिश्ते के लिए कोई तय उम्र बनी है?
क्या एक उम्र के बाद या शादी के बाद प्रेम गलत है?
तो मेरा जवाब है, नहीं...... यह कहीं से गलत नहीं है। मैं नहीं मानती कि प्रेम का कोई भी स्वरूप ग़लत हो सकता है। ये रिश्ते-नाते, बंधन और नियम-कानून सब इंसानों के बनाये हुए हैं मगर प्रेम नहीं। प्रेम ईश्वर का बनाया सबसे पवित्र भाव है। जो हमें पूर्णता की और ले जाता है। वैसे भी आप और हम कौन होते हैं ये तय करने वाले की प्रेम का ये स्वरूप जायज़ है और ये नाज़ायज़? कहां और, किस ग्रंथ या किताब में ये नियम लिखे गए हैं कि फलां उम्र के बाद आप प्रेम में नहीं पड़ सकते या शादी हो जाने के बाद आपके मन में किसी और के लिए 'प्रेम' की भावना नहीं जन्मेगी? लोग अक्सर कहते हैं कि फलां 'शादी-शुदा' होते हुए भी किसी और से प्यार करने लगा/करने लगी। मुझे कोई ये समझाओ कि क्या शादी का मतलब मन में उठने वाली तमाम तरह के भावनाओं का समाप्त हो जाना है या सारे आकर्षण सब मोह-माया से परे हो जाना है?जो रिश्ता कागज पर बना है मुझे लगता है कि उससे कई गुना ज्यादा मजबूत किसी के मन का रिश्ता होता है। पिछले किताब मे मैने केवल मन मे चल रहे प्रेम के भाव और मन की पीड़ा लिखी थी इस किताब मे मन का रिश्ता क्या होता है बस यही बताना चाह रही हू।
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