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"It was a wonderful experience interacting with you and appreciate the way you have planned and executed the whole publication process within the agreed timelines.”
Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh PalA 22 year old graduation student from Bihar, trying his luck in the field of writing.Read More...
A 22 year old graduation student from Bihar, trying his luck in the field of writing.
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इससे पहले की आप इस किताब को पढ़ना आरंभ करें, मैं आपसे आग्रह करुंगा की आप इन पंक्तियों को एक बार पढ़ लें। आपंकी ऐसा करने में पाँच मिनट से ज़्यादा का वक़्त नहीं लगेगा, अपितु आप समझ सकेंग
इससे पहले की आप इस किताब को पढ़ना आरंभ करें, मैं आपसे आग्रह करुंगा की आप इन पंक्तियों को एक बार पढ़ लें। आपंकी ऐसा करने में पाँच मिनट से ज़्यादा का वक़्त नहीं लगेगा, अपितु आप समझ सकेंगे की यह किताब किस मानसिकता के साथ लिखी गई।
यह कोई लव स्टोरी या पूर्णतः रोमांस नहीं है, हा कुछ कण उसके देखनों को मिल सकते है। यह मूल से एक काल्पनिक कहानी है जिसे मैंने नवमी कक्षा में लिखा था, जी हाँ आप ने सही पढ़ा इस किताब को मैंने नवमी कक्षा में लिखा था और आज 6 साल बाद भी जब ये किताब आप तक पहुँच रही है इसमें कोई फेर बदल नहीं किया गया है। क्युकी मैं चाहता हूँ की लोग एक नवमी कक्षा में पढ़ रहे विद्यार्थी की मानसिकता जान पाए।
शायद आप सोच रहे होंगे कि यह कहानी इतनी भावनात्मक, इतनी गहराई लिए हुए कैसे हो सकती है — क्या यह किसी अनुभवी लेखक की रचना है? तो आपको बता दूँ, यह कहानी मैंने आठवीं कक्षा में लिखी थी।
शायद आप सोच रहे होंगे कि यह कहानी इतनी भावनात्मक, इतनी गहराई लिए हुए कैसे हो सकती है — क्या यह किसी अनुभवी लेखक की रचना है? तो आपको बता दूँ, यह कहानी मैंने आठवीं कक्षा में लिखी थी। उस समय मैं खुद एक विद्यार्थी था — ठीक उसी तरह जैसे प्रवीण है।
आज 6 साल बाद भी, जब यह किताब आप तक पहुँच रही है, इसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है। क्योंकि मैं चाहता हूँ कि आप उस समय की मेरी सोच को महसूस करें — एक नवमी कक्षा में पढ़ रहे लड़के की कल्पना, उसकी भावनाएँ, और उसकी दुनिया।
कहानी का नाम ‘पायलट’ है — और अगर अब तक आपने यह सवाल नहीं पूछा कि "फुटबॉल की कहानी का नाम पायलट क्यों?" तो आप अध्याय 1 में लौटिएगा। वहाँ इसका जवाब छुपा है।
मैं, रंजन कुमार, इस कहानी का लेखक हूँ — लेकिन जब मैं लिखता हूँ, तो मैं ‘रौद्र’ बन जाता हूँ। यही मेरा लेखन नाम है। रौद्र — एक भाव, एक दृष्टिकोण, जो हर शब्द में झलकता है।
यह कहानी एक साधारण कल्पना नहीं, बल्कि किशोर मन की गहराई से निकली वह आवाज़ है जो समाज की विसंगतियों को देखती है, समझती है और अपनी कलम से उन्हें चुनौती देती है।
जी हाँ, आपने सही पढ
यह कहानी एक साधारण कल्पना नहीं, बल्कि किशोर मन की गहराई से निकली वह आवाज़ है जो समाज की विसंगतियों को देखती है, समझती है और अपनी कलम से उन्हें चुनौती देती है।
जी हाँ, आपने सही पढ़ा—यह किताब मैंने आठवीं कक्षा में लिखी थी। उस उम्र में जब बच्चे गणित और विज्ञान में उलझे रहते हैं, मैंने एक ऐसी दुनिया गढ़ी जहाँ एक चोर मसीहा बनता है, जहाँ चोरी सिर्फ अपराध नहीं बल्कि सामाजिक प्रतिरोध हैi
कहानी का केंद्र है ‘एम’—एक ऐसा पात्र जो पेशे से चोर है, लेकिन उसकी आत्मा एक क्रांतिकारी है। वह अमीरों को लूटता है, लेकिन उन पैसों को गरीबों में बाँट देता है। वह कानून तोड़ता है, लेकिन इंसानियत की रक्षा करता है। वह अपराधी कहलाता है, लेकिन मसीहा बन जाता है।
क्या है उसके चोरी करने के पीछे का असली मकसद? क्या उसका मिशन सफल होगा? क्या व्यवस्था उसे स्वीकार करेगी या दंड देगी?
इन सवालों के जवाब आपको इस कहानी के पन्नों में मिलेंगे। लेकिन उससे भी ज़्यादा, आपको मिलेगा एक किशोर लेखक का दृष्टिकोण—जो न उम्र से सीमित है, न कल्पना से।
मैं रंजन कुमार, बिहार के हाजीपुर से हूँ। अंग्रेज़ी साहित्य में स्नातक हूँ, लेकिन मेरी आत्मा हिंदी में बसती है। 'रौद्र' मेरा कलमी नाम है—जिसके पीछे एक ज्वाला है, एक विद्रोह है, और एक सपना है कि मेरी कहानियाँ उन लोगों तक पहुँचें जिनकी आवाज़ अक्सर दबा दी जाती है।
यह किताब उन सभी किशोरों को समर्पित है जो सोचते हैं, महसूस करते हैं, और लिखते हैं—चाहे दुनिया उन्हें गंभीरता से ले या नहीं।
क्योंकि कल्पना की कोई उम्र नहीं होती। और क्रांति… कभी भी जन्म ले सकती है।
– रौद्र (रंजन कुमार) हाजीपुर, बिहार
लेखक ‘रौद्र’ ने प्रस्तुत उपन्यास ‘सुरीला’ से हमे ‘प्रेम’ के माध्यम से उस जीवन का दर्शन करवाया हैं जिसकी हम कल्पना करते है। मुख्य पात्र प्रेम के जीवन में किसी भी चीज की
लेखक ‘रौद्र’ ने प्रस्तुत उपन्यास ‘सुरीला’ से हमे ‘प्रेम’ के माध्यम से उस जीवन का दर्शन करवाया हैं जिसकी हम कल्पना करते है। मुख्य पात्र प्रेम के जीवन में किसी भी चीज की कमी नहीं है, वह एक रॉकस्टार है, लंदन में रहता है, पार्टियां और मस्तियां करता है और हम जैसे साधारण व्यक्ति इसी चीज की कल्पना करते हैं। सब कुछ होने के बाबजूद भी वह अंदर ही अंदर किसी चीज से परेशान रहता है, वह मुश्किलों का सामना करता हैं उसे हारता है और आगे बढ़ता है। लेकिन फिर भी उसे मानों किसी चीज की तालाश होती है।
क्या बेसुरे हो चुके प्रेम के जीवन में वह ‘सुरीला’ पल आएगा ?
क्या प्रेम सारी मुसीबतों का सामना कर ‘सुरीला’ जीवन को हासिल कर पायेगा ?
क्या इसका अंत ‘सुरीला’ होगा ?
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