भारतीय संस्कृति सदैव से संस्कारों की जननी रही है आर्यावत की इस पावन धरा पर अनेक संत मुनियों ने जन्म लेकर अपने तपोबल और ज्ञान गंगा से सदैव से ही इसे कृतार्थ किया।
भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीनतम संस्कृति मानी जाती है और मातृभाषा हिंदी यहां की प्राचीनतम भाषा।
हिंदुस्तान की अमरता और विश्व में इसके परचम का श्रेय इसकी व्यापक और महानतम आध्यात्मिक संस्कृति और हमारी मातृभाषा को ही है जो समय समय पर आवश्यकता के अनुसार बदलाव गृहण कर स्वयं भारत को विश्व गुरु के खिताब से सुशोभित करती है।
हिंदी, हिंदुत्व और हिंदुस्तान हर भारतीय की शिराओं में लहू बनकर घुले हुए है और यही कारण है की पाश्चात्य संस्कृति के साथ घुलकर भी प्रत्येक भारतवासी अपनी जड़ता को बरकरार रख पाता है।
बड़ों का आशीर्वाद, मां की लोरी, मंदिर में आरती, जिव्हा का प्रथम वर्ण, राष्ट्र के सम्मान में राष्ट्रगान का प्रथम वर्ण सभी हमारी मातृभाषा हिंदी से जुड़ा हुआ है।
समय के परिवर्तन के साथ नव पीढ़ी विदेशी संस्कृति, विदेशी रहन सहन और विदेशी भाषा की ओर आकर्षित होती जा रही है इसी मूल कारण को स्मरण कर हमने "मातृभाषा - संस्कारों की जननी" को पुस्तक का प्रारूप देकर अपनी मातृभाषा और संस्कृति को शिरोधार्य करने का एक आंशिक प्रयास किया है।