वर्तमान पीढ़ी की युवा लेखिका प्रियंका सौरभ नारी समस्याओं पर पैनी नज़र रखते हुए प्रस्तुत खंड में उनका कारण और निवारण करती हुई नज़र आई है। लेखों के चयन से कई बातें एक साथ स्पष्ट होती हैं। प्रथमतः तो यह कि उनके अंदर एक सजग नारी सांस लेती है। वह पहचानती है कि आज की नारी किन-किन बाधाओं से लड़ती हुई आगे बढ़ रही है। दूसरे, स्वयं एक नारी होते हुए अपनी सहयात्री सखियों पर काम करना उनकी सदाशयता, संपन्न सोच और सार्थक सृजक होने की सच्ची निशानी भी देता है।
प्रस्तुत प्रयास को उनकी युवा अवस्था में श्रमसाध्य, गहन अध्ययन से परिपूर्ण, प्रमाणिक और प्रभावी कहा जा सकता है। प्रियंका सौरभ ने नारी समस्याओं को अपनी विराट आलोचनात्मक दृष्टि से देखा है। समकालीन नारी के दर्द एवं समस्याओं की स्पंदन ध्वनियों को प्रियंका सौरभ बड़ी तल्लीनता से सुन पाने में समर्थ हुई हैं। प्रस्तुत निबंध लेखों ने आज अपनी ज़मीन खुद बनाई है। भारतीय जनमानस में पिछले दशक के बाद व्यापक परिवर्तन हुए। सोचने-समझने का नज़रिया बदला। व्यवस्था के विरोध भी हुए। लेकिन नारी समस्याएं जस की तस बनी रही। कुछ सुधार हुए तो नई-नई समस्याओं ने जन्म भी लिया।