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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh PalSatywan ‘Saurabh’ Year of Birth: 1989, Presently: Veterinary Inspector, Government of Haryana and Education. Email: satywansaurabh333@gmail.com Contact : 333, Pari Vatika, Kaushalya Bhawan, Barwa (Siwani) Bhiwani, Haryana-127045 Mobile: 9466526148, 01255281381 * Parallel writing in both English and Hindi languages. Published Books: Yaadein 2005 Poetry Collection (Wrote while studying in class XI at the age of 16, "Titli Hai Khamosh" Doha Collection. Publications: Continuous publication in more than three thousand newspapers and magazines of the country and abroad. Broadcast: AIR from HisarRead More...
Satywan ‘Saurabh’
Year of Birth: 1989, Presently: Veterinary Inspector, Government of Haryana and Education.
Email: satywansaurabh333@gmail.com
Contact : 333, Pari Vatika, Kaushalya Bhawan, Barwa (Siwani) Bhiwani, Haryana-127045
Mobile: 9466526148, 01255281381
* Parallel writing in both English and Hindi languages.
Published Books: Yaadein 2005 Poetry Collection (Wrote while studying in class XI at the age of 16, "Titli Hai Khamosh" Doha Collection.
Publications: Continuous publication in more than three thousand newspapers and magazines of the country and abroad.
Broadcast: AIR from Hisar, Rohtak, and Kurukshetra, Doordarshan from Hisar, Chandigarh, and Janta TV Haryana from time to time.
Editing: Prayas, fortnightly.
Honors / Awards:
1. Best Essay Writing Award Haryana Board of School Education, Bhiwani, 2004
2. Haryana School Education Board Poetry Competition Promotion Award, 2005
3. All India Prajapati Sabha Award, Nagaur, Rajasthan, 2006
4. Prerna Award, Hisar, Haryana, 2006
5. Literary Seeker, Allahabad, Uttar Pradesh, 2007
6. Rashtra Bhasha Ratna, Kaptanganj, Uttar Pradesh, 2008
7. All India Sahitya Parishad Award, Bhiwani, Haryana, 2015
8. IPS Manumukt 'Manav' Award, 2019
9. Research article published in International Journal of Research and Review, Dr. Kusum Jain made the basis of articles of rural culture written by Satywan ‘Saurabh’, 2020
10. Service in different positions in many organizations and organizations related to social work and awareness for the last 20 years.
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Achievements
‘होनहार बिरवान के होत चिकने पात’ यानी प्रतिभा की पहचान व्यक्ति के आरंभिक चरण से ही अपना प्रदर्शन करना शुरू कर देती है। प्रतिभावान व्यक्ति लम्बे समय तक किसी भी भीड़ से गुम नहीं
‘होनहार बिरवान के होत चिकने पात’ यानी प्रतिभा की पहचान व्यक्ति के आरंभिक चरण से ही अपना प्रदर्शन करना शुरू कर देती है। प्रतिभावान व्यक्ति लम्बे समय तक किसी भी भीड़ से गुम नहीं रह सकता। उसमें छुपी उसकी प्रतिभा एक न एक दिन उसे शोहरत के पथ पर अग्रसर कर ही देती है। यह बात गाँव बड़वा के उभरते कवि, शायर सत्यवान ‘सौरभ’ पर बिल्कुल सटीक बैठती है। छात्रकाल से ही लेखन के क्षेत्र में रूचि रखने वाले इस अदने से कच्ची उम्र के शायर ने अपनी ग़ज़लनुमा कविताओं के माध्यम से ख्यालों-जज्बातों की दुनिया को किसी नई नवेली दुल्हन की तरह इस कदर सँवारा है कि ग़ज़लों में कहीं भी इनकी उम्र का आभास नहीं होता।
ख़ूने जिगर से लिखी तमाम ग़ज़लें एक ओर जहाँ सत्यवान ‘सौरभ’ कि पीठ थपथपाती है वहीं दूसरी ओर अन्य नवोदित कलमकारों को भी लेखन के क्षेत्र में उत्साहित करती है। सत्यवान ‘सौरभ’ के प्रथम ग़ज़ल संग्रह ‘यादें’ के लिए मैं इन्हें ढेरों शुभकामनाएं देता हूँ औऱ इसके काव्यमयी उज्जवल भविष्य की कामना करने के साथ-साथ यही कहूंगा-
"देखनी है तो इसकी उमर देखें
गलतियां नहीं इसका हुनर देखें।
दबे पैर सोये जज्बात जगाकर,
सौरभ की यादों का असर देखें।।"
यादों के बीच से गुजरते हुए लगता है कि सौरभ इस आग के दरिया को तैर कर पार निकल आए हैं। बिना डूबे, बिना जले। लेकिन ऐसा संभव ही नहीं है। उनकी देह नहीं डूबी, डूबा है उनका दिल। उनकी देह नहीं जली, जला है उनका दिल। जो स्थूल आंखों से दिखाई देना संभव नहीं। तभी तो वह किसी जुनूनी की तरह घोषणा करते हैं-
दिल नहीं पत्थर है वह हर दिल,
जो किसी पे मरता नहीं है।
“समय की रेत पर” में प्रियंका सौरभ के हमारी विरासत और संस्कृति के साथ लोकहित के ज्वलंत मुद्दों पर 43 निबंध संकलित हैं। इस पुस्तक का शीर्षक “समय की रेत पर” अत्यंत सार्थक है
“समय की रेत पर” में प्रियंका सौरभ के हमारी विरासत और संस्कृति के साथ लोकहित के ज्वलंत मुद्दों पर 43 निबंध संकलित हैं। इस पुस्तक का शीर्षक “समय की रेत पर” अत्यंत सार्थक है। इस पुस्तक के निबंधों में लेखिका ने सामाजिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक क्षेत्र के विषयों जैसे-खंडित हो रहे परिवार, धर्म, मिट्टी के घर, देशभक्ति के मायने, आस्था पर निशाने, चरित्र शिक्षा, अंधविश्वास का दलदल, पुरस्कारों का बढ़ता बाजार, हमारी सोच, अंतरात्मा की आवाज, तीर्थयात्रा, जीवन की आपाधापी, पत्थर होती मानवीय संवेदना, संबंधों के बीच पिसते खून के रिश्ते, रंगत खोते हमारे सामाजिक त्यौहार, सनातन धर्म' के बदलते अर्थ, बदलती रामलीला, शादी-ब्याह: बढ़ता दिखावा-घटता अपनापन, घर की दहलीज से दूर होते बुजुर्ग, प्रतिष्ठा की हानि, मूल आधार है हमारे सामाजिक त्यौहार, अपनों से बेईमानी, पतन की निशानी, रामायण सनातन संस्कृति की आधारशिला, विरासत हमें सचमुच बताती हैं कि हम कौन हैं, राष्ट्रीय अस्मिता, सभ्यता, महिला सशक्तिकरण, भाषा और साहित्य इत्यादि विषयों पर गहरे विश्लेषण के साथ तर्कसम्मत, व्यावहारिक और ठोस चिंतन बहुत ही मुखर ढंग से प्रस्तुत किए हैं। कुल मिलाकर यह कृति हमरी विरसत,संस्कृति, मानवीय चेतना एवं सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दों की गहन पड़ताल करती है। पुस्तक पठनीय ही नहीं, चिन्तन मनन करने योग्य, देश के कर्णधारों को दिशा देती हुई और क्रियान्वयन का आह्वान करती वैचारिक विमर्श की समसामयिक कृति है। “समय की रेत पर” हमारी संस्कृति और विरासत से जुड़े समकालीन निबंधों का सशक्त दस्तावेज़ है।
प्रस्तुत पुस्तक “खेती किसानी और पशुपालन“ देश के विश्वविद्यालयों में अध्यनरत कृषि स्नातक के छात्रों और देश के आमजन के अनुरूप मातृ भाषा हिन्दी में लिखी गई है। खेती किसानी और
प्रस्तुत पुस्तक “खेती किसानी और पशुपालन“ देश के विश्वविद्यालयों में अध्यनरत कृषि स्नातक के छात्रों और देश के आमजन के अनुरूप मातृ भाषा हिन्दी में लिखी गई है। खेती किसानी और पशुपालन की आधुनिक समस्याओं पर पर अंग्रेजी भाषा में अनेक पुस्तकें उपलब्ध हैं, परन्तु हिन्दी भाषा पाठ्यक्रम के अनुसार पुस्तकें नगण्य ही है। इसी को ध्यान में रखते हुए यह पुस्तक बहुत ही संक्षिप्त व सरल भाषा में लिखी गई है ताकि विधार्थियों को विषय को समझने में कोई कठिनाई नही हो। इस पुस्तक में जो 50 अध्याय सम्मिलित किये गये हैं, उन्हें सरल सुबोध बनाने का यथासंभव प्रयास किया गया है।
कृषि और उसके संबद्ध क्षेत्रों पशुपालन में श्रमिकों की व्यापक भागीदारी है क्योंकि विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बहुत कम हैं और पशुपालन पर निर्भर है। वर्तमान पुस्तक जमीनी स्तर पर कृषि और पर्यावरण संकट का पता लगाने और इसका विश्लेषण करने पर केंद्रित है। नई एग्रो तकनीक और गैर-कृषि रोजगार में पशुपालन रोजगार पैदा करके ग्रामीण बनिुयादी ढाँचे का उन्नयन करने की आवश्यकता है जो ग्रामीण परिवारों के बीच गरीबी को कम करेगा। हमें उम्मीद है कि वर्तमान वर्तमान पुस्तक खेती किसानी और पशुपालन के गतिशील और सतत विकास के लिए एक रणनीति विकसित करने में सभी हितधारकों के लिए फायदेमद होगी.
प्रज्ञान, बाल साहित्यकार डॉ सत्यवान सौरभ जी की इक्यावन बाल कविताओं का सुन्दर संग्रह है। इन कविताओं में जीवन के विविध रंग देखने को मिलते हैं। इनमें प्रकृति का सौन्दर्य है तो समा
प्रज्ञान, बाल साहित्यकार डॉ सत्यवान सौरभ जी की इक्यावन बाल कविताओं का सुन्दर संग्रह है। इन कविताओं में जीवन के विविध रंग देखने को मिलते हैं। इनमें प्रकृति का सौन्दर्य है तो समाज की कुरूपता भी है। जहाँ बचपन के आनन्द का सजीव चित्रण है वहीं आर्थिक विवशताओं के कारण काम के बोझ तले दबे बच्चों का मर्मस्पर्शी वर्णन है। बचपन जीवन का स्वर्णिम काल होता है लेकिन सभी बच्चों का बचपन एक - सा नहीं होता। कुछ बच्चों का बचपन काल के क्रूर हाथों द्वारा मसल दिया जाता है।इस कसक की झलक इस संग्रह में देखी जा सकती है।
प्रज्ञान बाल संग्रह की रचनाओं का प्रमुख स्वर मानवीय संवेदना और करुणा है। शांत नदी की तरह बहती ये कविताएँ पाठक के मन को शीतल भावों की लहरों से भिगो देती हैं। इन कविताओं में गम्भीरता एवं शालीनता है और तटबंधों का अनुशासन है। ये रचनाएँ एक हल्के - से घटनाक्रम को लेकर आगे बढ़ती हैं अतः इनमें कथातत्त्व का भी समावेश है जो जिज्ञासा से बालमन को अंत तक बाँधे रखता है। इन कविताओं में बच्चों ही नहीं, अभावों से जूझते समाज के श्रमिक वर्ग का भी चित्रण है। इन सबका उद्देश्य यह है कि कवि बच्चों की कोमल भावनाओं की रक्षा करते हुए उनमें दुखियों के प्रति संवेदना का भाव जगाना चाहता है।
छन्द में लिखी ये रचनाएँ गीत और कविता का मिलाजुला रूप है। इनमें लय और प्रवाह है जो इन कविताओं को प्रभावशाली बनाता है। भाषा बालमन के अनुरूप सरल, सरस और सहज बोधगम्य है। मुद्रण सुन्दर एवं त्रुटिरहित है। फैलते आकाश के साथ प्रज्ञान के मनमोहक चित्र से सजा आवरण अत्यन्त आकर्षक है। बालमन को लुभाने वाले मनोरंजक एवं संवेदनशील कविताओं से सजी पठनीय कृति 'प्रज्ञान' के सृजन के लिए डॉ सत्यवान सौरभ जी को हार्दिक बधाई।
दोहा तुलसी और जायसी का छंद है, तो रहीम और रसखान तथा वृंद और बिहारी का भी, किंतु वास्तव में यह कबीर का छंद है। 21वीं सदी में नये-नये दोहाकार साहित्य-जगत् में दस्तक दे रहे हैं, जिनके द
दोहा तुलसी और जायसी का छंद है, तो रहीम और रसखान तथा वृंद और बिहारी का भी, किंतु वास्तव में यह कबीर का छंद है। 21वीं सदी में नये-नये दोहाकार साहित्य-जगत् में दस्तक दे रहे हैं, जिनके दोहों की भाषा-शैली पर कबीर का गहरा प्रभाव देखा जा सकता है। युवा कवि सत्यवान 'सौरभ' एक ऐसे ही संभावनाशील दोहाकार हैं, जो, अपने सृजन के माध्यम से, दोहा छंद की सार्थकता सिद्ध कर रहे हैं। उनका नव-प्रकाशित दोहा-संग्रह 'तितली है खामोश' इस सत्य का साक्षी है।
कविता, गीत, गजल आदि अनेक साहित्यिक विधाओं के साथ विभिन्न विषयों पर फीचर लिखने वाले सत्यवान 'सौरभ' को दोहा-लेखन में विशेष सफलता मिली है। इनके दोहों का विषय-वैविध्य सहज ही द्रष्टव्य है। बचपन, माता-पिता, घर-परिवार, रिश्ते-नाते, पारिवारिक विघटन, बदलते परिवेश और पर्यावरण-प्रदूषण से लेकर सांस्कृतिक प्रदूषण तक सभी विषयों पर इन्होंने लेखनी चलाई है। पाश्चात्य संस्कृति तथा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कारण बदलती परिस्थितियों ने सर्वाधिक प्रभाव हमारे घर-परिवार और ग्राम्य जीवन पर डाला है। विकास की अंधी दौड़ ने बच्चों का बचपन, घर-परिवार की सुख-शांति और गांव-देहात का भाईचारा छीन लिया है।
सत्यवान ‘सौरभ’ का यह दोहा संग्रह कुछ आप बीती और कुछ जगबीती से परिपूर्ण है। यह वर्तमान समय से संवाद करता हुआ काव्य कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। सत्यवान ‘सौरभ’ के दोहा संग्रह “तितली है खामोश” के दोहे आज के सामाजिक परिवेश आवश्यकताओं तथा लोक की भावनाओं का जीवंत चित्रण है। युवा दोहाकार ने अपने दोहों में जीवन के हर पहलू को छुआ है। सहज और सरल भाषा के साथ इस कृति के दोहों का धरातल बहुत विस्तृत है।
‘FEARLESS’ has brought its new attitude in the opposition. Feminism, the expression of women and women’s pain has given her its own distinctive expression. There should be frequent publications of such important volumes. Priyanka Saurabh’s concept of women’s discourse in its totality as well as in its essence will be called the ‘Gagar Mein Sagar’ effort.
Priyanka Saurabh has given a new way of looking at t
‘FEARLESS’ has brought its new attitude in the opposition. Feminism, the expression of women and women’s pain has given her its own distinctive expression. There should be frequent publications of such important volumes. Priyanka Saurabh’s concept of women’s discourse in its totality as well as in its essence will be called the ‘Gagar Mein Sagar’ effort.
Priyanka Saurabh has given a new way of looking at the pains and problems of the modern woman, which are standard; Certainly, the books of women’s discourse coming forward will determine women’s discourse on this basis. Priyanka Saurabh has been able to listen with great engrossment to the pulsating sounds of the pain and problems of contemporary women. Presented essay articles have made their own land today. There have been vast changes in the Indian public mind after the last decade. Changed the way of thinking. There was also opposition to the system. But women’s problems remained the same.
वर्तमान पीढ़ी की युवा लेखिका प्रियंका सौरभ नारी समस्याओं पर पैनी नज़र रखते हुए प्रस्तुत खंड में उनका कारण और निवारण करती हुई नज़र आई है। लेखों के चयन से कई बातें एक साथ स्पष्ट होती
वर्तमान पीढ़ी की युवा लेखिका प्रियंका सौरभ नारी समस्याओं पर पैनी नज़र रखते हुए प्रस्तुत खंड में उनका कारण और निवारण करती हुई नज़र आई है। लेखों के चयन से कई बातें एक साथ स्पष्ट होती हैं। प्रथमतः तो यह कि उनके अंदर एक सजग नारी सांस लेती है। वह पहचानती है कि आज की नारी किन-किन बाधाओं से लड़ती हुई आगे बढ़ रही है। दूसरे, स्वयं एक नारी होते हुए अपनी सहयात्री सखियों पर काम करना उनकी सदाशयता, संपन्न सोच और सार्थक सृजक होने की सच्ची निशानी भी देता है।
प्रस्तुत प्रयास को उनकी युवा अवस्था में श्रमसाध्य, गहन अध्ययन से परिपूर्ण, प्रमाणिक और प्रभावी कहा जा सकता है। प्रियंका सौरभ ने नारी समस्याओं को अपनी विराट आलोचनात्मक दृष्टि से देखा है। समकालीन नारी के दर्द एवं समस्याओं की स्पंदन ध्वनियों को प्रियंका सौरभ बड़ी तल्लीनता से सुन पाने में समर्थ हुई हैं। प्रस्तुत निबंध लेखों ने आज अपनी ज़मीन खुद बनाई है। भारतीय जनमानस में पिछले दशक के बाद व्यापक परिवर्तन हुए। सोचने-समझने का नज़रिया बदला। व्यवस्था के विरोध भी हुए। लेकिन नारी समस्याएं जस की तस बनी रही। कुछ सुधार हुए तो नई-नई समस्याओं ने जन्म भी लिया।
'कुदरत की पीर', प्रतिपक्ष में अपना नया तेवर लेकर आई है । जनवादिता, जनपक्षधरता और जनपीड़ा की अभिव्यक्ति ने उसे अपनी विशिष्ट भाव-भंगिमा प्रदान की है। ऐसे महत्वपूर्ण खंड के प्रकाशन
'कुदरत की पीर', प्रतिपक्ष में अपना नया तेवर लेकर आई है । जनवादिता, जनपक्षधरता और जनपीड़ा की अभिव्यक्ति ने उसे अपनी विशिष्ट भाव-भंगिमा प्रदान की है। ऐसे महत्वपूर्ण खंड के प्रकाशन बार-बार होने चाहिए। अपनी समग्रता और साथ ही सारगर्भिता में भी सत्यवान 'सौरभ' की संकल्पना 'गागर में सागर' प्रयास ही कही जाएगी। वर्तमान पीढ़ी के युवा लेखक सत्यवान ‘सौरभ’ वर्तमान समस्याओं पर पैनी नज़र रखते हुए प्रस्तुत खंड में उनका कारण और निवारण करते नज़र आये है। लेखों के चयन से कई बातें एक साथ स्पष्ट होती हैं। प्रथमतः तो यह कि उनके अंदर एक सजग लेखक सांस लेता है। वह पहचानता है कि आज हम किन-किन बाधाओं से लड़ रहें है। दूसरे, इन मुद्दों पर काम करना उनकी सदाशयता, संपन्न सोच और सार्थक सृजक होने की सच्ची निशानी भी देता है।
‘Issues and Pains’ has brought its new attitude in the opposition. The expression of democracy, public proselytism, and people’s pain has given him its distinctive gesture. There should be frequent publications of such important volumes. Satywan Saurabh’s concept in its totality as well as in its essence will be called the ‘Gagar Mein Sagar’ effort.
Satywan ‘Saurabh’ has given a new perspective of lo
‘Issues and Pains’ has brought its new attitude in the opposition. The expression of democracy, public proselytism, and people’s pain has given him its distinctive gesture. There should be frequent publications of such important volumes. Satywan Saurabh’s concept in its totality as well as in its essence will be called the ‘Gagar Mein Sagar’ effort.
Satywan ‘Saurabh’ has given a new perspective of looking at the pains and problems of modern life, which are standard; Certainly, the books of social discourse coming forward will determine their discourse on this basis.
The present effort can be called painstaking, thorough study, authentic and effective in his youth. Satywan Saurabh has looked at the present problems with his vast critical point of view. Presented essay articles have made their own land today. There have been vast changes in the Indian public mind after the last decade. They changed the way of thinking. There was also opposition to the system. But the problems persisted. If some improvements were made, then new problems also took birth.
प्रस्तुत पुस्तक मेरी प्रिय कविताओं का संकलन है। इस संग्रह में चालीस से ज्यादा कवितायें हैं। यह काव्य संग्रह उन कविताओं का संयोग है जो जिन्दगी में इक आशा और विश्वास का आभूषण बन
प्रस्तुत पुस्तक मेरी प्रिय कविताओं का संकलन है। इस संग्रह में चालीस से ज्यादा कवितायें हैं। यह काव्य संग्रह उन कविताओं का संयोग है जो जिन्दगी में इक आशा और विश्वास का आभूषण बना कर पिरोई जा सकती हैं। ये जिन्दगी कभी एक जैसी नहीं रहती, कभी सुख है तो कभी दु:ख, कभी सफलता तो कभी असफलता, परन्तु यदि इंसान हर पड़ाव को स्वीकार करे तो हर मुश्किल आसान लगने लगती है। साथ ही प्रस्तुत संग्रह वर्तमान दौर में आये बदलावों को 'दीमक लगे गुलाब' की तरह देखता है जहां रिश्तों का जंजाल तो हो मगर उनमें अपनेपन का आभास नहीं ।
इस काव्य संग्रह में कुछ और प्रोत्साहित करने वाली रचनाएँ भी हैं, जिनको पढ़कर पाठकों और श्रोताओं को अवश्य एक होंसला मिलेगा। आज कल की संघर्षपूर्ण जि़न्दगी में इंसान इतना खो गया है कि स्वयं के लिए भी समय नहीं निकाल पाता। आशा है इस काव्य संग्रह में बचपन की यादें पढ़कर सबको कुछ सुकूं के पल अवश्य मिलेंगे।
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