शायद आप सोच रहे होंगे कि यह कहानी इतनी भावनात्मक, इतनी गहराई लिए हुए कैसे हो सकती है — क्या यह किसी अनुभवी लेखक की रचना है? तो आपको बता दूँ, यह कहानी मैंने आठवीं कक्षा में लिखी थी। उस समय मैं खुद एक विद्यार्थी था — ठीक उसी तरह जैसे प्रवीण है।
आज 6 साल बाद भी, जब यह किताब आप तक पहुँच रही है, इसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है। क्योंकि मैं चाहता हूँ कि आप उस समय की मेरी सोच को महसूस करें — एक नवमी कक्षा में पढ़ रहे लड़के की कल्पना, उसकी भावनाएँ, और उसकी दुनिया।
कहानी का नाम ‘पायलट’ है — और अगर अब तक आपने यह सवाल नहीं पूछा कि "फुटबॉल की कहानी का नाम पायलट क्यों?" तो आप अध्याय 1 में लौटिएगा। वहाँ इसका जवाब छुपा है।
मैं, रंजन कुमार, इस कहानी का लेखक हूँ — लेकिन जब मैं लिखता हूँ, तो मैं ‘रौद्र’ बन जाता हूँ। यही मेरा लेखन नाम है। रौद्र — एक भाव, एक दृष्टिकोण, जो हर शब्द में झलकता है।
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