नर्मदा भारत के हृदयस्थल अमरकण्टक से निकलकर मध्यभारत की दो पर्वत ऋंखला विंध्य-सतपुड़ा मेखला के बीच निर्मल-निर्झर कल-कल बहती प्रदूषण मुक्त रेवांचाल, महाकौशल, बुंदेलखंड, मालवा, निमाड़, गुर्जर इलाक़ों से होती हुई भडौंच में अरब सागर में विलीन होने की सतत यात्रा में सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की अलौकिक धरोहर है।
नर्मदा अपने 1312 किलोमीटर लम्बे दामन पर हर पाँच किलोमीटर श्रिंगार की नई चूनर ओढ़ एक नए सौदर्य बोध के साथ प्रकट होती है। परिक्रमा वासी उसके नित नए बदलते रूप देख कर दंग रह जाता है। नर्मदा कुँवारी मानी जाती है लेकिन स्कंद पुराण के रेवा खंड में उसके विवाह का उल्लेख भी मिलता है। अतः वह नवयुवती की तरह उच्छृंखल भी है और नवविवाहित सी प्रदीप्त सौंदर्य से समृद्ध भी।
संस्कृत भाषा में नर्म का अर्थ है- आनंद और दा का अर्थ है- देने वाली याने नर्मदा का अर्थ है आनंद देने वाली अर्थात आनंददायिनी। नर्मदा एक ऐसी अद्भुत अलौकिक नदी है जिसकी परिक्रमा की परम्परा विकसित हुई है, आदि शंकराचार्य ने भी नर्मदा की परिक्रमा करते हुए इसके घाटों पर तपस्या, अध्ययन, चिंतन, मनन, शास्त्रों का संकलन और शास्त्रार्थ किया था।
नर्मदा की महत्ता इससे समझी जा सकती है कि जबलपुर, होशंगाबाद, भोपाल, उज्जैन, देवास और इंदौर को जल आपूर्ति का साधन नर्मदा है। महाकाल की नगरी उज्जैन में जब कुम्भ का मेला भरता है तब पिता को जल चढ़ाने में पुत्री नर्मदा का जल उपयोग में लाया जाता है।
नर्मदा और उसकी सहायक नदियों पर 28 जल योजनाओं ने बिजली उत्पादन और सिंचाई से आर्थिक समृद्धि के दरवाज़े खोले हैं। अतः नर्मदा अब सौंदर्य व वैराग्य की नदी के साथ समृद्धि का वरदान बन गई है।
इस पुस्तक के द्वारा नर्मदा को न सिर्फ़ नए रूप में जाना जा सकता है अपितु नर्मदा-अंचल का इतिहास जो आज तक ठीक तरह से नहीं लिखा गया वह पौराणिक काल से आधुनिक काल तक आपको इसमें मिलेगा।
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