आदिमानव का उद्भव तथा उसका विस्तार पोराणिक काल से ही रहस्य का विषय रहा है। इस विषय में कोई भी धर्म इस पर एकमत नहीं है कि आदिमानव का जन्म तथा उसका विस्तार किस प्रकार हुआ।
पाश्चात्य मान्यता के अनुसार जलीय जीव के रूप में जन्मे जीव का विस्तार होते होते वह जलचर से थलचर जीव के रूप में विकसित हुआ। तत्पश्चात चार पाये से दो पाया फिर बानर रूप में यह जीव बिकसित हुआ। फिर आगे चलकर यह दो पाया जीव सीधा खड़ा होने लगा। तब फिर यह मानव के रूप में विकसित हो गया।
किन्तु हिन्दू धर्म शास्त्र इसको मान्यता नहीं देते हैं, उनके अनुसार प्रत्येक कालचक्र के उपरांत प्रलय का आगमन होता है तथा प्रलय के फलस्वरूप पूरी जीवन चक्र नष्ट हो जाता है और पूरी सृष्टि परम पिता भगवान नारायण में विलीन हो जाती है।
इसी प्रकार इस्लाम, ईसाई तथा विश्व के अन्य सभी धर्मों की अलग अलग अपनी अपनी मान्यताएँ हैं। इसलिए इस विषय पर शोध करके पुस्तक रूप में सबके समक्ष सत्य को लाने के विचार स्वरूप मैंने यह विषय चुना है।
वैज्ञानिक अब तक यही कहते रहे हैं कि प्राचीन वानरों के बीच से अलग हो कर दो पैरों पर चलने वाले सबसे आदि मनुष्य का विकास क्रम कोई 70 लाख वर्ष पूर्व अफ्रीका में शुरू हुआ था।
मनुष्यों की अन्य आदिकालीन प्रजातियों का, जैसे कि यूरोपवासी ने आन्डरथाल मनुष्य, साइबेरिया के देनिसोवा मनुष्य या इंडोनेशिया के बौने कद वाले फ्लोरेसियेन्सिस मनुष्य का समय के साथ हजारों साल पहले ही विलोप हो गया।
अंत में कोई निष्कर्ष निकालने के पूर्व वर्तमान काल में मानव संस्कृति के लिहाज से किस ओर जा रहा है और इसके क्या क्या परिणाम हो सकते हैं, इस पर भी चर्चा करेंगे।
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