Experience reading like never before
Sign in to continue reading.
Discover and read thousands of books from independent authors across India
Visit the bookstore"It was a wonderful experience interacting with you and appreciate the way you have planned and executed the whole publication process within the agreed timelines.”
Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh PalAchievements
बहुत से लोगों के लिए कृष्णअनुसंधान अथवा भगवान से साक्षात्कार विषय कुछ नया हो सकता है किन्तु जब से मानव इस धरती पर आया है और मानव सभ्यता कि उत्पत्ति हुई है, बुद्धि का विकास हुआ है,
बहुत से लोगों के लिए कृष्णअनुसंधान अथवा भगवान से साक्षात्कार विषय कुछ नया हो सकता है किन्तु जब से मानव इस धरती पर आया है और मानव सभ्यता कि उत्पत्ति हुई है, बुद्धि का विकास हुआ है, मानव मन में यह जिज्ञासा रही है कि हम संसार में कैसे आए है। कहाँ से आए हैं, वह कौन है जिसने हमें पैदा किया है।
कृष्णअनुसंधान अथवा भगवान से साक्षात्कार पर किया गया कार्य एक पुस्तक के रूप में प्रस्तुत है, इसमे मेरे द्वारा लिखित कुछ कविताओं का भी समावेश किया गया है। परन्तु इसमें मेरा कुछ भी नहीं है जो कुछ है वह गुरु कृपा का प्रसाद तथा भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद ही है, किन्तु अगर कहीं कोई गलत बात लगे तो वह गलती मेरी ही होगी जिसके लिए में क्षमा प्रार्थी हूँ। पाठकगण अपने विचारों से मुझे अवगत करने की कृपा करें जिससे भविष्य में इसे सुधारकर और उन्नत रूप में प्रस्तुत किया जा सके।
आधुनिक युग में संसार में, खासकर भारत वर्ष में बोद्ध धर्म का प्रादुरभाव भारत की आज़ादी के बाद हुआ है, जिसका श्रेय विश्व रत्न तथागत बाबा साहब डा॰ भीमराव अंबेडकर को जाता है जिन्होंने
आधुनिक युग में संसार में, खासकर भारत वर्ष में बोद्ध धर्म का प्रादुरभाव भारत की आज़ादी के बाद हुआ है, जिसका श्रेय विश्व रत्न तथागत बाबा साहब डा॰ भीमराव अंबेडकर को जाता है जिन्होंने 1956 तक विश्व के सभी प्रचलित धर्मों कर ब्रहद अध्ययन किया और यह पाया की हिन्दू धर्म में व्याप्त बुराइयों खासकर भीषण जातिबाद और शोषणबाद से मुक्ति अथवा छुटकारा पाने के लिए उनके और उनके अनुयाइयों के लिए बुद्ध धर्म ग्रहण करना ही उत्तम है।
बोद्ध धर्म के बारे में भारत के नव बोद्धों में अनेक भ्रांतियाँ है जिनका समाधान अति आवश्यक है। बाबा साहब के बोद्ध धर्म ग्रहण करने के उपरांत उनके अनुयाइयों ने खासकर अनुसूचित जाति, जन जाति व पिछ्डा वर्ग ले लोगों ने आज तक लाखों करोड़ों की संख्या में बोद्ध धर्म ग्रहण किया है। इन नव बोद्धों को विभिन्न राजनैतिक दलों ने अपने स्वार्थवश सही जानकारी न देकर भ्रमित ही किया है और समाज में बैमनस्यता फैलाकर गुटबंदी को प्राश्रय दिया है। इससे बाबा साहब के मिशन को हासिल करने की राह में अड़चनें ही आई और उनके अनुयाइयों को नुकसान ही हुआ है। समाज में वर्ग स्ंघर्स का महोल बना तथा कहीं कहीं सामाजिक दुश्मनी भी पैदा हुई है।
बुद्ध शरण की राह में अग्रसर लोगों को उचित व सही मार्गदर्शन देकर उनकी राह आसान करना ही इसका उद्देश्य है। इसमे मेरे द्वारा लिखित कुछ कविताओं का भी समावेश किया गया है। परन्तु इसमें मेरा कुछ भी नहीं है जो कुछ है वह बाबा सहब की कृपा का प्रसाद तथा भगवान बुद्ध का वरदान ही है, किन्तु अगर कहीं कोई गलत बात लगे तो वह गलती मेरी ही होगी जिसके लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूँ। पाठकगण अपने विचारों से मुझे अवगत करने की कृपा करें जिससे भविष्य में इसे सुधारकर और उन्नत रूप में प्रस्तुत किया जा सके।
सारा विश्व इससे परिचित है की भारत के संबिधान के प्रारूप का निर्माण करने में विश्व रत्न बाबा साहब डा॰ बी॰ आर॰ आंबेडकर की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। विश्व स्तर के कानून विशेषज्ञ, स
सारा विश्व इससे परिचित है की भारत के संबिधान के प्रारूप का निर्माण करने में विश्व रत्न बाबा साहब डा॰ बी॰ आर॰ आंबेडकर की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। विश्व स्तर के कानून विशेषज्ञ, समाज शास्त्री, श्रमिक हितेषी व शोषित के भगग्वान के रूप में विख्यात बाबा साहब ने भारत के संविधान निर्माण में अपनी उपरोक्त विशेषताओं का भरपूर योगदान दिया।
इस पुस्तक में मैंने ब्रिटिश काल से लेकर आधुनिक काल तक इतिहास से लेकर संविधान लागू करने तक संविधान के विभिन्न पहलुओं पर प्रकास डालने का प्रयत्न किया है। संविधान निर्माण को लेकर विरोधियों में छाई हुई कई भ्रांतियों का भी निराकरण कर उन्हें दूर करने का प्रयास किया है जो मानते हैं कि बाबा साहब डा॰ आंबेडकर ने अकेले ही संविधान का निर्माण नहीं किया।
इंजीनियर डी॰ के॰ प्रभाकर
भारतवर्ष के संदर्भ में आरक्षण एक गूण विषय है जिसके अंतर्गत अनेक प्रकार के आरक्षण आते हैं, जैसे राजनेटिक आरक्षण, सामाजिक आरक्षण, आर्थिक आरक्षण, न्यायायिक आरक्षण, रक्षा सेवाओं मे
भारतवर्ष के संदर्भ में आरक्षण एक गूण विषय है जिसके अंतर्गत अनेक प्रकार के आरक्षण आते हैं, जैसे राजनेटिक आरक्षण, सामाजिक आरक्षण, आर्थिक आरक्षण, न्यायायिक आरक्षण, रक्षा सेवाओं में आरक्षण, व्यावसायिक आरक्षण तथा सरकारी व प्राइवेट नौकरियों में आरक्षण आदि।
भारतवर्ष में सदियों से आरक्षण का वोलवाला रहा है, जिसमें जातिगत व वर्णगत आरक्ष्ण को ही अधिक महत्व दिया गया है। सनातन हिन्दू काल से कभी भी आर्थिक आधार आरक्षण का विषय नहीं रहा है बल्कि सामाजिक सम्मान ही आरक्षण का विषय रहा है।
जातिगत व वर्णगत आरक्षण के कारण भारत को वर्षों गुलामी की जंजीरों से बांध कर रखा गया। जिस समय भारत को सोने की चिड़िया का काल कहा जाता है उस समय भी आरक्षण के आधार पर बोद्धिक संपदा पर अधिकार ब्रहमण वर्ग को ही था किन्तु ब्रहमण वर्ग भी विभिन्न जतियों और उपजातियों में बटा हुआ था, इस कारण किसी बात पर एक मत होना असंभव था क्योंकि सभी गुटों के अपने अपने निजी स्वार्थ थे।
मेरा मानना है कि सभी प्रकार का आरक्षण समाप्त कर दिया जाय और नए सिरे से सभी जातियों को उनकी आबादी के प्रतिशत के हिसाब से नौकरियो मे तथा राजनैतिक भागीदारी में आरक्षण की सीमा निश्चित कर दी जाए फिर उसी अनुपात में चाहे सामाजिक आधार् हो, आर्थिक आधार अथवा किसी भी आधार पर उसी जाति के हिस्से में से बटबारा कर दिया जाए , इससे सभी झगङे स्वतः समाप्त हो जायेंगे I
इस पुस्तक में सामाजिक न्याय का प्रथम सोपान “आरक्षण” के मूल पहलुओं पर विचार विमर्श कर उन पर प्रकाश डाला गया है। आशा है पाठकगण उससे सहमत होंगे और अपना समर्थन देंगे। किसी भी सुझाव का स्वागत किया जाएगा। पाठकगण अपने सुझावों से मुझे अवगत करने की कृपा करें जिससे आगामी प्रकाशनौ में सुधार कर प्रस्तुत किया जा सके।
भारतवर्ष के संदर्भ में आरक्षण एक गूण विषय है जिसके अंतर्गत अनेक प्रकार के आरक्षण आते हैं, जैसे राजनेटिक आरक्षण, सामाजिक आरक्षण, आर्थिक आरक्षण, न्यायायिक आरक्षण, रक्षा सेवाओं मे
भारतवर्ष के संदर्भ में आरक्षण एक गूण विषय है जिसके अंतर्गत अनेक प्रकार के आरक्षण आते हैं, जैसे राजनेटिक आरक्षण, सामाजिक आरक्षण, आर्थिक आरक्षण, न्यायायिक आरक्षण, रक्षा सेवाओं में आरक्षण, व्यावसायिक आरक्षण तथा सरकारी व प्राइवेट नौकरियों में आरक्षण आदि।
भारतवर्ष में सदियों से आरक्षण का वोलवाला रहा है, जिसमें जातिगत व वर्णगत आरक्ष्ण को ही अधिक महत्व दिया गया है। सनातन हिन्दू काल से कभी भी आर्थिक आधार आरक्षण का विषय नहीं रहा है बल्कि सामाजिक सम्मान ही आरक्षण का विषय रहा है।
जातिगत व वर्णगत आरक्षण के कारण भारत को वर्षों गुलामी की जंजीरों से बांध कर रखा गया। जिस समय भारत को सोने की चिड़िया का काल कहा जाता है उस समय भी आरक्षण के आधार पर बोद्धिक संपदा पर अधिकार ब्रहमण वर्ग को ही था किन्तु ब्रहमण वर्ग भी विभिन्न जतियों और उपजातियों में बटा हुआ था, इस कारण किसी बात पर एक मत होना असंभव था क्योंकि सभी गुटों के अपने अपने निजी स्वार्थ थे।
मेरा मानना है कि सभी प्रकार का आरक्षण समाप्त कर दिया जाय और नए सिरे से सभी जातियों को उनकी आबादी के प्रतिशत के हिसाब से नौकरियो मे तथा राजनैतिक भागीदारी में आरक्षण की सीमा निश्चित कर दी जाए फिर उसी अनुपात में चाहे सामाजिक आधार् हो, आर्थिक आधार अथवा किसी भी आधार पर उसी जाति के हिस्से में से बटबारा कर दिया जाए , इससे सभी झगङे स्वतः समाप्त हो जायेंगे I
इस पुस्तक में सामाजिक न्याय का प्रथम सोपान “आरक्षण” के मूल पहलुओं पर विचार विमर्श कर उन पर प्रकाश डाला गया है। आशा है पाठकगण उससे सहमत होंगे और अपना समर्थन देंगे। किसी भी सुझाव का स्वागत किया जाएगा। पाठकगण अपने सुझावों से मुझे अवगत करने की कृपा करें जिससे आगामी प्रकाशनौ में सुधार कर प्रस्तुत किया जा सके।
हिन्दू धर्म में व्याप्त बुराइयों के कारण हिन्दू धनाद्य वर्ग ने अपने स्वार्थवश हिन्दू धर्म के ही एक बड़े समूह को जातिवाद में बाँटकर उनकी जिंदगी गुलामों से भी बदकर कर दी थी। उस बड़े
हिन्दू धर्म में व्याप्त बुराइयों के कारण हिन्दू धनाद्य वर्ग ने अपने स्वार्थवश हिन्दू धर्म के ही एक बड़े समूह को जातिवाद में बाँटकर उनकी जिंदगी गुलामों से भी बदकर कर दी थी। उस बड़े वर्ग को भी बांटो और राज करो की रणनीति अपनाते हुये उस गुलाम वर्ग में भी दो प्रकार का व्यवहार किया गया।
इन शूद्रों के साथ गुलामी का व्यवहार कर इनसे मुफ्त श्रम करवाकर भूखा नंगा रहने पर विवश किया जाता था जिससे यह वर्ग सिर ऊंचा करके विद्रोह न कर सके। इनकी बस्तियां भी उच्च वर्ग से अलग दूर बसाई जाती थी और इनके पानी पीने के लिए कूए भी अलग होते थे।
इस प्रकार के असंख्य शूद्र गुलामी के उदाहरण पुरातन इतिहास में भरे पड़े है जिसमें असहाय शूद्र वर्ग छूआछूत भरी गुलामों की जिंदगी जीने को जीने को मजबूर था। जिसको दूर करने की कोशिश ज्योतिवाफूले, पेरियार रामास्वामी, संत शिरोमणि रविदास महाराज व संत कबीर ने की थी। किन्तु उनकी समाज सुधार की कोशिश पूरी तरह सफल नहीं होने दी गयी।
लेकिन बालक भीम ने उन भीषण परिस्थितियों में भी आगे वड़कर शिक्षा की उन उचाईयों को प्राप्त किया जिसे विश्व में आज तक कोई भी प्राप्त नहीं कर सका है। बाद में उन्हें बाबा साहब डा॰ भीम राव अंबेडकर के रूप में सम्मान दिया गया। वह भारत के प्रथम कानून मंत्री बने तथा भारत का संविधान लिखने का दायित्व भी उन्हें ही सौंपा गया.
बाबा साहब डा॰ भीम राव अंबेडकर ने जीवन भर गुलाम शूद्रों को आज़ाद करने हेतु संघर्ष किया जिसमें वह काफी हद तक सफल भी हुये जिस कारण वह शोषित के भगवान के रूप में संसार के सामने आए।
भारत में बोद्ध धर्म के पतन के सन्दर्भ में पहली शताव्दी ई. पूर्व तक बोद्ध धर्म के महायान में हिन्दू धर्म के प्रभाव को दर्शाया गया है। उसके बाद हूण आक्रमण, मुस्लिम विजेता, बचे हुए बो
भारत में बोद्ध धर्म के पतन के सन्दर्भ में पहली शताव्दी ई. पूर्व तक बोद्ध धर्म के महायान में हिन्दू धर्म के प्रभाव को दर्शाया गया है। उसके बाद हूण आक्रमण, मुस्लिम विजेता, बचे हुए बोद्ध और पुष्यमित्र शुंग के बोद्ध उत्पीडन तथा हिन्दुओं के आधीन बोद्ध उत्पीडन का विस्तार से वर्णन किया गया है। जिसका समणों की जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ा।
अब हम बात करेंगे ७५० ई. से १२०० ई. तक उत्तरी भारत में गंगा घाटी पर नियंत्रण के लिये त्रिस्तरीय संघर्ष और बड़े राज्यों की परधि पर नेपाल, कामरूप, कश्मीर और उत्कल (उड़ीसा) जैसे राज्यों तथा महाराष्ट्र और शिलाहार जैसे राजवंशों के समणों के संघर्ष की। जिसमें समण हिमालय की तलहटी में बसे राज्य और मैदानी इलाकों की राजनीति में अधिक उलझे बिना समण जीवित रहने में कामयाव रहे और मैदानी इलाकों पर उनकी उपस्थिति बनी रही।
भारत में बोद्ध धर्म के पतन के सन्दर्भ में पहली शताव्दी ई. पूर्व तक बोद्ध धर्म के महायान में हिन्दू धर्म के प्रभाव को दर्शाया गया है। उसके बाद हूण आक्रमण, मुस्लिम विजेता, बचे हुए बो
भारत में बोद्ध धर्म के पतन के सन्दर्भ में पहली शताव्दी ई. पूर्व तक बोद्ध धर्म के महायान में हिन्दू धर्म के प्रभाव को दर्शाया गया है। उसके बाद हूण आक्रमण, मुस्लिम विजेता, बचे हुए बोद्ध और पुष्यमित्र शुंग के बोद्ध उत्पीडन तथा हिन्दुओं के आधीन बोद्ध उत्पीडन का विस्तार से वर्णन किया गया है। जिसका समणों की जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ा।
अब हम बात करेंगे ७५० ई. से १२०० ई. तक उत्तरी भारत में गंगा घाटी पर नियंत्रण के लिये त्रिस्तरीय संघर्ष और बड़े राज्यों की परधि पर नेपाल, कामरूप, कश्मीर और उत्कल (उड़ीसा) जैसे राज्यों तथा महाराष्ट्र और शिलाहार जैसे राजवंशों के समणों के संघर्ष की। जिसमें समण हिमालय की तलहटी में बसे राज्य और मैदानी इलाकों की राजनीति में अधिक उलझे बिना समण जीवित रहने में कामयाव रहे और मैदानी इलाकों पर उनकी उपस्थिति बनी रही।
आरएसएस की वर्तमान रामराज्य रुपी हिन्दू राष्ट्र लाने की मंशा क्या है? इस पर विचार करने के साथ ही रामराज्य सीता हरण के आलोक में तथा मनुस्मृति के अनुसार रामराज्य अर्थात हिन्दू राष
आरएसएस की वर्तमान रामराज्य रुपी हिन्दू राष्ट्र लाने की मंशा क्या है? इस पर विचार करने के साथ ही रामराज्य सीता हरण के आलोक में तथा मनुस्मृति के अनुसार रामराज्य अर्थात हिन्दू राष्ट्र कैसा होगा? इस पर भी प्रकास डाला है। इसके साथ ही धर्म ग्रन्थ, संविधान और हिन्दू राष्ट्र के विषय पर भी चर्चा की गई है। साथ ही मंथन किया गया है कि कैसा था रामराज्य और महाभारत काल: क्या यह पूरा गुलामी और दासता का पर्याय नहीं था?
भारत में शोषित के भगवान बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर के संघर्षों वल पर स्वतंत्रता से पूर्व ब्रिटिश शासकों ने कम्युनल एवार्ड द्वारा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जन जातियों को अपने प्रत
भारत में शोषित के भगवान बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर के संघर्षों वल पर स्वतंत्रता से पूर्व ब्रिटिश शासकों ने कम्युनल एवार्ड द्वारा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जन जातियों को अपने प्रतिनिधियों के निर्वाचन के लिए दिए गए दो वोटों के अधिकार के विरुद्ध रामराज्य समर्थक, सवर्ण व्यवस्था के चिन्तक, कांग्रेस के नेता, गांधी ने आमरण अनशन कर दिया था। गांधी के आमरण अनशन से उत्पन्न समस्या के समाधान हेतु बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर द्वारा वेमन से किये गए पूना पैक्ट के आधार पर अनुसूचित जाति जनजाति के प्रतिनिधित्व के लिए केन्द्रीय तथा प्रादेशिक विधायिकाओं में आरक्षण का लाभ मिला था।
सरकारी सुविधाओं के लालच में वह हिन्दू धर्म के आधार पर जाति प्रमाण पत्र बनवा रहे हैं और अपने आप को बोद्ध कहने में सकुचाते हैं। इसी कारण उनके अधिकारों पर संकट के बादल छा रहे हैं, क्य
सरकारी सुविधाओं के लालच में वह हिन्दू धर्म के आधार पर जाति प्रमाण पत्र बनवा रहे हैं और अपने आप को बोद्ध कहने में सकुचाते हैं। इसी कारण उनके अधिकारों पर संकट के बादल छा रहे हैं, क्योंकि वह संगठित ही नहीं हो पा रहे हैं। क्योंकि तथाकथित नव बोद्ध भी उनकी ईश्वरवादी आस्था के कारण उनसे दूरी बनाकर रखते हुए देखे जा सकते हैं। वह नव बोद्ध भी उनको अपने समाज का हिस्सा ही नहीं मानते हैं।
आजकल अम्बेडकरवाद से मुकावला करने के लिए सनातन का नाम जोरशोर से लिया जा रहा है। कल तक जिसे हिन्दुओं का महान हिन्दू धर्म बतलाया जा रहा था आज उसे सनातन कहा जा रहा है। सनातन धर्म क्या
आजकल अम्बेडकरवाद से मुकावला करने के लिए सनातन का नाम जोरशोर से लिया जा रहा है। कल तक जिसे हिन्दुओं का महान हिन्दू धर्म बतलाया जा रहा था आज उसे सनातन कहा जा रहा है। सनातन धर्म क्या है? सनातन धर्म मतलब जो ख़ुद बख़ुद है, शुद्ध है, सबके हित के लिए है। और सबके लिए समान रूप से कल्याणकारी है। जो सदा से है, जिस धर्म से सब धारण किया गया है, ध्रुव है और सदा रहेगा, वही सनातन है। हिन्दू धर्म को सनातन कहकर सनातन का अपमान किया जा रहा है।
बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने जब कहा था कि मुझे मेरे समाज के पड़े लिखे उन लोगों ने ही धोखा दिया है जो मेरे द्वारा दिलाये गये आरक्षण की बदोलत नौकरिया पाकर अपना ही घर भरते रहे। उन्
बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने जब कहा था कि मुझे मेरे समाज के पड़े लिखे उन लोगों ने ही धोखा दिया है जो मेरे द्वारा दिलाये गये आरक्षण की बदोलत नौकरिया पाकर अपना ही घर भरते रहे। उन्होंने अपने समाज के लिए कुछ भी नहीं किया। यह वही दो कोड़ी के लोग थे जिनको अगर बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर के संघर्षों के कारण आरक्षण के माध्यम से नौकरियाँ नहीं मिलतीं अथवा राजनीति में एम.एल.ए. अथवा एम.पी. नहीं बनते तो, आज भी जमीदारों की बेगारी ही कर रहे होते?
आज बहुजन समाज अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहा है। आज बहुजन समाज देश के राजनैतिक बाज़ार में खड़ा हुआ है और भारत के बिभिन्न राजनैतिक दल बहुजन समाज की बोली लगा रहे हैं। उन्हें बिभिन्न प्
आज बहुजन समाज अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहा है। आज बहुजन समाज देश के राजनैतिक बाज़ार में खड़ा हुआ है और भारत के बिभिन्न राजनैतिक दल बहुजन समाज की बोली लगा रहे हैं। उन्हें बिभिन्न प्रकार के प्रलोभन देकर उन्हें अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं। लेकिन बहुजन समाज सोच नहीं पा रहा है कि जाएँ तो किधर जाएँ।
कई दल तो ऐसे भी हैं जो संविधान को बदल डालने वाली सोच रखने तथा मनुस्मृति के कानूनों को लागू करने की सोच रखने वालों के ही साथ हो गए है। इन्हीं में से एक दलित मसीहा, शोषित के भगवान, विश्व रत्न, बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर द्वारा स्थापित भारतीय रिप्ब्लिकन पार्टी भी है, जो कि आज कल कट्टर हिंदूवादी सोच रखने वाली आर.एस.एस. की गोद में बैठी दिखाई दे रही है। उसके सर्वेसर्वा रामदास अठावले मोदी सरकार में मंत्री बने बैठे हैं और उनकी हाँ में हाँ मिलाकर दलित विरोधी नीतियों का कोई भी प्रतिकार नहीं कर पा रहे हैं।
महामानव के इस संघर्ष ने अपने चार चार बच्चों की बलि देकर भी इस शोषण मुक्ति के इस संग्राम को जारी रखा। एक समय ऐसा भी आया जब घर पर इस महामानव के पुत्र की मृत्यु हो गयी और इस महामानव के
महामानव के इस संघर्ष ने अपने चार चार बच्चों की बलि देकर भी इस शोषण मुक्ति के इस संग्राम को जारी रखा। एक समय ऐसा भी आया जब घर पर इस महामानव के पुत्र की मृत्यु हो गयी और इस महामानव के पास उसके कफ़न के लिए भी पैसे नहीं थे, तो उनकी पत्नी रमाबाई ने अपनी फटी जीर्णशीर्ण धोती के एक टुकड़े को कफ़न का रूप देकर अपने लाडले के शव को सम्मान दिया और उसके क्रिया कर्म की व्यवस्था की।
अंधविश्वास के भी अपने अपने कर्म विधान होते हैं। हमारे हिन्दू धर्म शास्त्रों में प्रमुख श्रीमदभागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं अपने श्रीमुख से भगवत प्राप्ति के तीन प्रम
अंधविश्वास के भी अपने अपने कर्म विधान होते हैं। हमारे हिन्दू धर्म शास्त्रों में प्रमुख श्रीमदभागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं अपने श्रीमुख से भगवत प्राप्ति के तीन प्रमुख उपाय बतलाये हैं, ज्ञान योग, कर्म योग एवं भक्ति योग। लेकिन कुछ लोभी प्रकृति के लोगों ने इन मार्गों को अंधविश्वास के गहरे सागर में धकेल दिया है। कुछ स्वार्थी ज्योतिषाचार्यों ने तो इसकी पराकाष्टा ही पार कर दी है और ऐसे ऐसे अंधविश्वास के कर्म भोले भाले व्यक्तियों पर लाद कर उनका शोषण किया गया है जिसकी कोई भी वैज्ञानिक अवधारणा ही नहीं है।
भारतीय समाज को `दहेज़ की लपटें` अथवा उसकी तपिस आज इस प्रकार परेशान कर रही हैं कि आप किसी भी न्यायालय, परिवार न्यायालय अथवा समझोता केंद्र में चले जाय, आपको दहेज़ से पीड़ित कन्या पक्ष क
भारतीय समाज को `दहेज़ की लपटें` अथवा उसकी तपिस आज इस प्रकार परेशान कर रही हैं कि आप किसी भी न्यायालय, परिवार न्यायालय अथवा समझोता केंद्र में चले जाय, आपको दहेज़ से पीड़ित कन्या पक्ष के जितने मामले मिलेंगे उससे कहीं अधिक मामले कन्या पक्ष द्वारा फर्जी दहेज़ के मामलों में फसाए गए वर पक्ष के दुखी लोग मिल जायेंगे। कहीं कहीं तो वर पक्ष के दस दस लोगों को जमानत करवाने के लिए बीस बीस जमानतदार लोगों का प्रवंध करके न्यायालय में आना पड़ता है, तब जाकर उनको केवल जमानत ही मिल पाती है।
आरक्षण कि ज़ंग आज की समस्या नहीं है, यह तो उसी समय प्रारम्भ हो गई थी जब मानवता ने अपने पराये की पहचान करना प्रारम्भ कर दिया था। जैसे ही मानव को यह ज्ञान प्राप्त हुआ, उसने अपने प्रतिद
आरक्षण कि ज़ंग आज की समस्या नहीं है, यह तो उसी समय प्रारम्भ हो गई थी जब मानवता ने अपने पराये की पहचान करना प्रारम्भ कर दिया था। जैसे ही मानव को यह ज्ञान प्राप्त हुआ, उसने अपने प्रतिद्वंदियों को हराकर धन, धरती और सत्ता पर अपना अधिकार जताना प्रारम्भ कर दिया था। फिर उस धन, धरती और सत्ता पर अपना स्थाई अधिपत्य स्थापित करने हेतु वर्ण व्यवस्था लागू करके अपने स्थान को सुरक्षित कर लिया। इस प्रकार उन्होंने अपने लिए कर्म के आधार पर सोपानीकृत समाज में अपने लिए उच्च पदों पर आरक्षण का खेल खेला।
शोषित के भगवान, विश्व रत्न बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर रचित व निर्मित भारत का वर्तमान संविधान एक ऐसा विश्व प्रसिद्द लोकतांत्रिक संविधान है जिसमें जनता अपने शासक का चयन स्वयं
शोषित के भगवान, विश्व रत्न बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर रचित व निर्मित भारत का वर्तमान संविधान एक ऐसा विश्व प्रसिद्द लोकतांत्रिक संविधान है जिसमें जनता अपने शासक का चयन स्वयं वोट देकर करती है। यह शासक भी जनता द्वारा चुनी हुई विधायिका के आधीन रहकर ही कार्य कर सकता है और विधायिका का विश्वास खो देने पर उसे अपने पद को भी खोना पड़ता है। फिर वह विधायिका जनता के लिए दूसरे शासक का चयन करती है। इस विधायिका को भी प्रत्येक पांच वर्ष के बाद पुनः जनता का विश्वास प्राप्त करने के लिए जनता के द्वार पर जाना पड़ता है।
आदिकाल से लेकर अब तक भारत वर्ष में आदिवासी, वनवासी और शूद्र महिलाओं ने जितने शोषण और अपमान का जीवन जिया है वह अपने आप में उनकी सहन शक्ति का जीता जागता उदाहरण ही है। वैसे तो इसी बीच
आदिकाल से लेकर अब तक भारत वर्ष में आदिवासी, वनवासी और शूद्र महिलाओं ने जितने शोषण और अपमान का जीवन जिया है वह अपने आप में उनकी सहन शक्ति का जीता जागता उदाहरण ही है। वैसे तो इसी बीच एक समय ऐसा भी आया था जिसे स्त्री को शक्ति स्वरूपा भी कहा जाता था और स्त्रियों की शक्ति के रूप में पूजा भी की जाती थी। तब स्त्री ही शासक हुआ करती थी और पूरा राजपाट संभालती थी।
भारत में ब्रिटिश शासन के समय भी इन्होने कुछ कुछ स्वतंत्रता को महसूस किया था, किन्तु यह वर्ग पूरी तरह से स्वतंत्र हो पाया तब, जब शोषित के भगवान, विश्व रत्न बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्ब
भारत में ब्रिटिश शासन के समय भी इन्होने कुछ कुछ स्वतंत्रता को महसूस किया था, किन्तु यह वर्ग पूरी तरह से स्वतंत्र हो पाया तब, जब शोषित के भगवान, विश्व रत्न बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी ने अपने संघर्षों के बलबूते इन्हें स्वतंत्रता का अहसास कराया और भारतवर्ष की स्वतंत्रता के साथ ही भारत का विश्व प्रसिद्ध संविधान बनाकर इन्हें समानता, स्वतंत्रता, मैत्री और प्रगति के अधिकार दिलाकर उस शोषण मूलक व्यवस्था से आज़ाद कर दिया।
जल ही जीवन है, ऐसा भी कहा जता है, और प्रसिद्ध कवि रहीमदास जी तो यहाँ तक कह गये हैं कि ”रहिमन पानी रखिये, विन पानी सब सून”। लेकिन अगर वह पानी भी बहती हुई जल तरंगों का हो तो कहने ही क्
जल ही जीवन है, ऐसा भी कहा जता है, और प्रसिद्ध कवि रहीमदास जी तो यहाँ तक कह गये हैं कि ”रहिमन पानी रखिये, विन पानी सब सून”। लेकिन अगर वह पानी भी बहती हुई जल तरंगों का हो तो कहने ही क्या? ठहरे हुए जल को तो अशुद्ध ही समझा जाता है। पवित्र गंगा नदी में कितनी भी गन्दगी बहा दी जाती हैं किन्तु जल तरंगों के माध्यम से वह कुछ दूर जाकर पुनः शुद्ध गंगाजल के रूप में परिवर्तित हो जाता है।
इस उपन्यास का केन्द्रीय पात्र एक गरीब समाज में जन्मा, और उच्च शिक्षित होकर समाज के कितने ही रंगों को देखता है और जन्म से लेकर मृत्यु पर्यंत इस पानी के बिभिन्न रंगों के संपर्क में
इस उपन्यास का केन्द्रीय पात्र एक गरीब समाज में जन्मा, और उच्च शिक्षित होकर समाज के कितने ही रंगों को देखता है और जन्म से लेकर मृत्यु पर्यंत इस पानी के बिभिन्न रंगों के संपर्क में आता है और अपनी गरीबी को ही न कोसते हुए उसने अपन्मे गाँव से जातिवाद का विनाश करके उसे एक आदर्श गाँव के रूप पें स्थापित किया। एक दलित कन्या के विवाह में आये कुछ दलित बारातियों द्वारा ठाकुरों के कूए का पानी पी लेने के फलस्वरूप प्रारम्भ हुआ उसका पानी के रंगों से उत्पन्न संघर्ष कहाँ तक पहुंचा, उसे यहाँ उकेरा गया है। कुछ जानवरों के माध्यम से भी इस पानी के बिभिन्न रंगों को व्यक्त किया गया है।
अपनी सौतेली माता के अत्याचारों से आहत होकर जिसने मात्र सात वर्ष की अल्पायु में ही आत्महत्या करने का मन बना लिया था। लेकिन विधाता को तो कुछ और ही मंजूर था, उसने उसे आत्महत्या कर
अपनी सौतेली माता के अत्याचारों से आहत होकर जिसने मात्र सात वर्ष की अल्पायु में ही आत्महत्या करने का मन बना लिया था। लेकिन विधाता को तो कुछ और ही मंजूर था, उसने उसे आत्महत्या करने से रोक लिया। तब वह उस मात्र पांच वर्ष की आयु में ही चिंतन करने लगा कि इस दुनिया में इतनी विसमता क्यों है, कोई तो बहुत ही सुखी है और कोई बहुत ही कष्टमय जीवन व्यतीत कर रहा है। किसी के घर खाना इतना बच जाता है कि जानवरों को खिलाना पड़ता है, और किसी को वह खाना भी नसीब नहीं होता है जिसे जानवर छोड़ देते हैं।
यह फर्श से अर्श तक का सफ़र एक ऐसे महामानव का सफ़र है जिसने एक अछूत जाति में जन्म लेकर शोषित के भगवान बनने तक का सफ़र किया। जब उसने इस धरा पर जन्म लिया तब उसके समाज की जिन्दगी कीड़ों मकोड़
यह फर्श से अर्श तक का सफ़र एक ऐसे महामानव का सफ़र है जिसने एक अछूत जाति में जन्म लेकर शोषित के भगवान बनने तक का सफ़र किया। जब उसने इस धरा पर जन्म लिया तब उसके समाज की जिन्दगी कीड़ों मकोड़ों के जैसी ही थी। न तो उनका कोई सम्मान था और न हीं उनकी कोई औकात थी। जन्म से ही उन्होंने पग पग पर बाधाओं का सामना किया और भूखे प्यासे रहकर भी अपनी जीवन ज्योति को जलाए रखा।
जन्म के कुछ वर्ष पश्चात ही उनके पिता को जबरन सेना की नौकरी से हटा दिया गया, जहां वह मेंज़र सूवेदार थे। जब तक वह कुछ संभल पाते, तब मात्र छः वर्ष की आयु में ही उनकी माँ को काल ने उनसे छीन लिया। वह पड़कर उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहते थे किन्तु कोई भी प्राइमरी स्कूल उनको अपने स्कूल में दाखिला देने को तैयार नहीं था।
जब हम भारत वर्ष की तीन महान विभूतियों श्रीकृष्ण, बुद्ध और डॉ. अम्बेडकर की बात करते हैं तो विश्व भर में व्याप्त इनके करोड़ों अनुयाइयों की और हमारा ध्यान स्वतः ही चला जाता है। इन तीन
जब हम भारत वर्ष की तीन महान विभूतियों श्रीकृष्ण, बुद्ध और डॉ. अम्बेडकर की बात करते हैं तो विश्व भर में व्याप्त इनके करोड़ों अनुयाइयों की और हमारा ध्यान स्वतः ही चला जाता है। इन तीनों महान विभूतियों का जन्म भारत में ही हुआ और इनके दर्शन भारत में ही विकसित हुए हैं। इन तीनों ने ही वासुदेव कुटुम्बकम अर्थात विश्व वन्धुत्व की बात की है।
यह तो सभी जानते हैं कि मान्यवर कांसीराम ने पंजाब के हिन्दू धर्म की प्रसिद्ध रमदसिया सिक्ख जाति में जन्म लिया था जिसे उस समय अछूत के रूप में ही देखा जाता था। एक वीर लड़ाका शासक रमदस
यह तो सभी जानते हैं कि मान्यवर कांसीराम ने पंजाब के हिन्दू धर्म की प्रसिद्ध रमदसिया सिक्ख जाति में जन्म लिया था जिसे उस समय अछूत के रूप में ही देखा जाता था। एक वीर लड़ाका शासक रमदसिया सिक्ख समुदाय को कैसे और कब अछूत बना दिया गया, यह एक शोध का विषय है। किन्तु यह सत्य है कि जन्म लेते ही मान्यवर कांसीराम को जातिगत विषमता और नफरत के घूंट पीने पड़े।
अनेक बार उन्हें जातिगत सामाजिक उत्पीड़न का शिकार होना पड़ा। किन्तु मान्यवर कांसीराम अपमान के घूंट पीकर भी अपनी शिक्षा को पाने के लक्ष्य प्राप्त करने पर अडिग रहे और अपने संघर्षों के बल पर वह बीएससी तक की शिक्षा पिछड़ों, अल्पसंख्यकों और बहुजनों को न्याय दिलाने के लिए जीवन भर संघर्ष करेंगे। तब वह समाज सेवा के साथ ही राजनीति में भी कूँद पड़े।गृहण कर पाए।
यह तो सभी जानते हैं कि बाबा साहब डॉ॰ भीमराव अंबेडकर ने महाराष्ट्र के हिन्दू धर्म की महार जाति में जन्म लिया था उस समय उसे अछूत के रूप में ही देखा जाता था। एक वीर लड़ाका शासक महार सम
यह तो सभी जानते हैं कि बाबा साहब डॉ॰ भीमराव अंबेडकर ने महाराष्ट्र के हिन्दू धर्म की महार जाति में जन्म लिया था उस समय उसे अछूत के रूप में ही देखा जाता था। एक वीर लड़ाका शासक महार समुदाय को कैसे और कब अछूत बना दिया गया, यह एक शोध का विषय है। किन्तु यह सत्य है कि जन्म लेते ही बाबा साहब अंबेडकर को जातिगत विषमता और नफरत के घूंट पीने पड़े।
वह सवर्ण बच्चों के साथ खेल नहीं सकते थे। उनके पड़ने के लिए की गईं कोशिशों पर भी अनेक बाधाएँ उत्पन्न की गईं। अनेक बार उन्हें जातिगत सामाजिक उत्पीड़न का शिकार होना पड़ा। किन्तु भीम अपमान के घूंट पीकर भी अपने उच्च शिक्षा को पाने के लक्ष्य प्राप्त करने पर अडिग रहे और अपने संघर्षों के बल पर वह भारत ही नहीं तत्कालीन विश्व के सर्वाधिक उच्च शिक्षित व्यक्ति बन गये।
भारत की आज़ादी के साथ ही जिस राजनैतिक चेतना का रूप उजागर हुआ उसमें एक वर्ग विशेष का ही आधिपत्य देखा गया। यहाँ तक की भारत के संबिधान के निर्माता विश्व रत्न बाबा साहब डॉ॰ भीम राव अ
भारत की आज़ादी के साथ ही जिस राजनैतिक चेतना का रूप उजागर हुआ उसमें एक वर्ग विशेष का ही आधिपत्य देखा गया। यहाँ तक की भारत के संबिधान के निर्माता विश्व रत्न बाबा साहब डॉ॰ भीम राव अंबेडकर को भी संबिधान सभा में भी चुनकर आने से रोका गया। काफी प्रयाश के बाद जब उन्हें उनके प्रदेश मुंबई के स्थान पर बंगाल से मुस्लिम लीग की सहाता से चुनकर संविधान सभा में लाया गया तो उनके प्रतिनिधित्व करने वाले क्षेत्र को ही पाकिस्तान का हिस्सा बना दिया गया, परिणाम स्वरूप बाबा साहब अंबेडकर पाकिस्तान की संबिधान सभा के सदस्य बन गए।
जब हम दलितों की स्वतन्त्रता के इतिहास की बात करते हैं तो अनायास ही हमारा ध्यान दलितों द्वारा हिन्दू धर्म की गुलामी से मुक्ति पाने के लिए समय समय होते रहे बिभिन्न आंदोलनों की तरफ
जब हम दलितों की स्वतन्त्रता के इतिहास की बात करते हैं तो अनायास ही हमारा ध्यान दलितों द्वारा हिन्दू धर्म की गुलामी से मुक्ति पाने के लिए समय समय होते रहे बिभिन्न आंदोलनों की तरफ जाता है, जिनमें अन्य समाज सुधारकों के साथ ही संत कबीर, संत रैदास, भगवान बुद्ध और बाबा साहब अम्बेडकर प्रमुख रूप से रहे हैं।
जन्म हुआ तब क्या लाया था,और क्या तू लेकर जायेगा।
इस माँटी से ही पैदा होकर, और माँटी में मिल जायेगा॥
पल पल जीव सोचता ऐसे, अब सुख साधन घर लाएगा।
पर जो सुख माँटी में मिलता है, उ
जन्म हुआ तब क्या लाया था,और क्या तू लेकर जायेगा।
इस माँटी से ही पैदा होकर, और माँटी में मिल जायेगा॥
पल पल जीव सोचता ऐसे, अब सुख साधन घर लाएगा।
पर जो सुख माँटी में मिलता है, उसे कहाँ वह पाएगा॥
धन्य धरा जो जीवन देती, उसमें ही विलीन हो जाएगा।
कहें प्रभाकर, कैसे और कब उसका कर्ज चुकाएगा।
उपरिक्त पंक्तियाँ पूरे जीवन का सार प्रकट कर देतीं हैं। जब भी जीव, धारा रूपी माँ की गोद में अवतरित होता है तो सर्व प्रथम उसका परिचय इसी धरा रूपी माँ से होता है। माँ के गर्भ से जब जीव बाहर आता है तो अत्यंत ही छोटे रूप में आता है और धरती का स्पर्श पाकर वायु पान करके तुरंत उसका आकार बड़ जाता है। उसके बाद ही जब उसकी आंखे खुलतीं हैं तो वह माया रूपी संसार से परिचित हो पाता है।
भारतवर्ष की स्वतन्त्रता के बाद बीसवी सदी के महानायक, दलित स्वतन्त्रता के प्रतीक, विश्व रत्न, बाबा साहब डॉ॰ भीम राव अम्बेडकर के संघर्षों के कारण भारत की संसद और विधान सभाओं में दल
भारतवर्ष की स्वतन्त्रता के बाद बीसवी सदी के महानायक, दलित स्वतन्त्रता के प्रतीक, विश्व रत्न, बाबा साहब डॉ॰ भीम राव अम्बेडकर के संघर्षों के कारण भारत की संसद और विधान सभाओं में दलितों को उनके समाज का प्रतिनिधित्व करने का अधिकार तो प्राप्त हुआ। किन्तु पूना पैक्ट द्वारा मिला यह अधिकार दलितों को राजनैतिक गुलाम बनाने का साधन ही मात्र बन कर रह गया है।
यह एक एतिहासिक सच्चाई है कि विश्व रत्न बाबा साहब के संघर्षों के कारण अंग्रेज़ सरकार काफी विचार विमर्श एवं कई गोलमेज़ सम्मेलनों के उपरांत बाबा साहब डॉ॰ अंबेडकर की मांग पर भारत में `कम्यूनल एवार्ड` नामक कानून लागू करने पर सहमत हुई। इसके अंतर्गत दलितों को अपना प्रतिनिधि चुनने ले लिए दो वोट का अधिकार दिया गया था।
अगर हम धर्म ग्रन्थों की बात करें तो, धर्म ग्रन्थों में कलियुग के बारे में विस्तार से चर्चा की गई है। हिन्दू धर्म ग्रन्थों में समय के चक्र अनुसार चाय युग बतलाए गए हैं जिसमें कहा गय
अगर हम धर्म ग्रन्थों की बात करें तो, धर्म ग्रन्थों में कलियुग के बारे में विस्तार से चर्चा की गई है। हिन्दू धर्म ग्रन्थों में समय के चक्र अनुसार चाय युग बतलाए गए हैं जिसमें कहा गया है कि प्रलय के बाद जब सृष्टि की पुनर्स्थापना अर्थात सृष्टि का सृजन होता है, तो चतुर्युगी का प्रारम्भ होता है जिसमें भी सर्व प्रथम सतयुग का आगमन होता है।
भारतीय हिन्दू समाज में कन्याओं को बहुत ही उच्च स्थान प्राप्त था और उन्हें पूजनीय कहा गया है। नवरात्रि के अवसर पर कन्याओं को ढूढ़ ढूढ़ कर अपने घरों पर आमंत्रित
भारतीय हिन्दू समाज में कन्याओं को बहुत ही उच्च स्थान प्राप्त था और उन्हें पूजनीय कहा गया है। नवरात्रि के अवसर पर कन्याओं को ढूढ़ ढूढ़ कर अपने घरों पर आमंत्रित किया जाता है और उनका घर घर कन्या पूजन किया जाता है। सामान्य रूप से कुवारी लड़कियों को कन्या कहा जाता है, किन्तु विशेष रूप से 10 वर्ष तक की बच्चियों को ही कन्या कहा जाता है।
पोराणिक काल में योगी खाना एवं पानी पीना छोडकर भी योग के सहारे हजारों वर्षो तक कृशकाय शरीर लेकर भी जीवित रहते थे। रामायण के रचियता बाल्मीकी के बारे में तो प्रसिद्ध है कि वह योग कर
पोराणिक काल में योगी खाना एवं पानी पीना छोडकर भी योग के सहारे हजारों वर्षो तक कृशकाय शरीर लेकर भी जीवित रहते थे। रामायण के रचियता बाल्मीकी के बारे में तो प्रसिद्ध है कि वह योग करते करते अपने शरीर की सुध बुध भूलकर प्रभु भक्ति में इतने मुग्ध थे कि उन्हें अपने शरीर का भी भान नहीं रह गया था और दीमकों ने उनके शरीर को ढककर अपनी बामी ही बना ली थी। जिससे उनका नाम ही बाल्मीकी पड़ गया था।
प्रेम हृदय की ऐसी अभिव्यक्ति है,जिसकी कोई उपमा नहीं दी जा सकती। प्रेम के क्या कहने, सृष्टि के कण कण में अनगिनत रूपों में प्रकट होता है प्रेम। प्रेम ईश्वर के प्रति सबसे सुंदर
प्रेम हृदय की ऐसी अभिव्यक्ति है,जिसकी कोई उपमा नहीं दी जा सकती। प्रेम के क्या कहने, सृष्टि के कण कण में अनगिनत रूपों में प्रकट होता है प्रेम। प्रेम ईश्वर के प्रति सबसे सुंदर भावना है। सारा ब्रम्हांड भी जिस शब्द के लिए छोटा है, वह है प्रेम। जिसमें से होकर गुजरते हैं पेड़ पौधे, जीव जंतु , फूल फल, पक्षी, कीट पतंगे। सृष्टि की हर जीवित, मूर्त और अमूर्त वस्तु जिससे ओतप्रोत है वह है प्रेम भावना और वह शब्द है प्रेम।
परिवार से निकालकर जब वह समाज में आता है तो उसे अपने समाज की चिंता होने लगती है और वह समाज का चौकीदार बन जाता है। समाज की उन्नति के लिए वह सब कुछ करना चाहता है जिसकी समाज को आवश्यकता
परिवार से निकालकर जब वह समाज में आता है तो उसे अपने समाज की चिंता होने लगती है और वह समाज का चौकीदार बन जाता है। समाज की उन्नति के लिए वह सब कुछ करना चाहता है जिसकी समाज को आवश्यकता है। समाज की उन्नति के साथ ही अपने परिवार के भविष्य को जोड़कर देखता है।
जब जब सत्ता को चुनौतियों का सामना करना पड़ा, तब तब सत्ता में बैठे राजा के सलाहकार, महामंत्री और राजगुरु का काम ही यह होता था कि वह राजा को ऐसी सलाह दे जिससे वह सत्ता में बना रह सके। स
जब जब सत्ता को चुनौतियों का सामना करना पड़ा, तब तब सत्ता में बैठे राजा के सलाहकार, महामंत्री और राजगुरु का काम ही यह होता था कि वह राजा को ऐसी सलाह दे जिससे वह सत्ता में बना रह सके। समयानुकूल सलाह देना ही उनका काम होता था और इसके लिए राजा द्वारा उन्हें पूरा राजकीय सम्मान दिया जाता था।
भारत एक धर्म प्रधान देश है, और इसमें अनेक धर्मों का बोलबाला रहा है। प्रत्येक धर्म की अपनी अपनी मान्यताएँ है, किन्तु एक बात सभी धर्मों में एक जैसी है। प्रत्येक धर्म करुणा, बंधुत्व
भारत एक धर्म प्रधान देश है, और इसमें अनेक धर्मों का बोलबाला रहा है। प्रत्येक धर्म की अपनी अपनी मान्यताएँ है, किन्तु एक बात सभी धर्मों में एक जैसी है। प्रत्येक धर्म करुणा, बंधुत्व और व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को बहुत ही महत्व देता है। इसीलिए भारतवर्ष का प्रत्येक नागरिक किसी न किसी धर्म को मानने वाला है।
बाबा साहब डॉ॰ अंबेडकर कभी भी धर्म विरोधी नहीं रहे। वह धर्म को मानवता के लिए आवश्यक मानते थे। उनका परिवार कबीर पंथी था और वे जीवन के प्रारम्भ से ही संत कबीर कि शिक्षाओं से प्रभावि
बाबा साहब डॉ॰ अंबेडकर कभी भी धर्म विरोधी नहीं रहे। वह धर्म को मानवता के लिए आवश्यक मानते थे। उनका परिवार कबीर पंथी था और वे जीवन के प्रारम्भ से ही संत कबीर कि शिक्षाओं से प्रभावित रहे थे। उनके परिवार में संत कबीर के भजन और उनकी वाणी का नियमित पाठ होता था, जिसका प्रभाव उनके व्यक्तिगत जीवन पर पड़ा और वह अंधविश्वास, जातिवाद की भीषण शोषणवादी विचारधारा के विरोध में खुलकर सामने आए।
मनुष्य का आत्मनिर्भर होना ही अपने आप में एक बहुत बड़ी उपलबद्धि होती है। उसके लिए उसे अनेक प्रयत्न करने पड़ते हैं। शिक्षा पूरी करने के उपरांत जब उसे यह ज्ञान हो जाता है कि तब उसे बिन
मनुष्य का आत्मनिर्भर होना ही अपने आप में एक बहुत बड़ी उपलबद्धि होती है। उसके लिए उसे अनेक प्रयत्न करने पड़ते हैं। शिक्षा पूरी करने के उपरांत जब उसे यह ज्ञान हो जाता है कि तब उसे बिना किसी के सहारे के, आत्मनिर्भर हो कर जीवन का आनंद लेना है तो वह इसको प्राप्त करने हेतु प्रयास करता है।
बहुजन समाज यदि विषमतावादी संस्कृति को नष्ट करके समतावादी संस्कृति के आधार पर समतामूलक समाज बनाना चाहता है तो उसे विषमतावादी संस्कृति को अलग थलग छोडकर उसके समानान्तर अपनी समता
बहुजन समाज यदि विषमतावादी संस्कृति को नष्ट करके समतावादी संस्कृति के आधार पर समतामूलक समाज बनाना चाहता है तो उसे विषमतावादी संस्कृति को अलग थलग छोडकर उसके समानान्तर अपनी समतावादी संस्कृति, अपनी समतावादी विचारधारा और इसके समतावादी महानायक तथा महानायिकाओं को चर्चा, विमर्श के केंद्र में रखना होगा।
नारी शक्ति के बिना इस संसार में मनुष्य कुछ भी नहीं कर सकता है, क्योंकि बिना नारी शक्ति उसकी दशा बिना इन्जन वाली गाड़ी जैसी होती है। इस धरती पर सबसे पहले नारी शक्ति के रूप में माँ द
नारी शक्ति के बिना इस संसार में मनुष्य कुछ भी नहीं कर सकता है, क्योंकि बिना नारी शक्ति उसकी दशा बिना इन्जन वाली गाड़ी जैसी होती है। इस धरती पर सबसे पहले नारी शक्ति के रूप में माँ दुर्गा भवानी का अवतरण हुआ है। नारी शक्ति की ही अगुवाई व निर्देशन में ब्रह्मा, विष्णु और महेश की उत्पत्ति हुयी और नारी शक्ति की ही देखरेख में ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना शुरू की।
मनुष्य की आधाभूत अवश्यकताओं रोटी, कपड़ा और मकान में से एक सबसे बड़ी अवश्यकता मकान की भी होती है। उसी के आधार मूलभूत ढांचे को खड़ा करने के लिए सरकार भी बिभिन्न प्रकार की परियोजनाओं क
मनुष्य की आधाभूत अवश्यकताओं रोटी, कपड़ा और मकान में से एक सबसे बड़ी अवश्यकता मकान की भी होती है। उसी के आधार मूलभूत ढांचे को खड़ा करने के लिए सरकार भी बिभिन्न प्रकार की परियोजनाओं का निर्माण करती है। सरकार की बड़ी बड़ी परियोजनाओं को जनमानस के प्रयोगार्थ खड़ा करने के लिए उसे कई कदम उठाने पड़ते है जिसमें विस्तृत परियोजना रिपोर्ट काफी महत्व पूर्ण होती है। जिसमें नीतिगत फैसले के संदर्भ में उसका महत्व काफी हो जाता है।
भारत एक धर्म प्रधान देश है। यहाँ बिभिन्न धर्मों के लोग अपनी बिभिन्न धर्म मर्यादायों को निभाते हुये अपना जीवन यापन करते हैं। लेकिन यह भी यहाँ की सच्चाई है की प्रायः सभी धर्मों मे
भारत एक धर्म प्रधान देश है। यहाँ बिभिन्न धर्मों के लोग अपनी बिभिन्न धर्म मर्यादायों को निभाते हुये अपना जीवन यापन करते हैं। लेकिन यह भी यहाँ की सच्चाई है की प्रायः सभी धर्मों में जातिवाद, संप्रदायवाद और उंच नीच की भावना गहरे तक समाई हुई है। इसमें हिन्दू धर्म में तो अस्प्र्श्यता के कारण एक बहुसंख्यक वर्ग को शोषित और अल्पसंख्यक वर्ग को शोषक बना दिया है। शोषित वर्ग के आर्थिक उन्नयन के सभी रास्ते बंद कर उनका सामाजिक बहिस्कार भी किया गया है।
आज तो क्या पोरामणक काल िे ही िनुष्य के जीवन की िौमलक आवश्मकताओं िें तीन िीजें प्रिुखता िे रहीं हैं, वह हैं रोटी, कपड़ा और िकान। यह िनुष्य की ऐिी िूल भूत आवश्मकतायें है मजनके मवना िा
आज तो क्या पोरामणक काल िे ही िनुष्य के जीवन की िौमलक आवश्मकताओं िें तीन िीजें प्रिुखता िे रहीं हैं, वह हैं रोटी, कपड़ा और िकान। यह िनुष्य की ऐिी िूल भूत आवश्मकतायें है मजनके मवना िानव जीवन की क
भारत वर्ष एक कृषि प्रधान देश है, साथ ही भारत की बहु संख्यक आबादी आज भी मजदूरी पर आधारित है। चाहे वह कृषि मजदूर हों, औद्योगिक मजदूर हों अथवा निर्माण मजदूर हों।
भारत वर्ष एक कृषि प्रधान देश है, साथ ही भारत की बहु संख्यक आबादी आज भी मजदूरी पर आधारित है। चाहे वह कृषि मजदूर हों, औद्योगिक मजदूर हों अथवा निर्माण मजदूर हों।
भारत एक कृवर् प्रधान देि है। कृवर् के िाद, वनमाथण उद्योि भारत का दूसरा सिसे िडा उद्योि है। यह उद्योि भारत के सकल घरेलू उत्पाद का आठ प्रवतित वहस्सा है क्ोंवक यह हर साल लिभि 40 वमवलय
भारत एक कृवर् प्रधान देि है। कृवर् के िाद, वनमाथण उद्योि भारत का दूसरा सिसे िडा उद्योि है। यह उद्योि भारत के सकल घरेलू उत्पाद का आठ प्रवतित वहस्सा है क्ोंवक यह हर साल लिभि 40 वमवलयन लोिों को काम पर रखरोजिार देने और नए नौकररयों का सृजन करके रोजिार का सिसे िडा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष वनमाथता है।
विश्व रत्न, शोषित के भगवान, तथागत आदि विश्लेषणों से जिनको सारा विश्व जनता है ऐसे बाबा साहब डॉ॰ भीमराव अंबेडकर के बचपन के बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं। क्योंकि जब उनका बचपन हि
विश्व रत्न, शोषित के भगवान, तथागत आदि विश्लेषणों से जिनको सारा विश्व जनता है ऐसे बाबा साहब डॉ॰ भीमराव अंबेडकर के बचपन के बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं। क्योंकि जब उनका बचपन हिलोरें ले रहा था तब उस महार बालक सकपाल के बारे में किसी ने सोचा ही नहीं होगा कि यह बालक आने वाले समय में शोषक उद्धारक के साथ साथ भारत का नीति निर्माता भी बनेगा, एक दिन जिसे सारा विश्व नमन करेगा।
इनके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल था जो ब्रिटिश प्रशासन में सूबेदार के पद तक पहुंच गए थे और माता का नाम भीमाबाई मुरबादकर था। इनके बचपन में ही इनकी माँ का देहांत हो जाने के कारण इन्हे इनकी बुआ मीराबाई ने सम्हाला और उन्ही के कहने पर इनके पिता ने जीजाबाई से दूसरी शादी की। ये अपने माता पिता की 14वीं और अंतिम संतान थे। ये हिन्दू धर्म की महार जाति से थे, जो की उस समय की परिस्थिति के अनुसार अछूत मानी जाती थी, जिसके कारण इन्हे जन्म से ही समाज में बुरी तरह का भेदभाव सहन करना पड़ा था।
अतः इस विषय के बिभिन्न खंडों को जन उपयोगी रूप में प्रकट करने की मैंने कोशिश की है। आशा है कि यह आम जनमानस को विशेष रूप से उपयोगी होगी। साथ ही न केवल बाबा साहब डॉ॰ अंबेडकर के बचपन बल्कि उन सारी परिस्थित्यों को समझने के लिए भी यह जानकारी लाभकारी होगी जिनमें उनका बचपन बीता।
आशा है प्रबुद्ध पाठकगणों को मेरा यह प्रयास पसंद आएगा। भविष्य में आपको और भी अच्छे अच्छे विषय के शोध संग्रह पुस्तक के रूप में देता रहूँ ऐसा आशीर्वाद दें।
आदिमानव का उद्भव तथा उसका विस्तार पोराणिक काल से ही रहस्य का विषय रहा है। इस विषय में कोई भी धर्म इस पर एकमत नहीं है कि आदिमानव का जन्म तथा उसका विस्तार किस प्रकार हुआ।
पाश्चात्
आदिमानव का उद्भव तथा उसका विस्तार पोराणिक काल से ही रहस्य का विषय रहा है। इस विषय में कोई भी धर्म इस पर एकमत नहीं है कि आदिमानव का जन्म तथा उसका विस्तार किस प्रकार हुआ।
पाश्चात्य मान्यता के अनुसार जलीय जीव के रूप में जन्मे जीव का विस्तार होते होते वह जलचर से थलचर जीव के रूप में विकसित हुआ। तत्पश्चात चार पाये से दो पाया फिर बानर रूप में यह जीव बिकसित हुआ। फिर आगे चलकर यह दो पाया जीव सीधा खड़ा होने लगा। तब फिर यह मानव के रूप में विकसित हो गया।
किन्तु हिन्दू धर्म शास्त्र इसको मान्यता नहीं देते हैं, उनके अनुसार प्रत्येक कालचक्र के उपरांत प्रलय का आगमन होता है तथा प्रलय के फलस्वरूप पूरी जीवन चक्र नष्ट हो जाता है और पूरी सृष्टि परम पिता भगवान नारायण में विलीन हो जाती है।
इसी प्रकार इस्लाम, ईसाई तथा विश्व के अन्य सभी धर्मों की अलग अलग अपनी अपनी मान्यताएँ हैं। इसलिए इस विषय पर शोध करके पुस्तक रूप में सबके समक्ष सत्य को लाने के विचार स्वरूप मैंने यह विषय चुना है।
वैज्ञानिक अब तक यही कहते रहे हैं कि प्राचीन वानरों के बीच से अलग हो कर दो पैरों पर चलने वाले सबसे आदि मनुष्य का विकास क्रम कोई 70 लाख वर्ष पूर्व अफ्रीका में शुरू हुआ था।
मनुष्यों की अन्य आदिकालीन प्रजातियों का, जैसे कि यूरोपवासी ने आन्डरथाल मनुष्य, साइबेरिया के देनिसोवा मनुष्य या इंडोनेशिया के बौने कद वाले फ्लोरेसियेन्सिस मनुष्य का समय के साथ हजारों साल पहले ही विलोप हो गया।
अंत में कोई निष्कर्ष निकालने के पूर्व वर्तमान काल में मानव संस्कृति के लिहाज से किस ओर जा रहा है और इसके क्या क्या परिणाम हो सकते हैं, इस पर भी चर्चा करेंगे।
विश्व में विशेष रूप से भारत वर्ष के जन मानस के हृदय में विश्व रत्न बाबा साहब डॉ॰ भीम राव अंबेडकर का दर्शन गहरे तक बैठ गया है। बाबा साहब डॉ॰अंबेडकर का दर्शन आखिर है क्या, यहाँ हम इस
विश्व में विशेष रूप से भारत वर्ष के जन मानस के हृदय में विश्व रत्न बाबा साहब डॉ॰ भीम राव अंबेडकर का दर्शन गहरे तक बैठ गया है। बाबा साहब डॉ॰अंबेडकर का दर्शन आखिर है क्या, यहाँ हम इसी को विस्तार से बताएँगे।
उन्होने न केवल भारत के शोषित, पीड़ित और दलित समुदाय के लिए जीवन भर संघर्ष किया बल्कि हिन्दू समुदाय में भी शोषित पीड़ित महिलाओं तथा श्रमिकों के हितों के लिए संघर्ष किया बल्कि कई कानून बनवाकर उन्हें शोषण से मुक्ति दिलाने का काम किया।
बाबा साहब डॉ॰ अंबेडकर का मिशन अर्थात उनका दर्शन इससे कहीं अधिक बड़ा था। वह क्या क्या करना चाहते थे आज उनके विचार पूरी दुनियाँ के लिए एक आदर्श है। इसीलिए उन्हें विश्व समुदाय विश्व रत्न मानता है तथा इसकी गूंज भारत वर्ष से कहीं अधिक भारत से बाहर विश्व भर में सुनाई देती है।
मैंने इस पुस्तक के माध्यम से बाबा साहब डॉ॰ अंबेडकर के दर्शन पर प्रकाश डालने का प्रयास किया है किन्तु यह मेरा प्रयास सूरज को दीपक दिखलाने जैसा ही है, फिर भी मैंने प्रयास किया है कि उनकी प्रत्येक भावना तथा उनके दर्शन की व्यापकता को पाठकों के समक्ष रख सकूँ।
विश्वरत्न बाबा साहब डॉ॰ भीमराव अंबेडकर राजकीय लोकतान्त्रिक समाजवाद के प्रवल समर्थक थे। वह चाहते थे कि भारत का आर्थिक दर्शन राजकीय लोकतान्त्रिक समाजवाद पर आधारित हो। भारत की स
विश्वरत्न बाबा साहब डॉ॰ भीमराव अंबेडकर राजकीय लोकतान्त्रिक समाजवाद के प्रवल समर्थक थे। वह चाहते थे कि भारत का आर्थिक दर्शन राजकीय लोकतान्त्रिक समाजवाद पर आधारित हो। भारत की स्वतन्त्रता के बाद यहाँ की नीतियाँ इस प्रकार बने जिसमें सर्वहारा का हित सुरक्षित रहे तथा भारत की आर्थिक उत्पादन की योजनाओं में उनकी भागीदारी हो।
भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात भारत के प्रथम प्रधान मंत्री श्री जवाहर लाल नेहरु की अगुवाई में जो भी योजनाए बनी उनमें इसका प्रभाव देखा गया। बड़े बड़े भारी उद्योग सार्वजनिक क्षेत्र में लगाए गए और लगभग सभी बड़ी बड़ी संस्थाएं, उद्योग और सेवा के संस्थान राजकीय अथवा सार्वजनिक नियंत्रण में ही रखे गए।
राजकीय समाजवाद राज्य व्यवस्था में ऐसी व्यवस्था है जिसमें पूंजी और उत्पादन के सभी साधनों पर राज्य का अधिकार होता है। एक ऐसी व्यवस्था जिसमें समाज में घोर असमानताएं न हों। वहां पर कोई शोषित और दलित वर्ग न हो।
तो आइये यहाँ हम राजकीय लोकतान्त्रिक समाजवाद पर शोध करे तथा इस पर विस्तार से चर्चा करे जिससे सत्य से देश को अवगत कराया जा सके। सारे संसार में फैली खासकर भारत के संदर्भ में राजकीय लोकतान्त्रिक समाजवादी व्यवस्था के सत्य को सबके समक्ष लाकर इसके लाभ व हानि पर हम विस्तार से चर्चा करेंगे।
भारत एक कृषि प्रधान देश है तथा इसकी दो तिहाई आबादी गांवों में निवास करती है। इस ग्रामीण आबादी में भी अधिकांश लोग कृषि पर निर्भर रहकर जीवन यापन करते हैं । इसके लगभग 70 प्रतिशत लोग क
भारत एक कृषि प्रधान देश है तथा इसकी दो तिहाई आबादी गांवों में निवास करती है। इस ग्रामीण आबादी में भी अधिकांश लोग कृषि पर निर्भर रहकर जीवन यापन करते हैं । इसके लगभग 70 प्रतिशत लोग किसान हैं, उनमें भी अधक्टर लोग लघु जोतों के किसान हैं जिनका जीवन यापन बड़ी मुश्किल से हो पता है।
कृषि के साथ साथ ये लघु कृषक अपने परिवार का पालन पोषण करने के लिए मजदूरी करके जीवन यापन करते हैं। अभी तक गांवों में शिक्षा तथा रोजगार का आभाव है जिस कारण वे शहरों की ओर पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं। जिसका जीता जागता उदाहरण गत दिवसों कोरोना काल में प्रवासी मजदूरों की घर वापसी के समय देखने को मिला था।
सरकार द्वारा किसानों के हित में क्या क्या योजनाएं बनाई है तथा उनका जमीनी स्तर पर कितना काम हुआ है इस पर भी हम विचार करेंगे। साथ ही ग्रामीण विकास पर भी हम नज़र डालकर उसकी जमीनी हक़ीक़त की जानकारी लेंगे।
यहाँ हम भारतीय किसान की हालत, उनकी समस्याओं तथा सरकारी योजनाओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे, साथ ही ग्रामीण विकास के बारे में भी जानकारी जुटाकर उन पर शोध पूर्ण सामिग्री के साथ उन सबसे समाज को अवगत कराएंगे।
भारत की संसदीय प्रणाली में प्रधानमंत्री का एकछत्र राज चलता है। एक प्रकार से यह लोकतंत्र की तानाशाही है। क्योंकि भारतीय संसदीय प्रणाली में प्रधानमंत्री को असीमित अधिकार मिलते
भारत की संसदीय प्रणाली में प्रधानमंत्री का एकछत्र राज चलता है। एक प्रकार से यह लोकतंत्र की तानाशाही है। क्योंकि भारतीय संसदीय प्रणाली में प्रधानमंत्री को असीमित अधिकार मिलते हैं और उसकी जवावदेही लगभग नहीं के बराबर होती है, जैसा कि नोटबंदी व जीएसटी लागू करने के समय में देखा गया है।
लोकतन्त्र के तनाशाह की भारत के संदर्भ में जब भी बात होगी तो हमें तुरंत याद आता है भारत की प्रधान मंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी के द्वारा 1975 में लगाया गया का आपातकाल। उनके विरोधी उसे तानाशाही का अनुपान उदाहरण बताते हैं, परंतु प्रशासनिक व्यवस्था इतनी दुरुस्त हो गई थी कि सभी काम समय से और ठीक प्रकार जनता के हित में हो रहे थे। इसीलिए आपातकाल के इन्दिरा राज को आज भी याद किया जाता है।
लोकतन्त्र में तानाशाही का प्रवेश कैसे होता हैतथा उसे कैसे रोका जा सकता है। इसी समस्या पर विचार विमर्श करने के लिए मैंने यह विषय चुना है। जिससे हम अपनी ज़िम्मेदारी समझते हुये संवैधानिक मर्यादा में रहकर सत्य को समाज के समक्ष लाकर उसे तथ्यों से अवगत करा सकें। जिससे लोकतन्त्र में तानाशाही के विरुद्ध जनमत तैयार हो सके।
शिक्षा, संघ (संगठन) और संघर्ष (बुराइयों से) किसी भी समाज के लिए वह रक्षा कवच रहा है जिसे धरण करके कोई सभ्य समाज अपने मान, आत्मसम्मान, स्वाभिमान तथा अपनी पीड़ी के भविष्य के गौरव को अक्
शिक्षा, संघ (संगठन) और संघर्ष (बुराइयों से) किसी भी समाज के लिए वह रक्षा कवच रहा है जिसे धरण करके कोई सभ्य समाज अपने मान, आत्मसम्मान, स्वाभिमान तथा अपनी पीड़ी के भविष्य के गौरव को अक्षुण रखकर उस पीड़ी को प्रेरणा दे सकता है।
जब भारत का स्वतन्त्रता आंदोंलन अपने चरम पर था तथा निर्णायक मोड़ पर पहुँच रहा था और लग रहा था की भारत माँ को अब आज़ादी मिलने ही वाली है, लेकिन तब भी किसी ने नहीं सोचा था कि भारत भूमि तो अंग्रेजों के राज से मुक्ति पा जाएगी किन्तु क्या भारत में हिंदुओं के बीच उस बहुसंख्यक समाज को भी आज़ादी की सांस लेने आज़ादी मिल जाएगी जो सदियों सी गुलामों से भी बदतर ज़िंदगी जीने को मजबूर है।
इस पुस्तक के माध्यम से हम यहाँ इन्हीं तीन मूल मंत्रों पर प्रकस डालने का प्रयास करेंगे। हम जानेंगे कि शिक्षा आखिर क्या है पौराणिक काल से लेकर आज आधुनिक शिक्षा ने क्या क्या पड़ाव देखे हैं। और अब आई नई शिक्षा नीति क्या है, किस तरह से यह भावी पीड़ी के लिए लाभदायक होगी तथा क्या इससे भारत फिर से विश्व गुरु बनेगा।
जब हम राष्ट्र के निर्माण में शूद्रों के योगदान की बात करते है तो हमें सर्व प्रथम उस स्वर्ण युग की बात याद आती है जब कोई भी ब्राह्मण, क्षत्री, वैश्य अथवा शूद्र नहीं होता था। सभी एक उ
जब हम राष्ट्र के निर्माण में शूद्रों के योगदान की बात करते है तो हमें सर्व प्रथम उस स्वर्ण युग की बात याद आती है जब कोई भी ब्राह्मण, क्षत्री, वैश्य अथवा शूद्र नहीं होता था। सभी एक उस परम पिता परमेस्वर की ही संतान हुआ करते थे। कोई भी वर्णवाद अथवा जातिवाद नहीं होता था।
यह सामाजिक विकार तो बहुत समय बाद तब आया जब मनुष्य ने मनुष्य की सीमाएं निश्चित कर दी और एक बड़ी आवादी को गुलामी का जीवनजीने को मजबूर कर दिया। दिया।
आज भी भवन निर्माण, सड़क अथवा फेक्टरी निर्माण हो, यहाँ तक कि मंदिर निर्माण तक का कार्य करने वाले को भी नीच जाति का ही समझा जाता है और मंदिर निर्माता को उसी मंदिर में प्रवेश से वंचित कर दिया जाता है जिसके निर्माण में उसका खून पसीना लगा है।
हम इस पुस्तक के माध्यम से राष्ट्र निर्माण में शूद्रों के योगदान के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करेंगे तथा यह जानने का प्रयास करेंगे कि क्या केवल और केवल शूद्रों ने ही राष्ट्र निर्माण में अहम योगदान किया है। अन्य वर्ण व जातियाँ तो अपनी जमींदारी, राज पाट संभालने तथा ऐशोआराम में ही व्यस्त रहे।
पूंजीवाद व्यवस्था में आर्थिक रूप से कमजोर व श्रमिकों का खास खायाल रखा गया था। देश में पूंजीबाद हावी न होने पाये इसके लिए सरकारी व सार्वजनिक उद्यमों तथा भारी कल कारखानों की नी
पूंजीवाद व्यवस्था में आर्थिक रूप से कमजोर व श्रमिकों का खास खायाल रखा गया था। देश में पूंजीबाद हावी न होने पाये इसके लिए सरकारी व सार्वजनिक उद्यमों तथा भारी कल कारखानों की नीव रखी गई जिसमें करोड़ों लोगों को सरकारी नौकरी व रोज़ी रोटी दी गई।
इस सबसे समाज की आर्थिक दशा में काफी सुधार भी परिलक्षित हुआ। सरकारी व सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम भी काफी लाभ अर्जित कर रहे थे और उन्हें उद्योग रत्न की श्रेणी में रखा गया था।
देश का इतिहास इस बात का गवाह है कि ब्रिटिश पूंजीवादी ईस्ट इंडिया कंपनी ने देश के तत्कालीन शासकों को बरगलाकर यहाँ व्यापार करने की सहमति लेकर व्यापार शुरू किया था।उसके बाद पूरे व्यापार और पूंजी पर कब्जा कर लिया और धीरे धीरे राज्यों पर कब्जा कर लिया। उसके बाद भारत देश को गुलाम बनाकर देश के शासक बन बैठे, उस गुलामी का दंश हमारे पूर्वजों ने 200 साल तक झेला। क्या हमें इससे सबक नहीं लेना चाहिए?
तो आइये अब हम विस्तार से चर्चा का प्रारम्भ करें जिससे वर्तमान तथा भावी पीड़ी का मार्ग दर्शन हो सके। इस शोध ग्रंथ को मैं संविधान दिवस को समर्पित कर रहा हूँ जिससे संविधान कि मंशा के विपरीत किए जा रहे कार्यों का विरोध किया जा सके।
भय, भूख और भृष्टाचार एक ऐसा विषय है जो जन जीवन पर गहरा प्रभाव डालता है। इन तीनों कार्यों को नियंत्रण करने की ज़िम्मेदारी सरकार की होती है। सरकार इन तीनों ही समस्याओं को दूर करने
भय, भूख और भृष्टाचार एक ऐसा विषय है जो जन जीवन पर गहरा प्रभाव डालता है। इन तीनों कार्यों को नियंत्रण करने की ज़िम्मेदारी सरकार की होती है। सरकार इन तीनों ही समस्याओं को दूर करने में कहीं न कहीं बिफल ही हुई है।
पौराणिक काल की वर्ण व्यवस्था से लेकर आज की जातिवादी व्यवस्था तक चौथे पायदान पर रहने वाले शूद्र अर्थात दलितों पर ही इसकी सबसे अधिक मार पड़ती है।
जीवन भर सरकार की सेवा करके यदि कोई अधिकारी सेवा से रिटायर होता है तो उसे भी अपने अवशेष व पेंशन के लिए रिस्वत दैनी पड़ती है। बिजली विभाग में व्याप्त भृष्टाचार किसी से छिपा नहीं है।
तब हम इससे प्रेरणा लेकर भय, भूख और भृष्टाचार पर शोध करे तथा इस पर विस्तार से चर्चा करे जिससे सत्य से देश को अवगत कराया जा सके। सारे संसार में फैली भय, भूख और भृष्टाचार की व्यवस्था के सत्य को सबके समक्ष लाकर इसके लाभ व हानि पर हम विस्तार से चर्चा करेंगे।
हिंदू जीवन पद्धति में बदलाव लाने के कई प्रस्ताव पहले भी हो चुके थे लेकिन इसमें शोषित, पीड़ित, अपमानजनक जीवन जीने वालों तथा सभी समाज की महिलाओ के जीवन यापन में सुधार या कोई भी बदलाव
हिंदू जीवन पद्धति में बदलाव लाने के कई प्रस्ताव पहले भी हो चुके थे लेकिन इसमें शोषित, पीड़ित, अपमानजनक जीवन जीने वालों तथा सभी समाज की महिलाओ के जीवन यापन में सुधार या कोई भी बदलाव नहीं परिलक्षित नहीं हुआ।
ब्रिटिश सरकार के प्रयास भी जब कोई बदलाव न ला सके तो हिंदुओं में सुधार के लिए बाबा साहब डा॰ भीम राव अंबेडकर ने संविधान सभा के सामने 11 अप्रैल 1947 को पहली बार हिंदू कोड बिल पेश किया।
लेकिन कट्टरवादी हिंदुओं खासकर आर॰ एस॰ एस॰, रामराज्य परिषद व अन्य कट्टर दक्षिणपंथियों के कड़े विरोध के चलते उनका का यह प्रयास सफल नहीं हुआ। इस बिल को 9 अप्रैल 1948 को सेलेक्ट कमेटी के पास भेज दिया गया।
अगर बाबा साहब डा॰ भीम राव अंबेडकर का यह प्रस्ताव पास होकर कानूनी रूप पा जाता और जातिवाद की घिनोनी प्रथा पर कट्टरवादी हिंदू लगाम लगाने पर सहमत हो जाते तो शायद बाबा साहब हिन्दू धर्म त्यागने के विचार पर अवश्य फैसला लेने के पहले सोचते।
हिन्दू कोड बिल पर एक व्यापक चर्चा करके मैंने सत्य को सभी के सामने लाने का प्रयास किया है। इसमें मैं कहाँ तक सफल हुआ हूँ यह निर्णय मैं पाठक गणों पर ही छोडता हूँ। आशा है उनको यह मेरा प्रयास अवश्य ही रुचिकर लगेगा और इसकी प्रशंसा करेंगे।
निःसंदेह जाति प्रथा हिन्दू धर्म के साथ ही भारतवर्ष के लगभग सभी धर्मों में व्याप्त एक सामाजिक कुरीति है। ये विडंबना ही है कि देश को आजाद हुए सात दशक से भी अधिक समय बीत जाने के बाद भ
निःसंदेह जाति प्रथा हिन्दू धर्म के साथ ही भारतवर्ष के लगभग सभी धर्मों में व्याप्त एक सामाजिक कुरीति है। ये विडंबना ही है कि देश को आजाद हुए सात दशक से भी अधिक समय बीत जाने के बाद भी हम जाति प्रथा के चंगुल से मुक्त नहीं हो पाएं हैं।
भरात की आज़ादी से पहले तथा आज़ादी के बाद भी कई समाज सुधारकों ने इस जाति प्रथा के समूल विनाश हेतु अनेक कार्य किए जिसमें विश्व रत्न बाबा साहब डॉ॰ भीम राव अंबेडकर का योगदान हमेशा याद रखा जाएगा जिसके लिए उन्हें शोषित के भगवान के रूप में भी याद किया जाता है।
उन्हीं से प्रेरणा लेकर जब यह सोचा की किस प्रकार जातिवाद का विनाश किया जा सकता है तो यही विचार आया कि “जातिवाद पर करें प्रहार, शिक्षा, स्वस्थ्य और संस्कार” जिसमें प्रत्येक शब्द का अलग अलग प्रहार दिखाई देता है।
अगर सचमुच हम समानता का जातिविहीन समाज बनाना चाहते हैं तो एक नेशनल नैरेटिव के साथ सामाजिक न्याय का एक रैशनल प्रारूप बनाना होगा। इसके लिए विवाद कम विचार ज्यादा करने की जरूरत है।
तो आइये आज हम जातिवाद के मूल पर प्रहार करे और इससे पीड़ित समाज को इससे आज़ादी दिलाने हेतु प्रयास करें, तभी हमारा जीवन सफल माना जाएगा।
आशा ही नहीं मेरा पूरा विश्वास है की मेर यह प्रयास प्रबुद्ध पाठकगणों को रुचिकर लगेगा तथा पसंद आएगा। अगर मुझसे कहीं भूल हुई हो तो मुझे क्षमा करेंगे तथा मुझे अवगत कराएंगे जिससे उसे सुधार कर उन्नत रूप में प्रस्तुत किया जा सके।
वैसे तो पूरा विश्व ही कोरोनावाइरस महामारी से तृस्त है किन्तु विकसित देशों के मुकावले भारतवर्ष की सामाजिक संरचना कुछ ऐसी है कि सामूहिक व सामुदायिक रूप में रचावसा भारतीय समुदाय
वैसे तो पूरा विश्व ही कोरोनावाइरस महामारी से तृस्त है किन्तु विकसित देशों के मुकावले भारतवर्ष की सामाजिक संरचना कुछ ऐसी है कि सामूहिक व सामुदायिक रूप में रचावसा भारतीय समुदाय इससे काफी प्रभावित हुआ है।
भारत के अधिकांश निवासी एक प्रवासी के रूप में सरकारी व गैर-सरकारी नौकरी के कारण तथा प्रवासी मजदूर के रूप में अपने घरों से दूर रहकर जीवन यापन करते हैं। वहाँ भी वह घनी वस्तियों में रहकर दिनचर्या विताते हैं जिस कारण वह जल्दी ही किसी भी महामारी की चपेट में आ जाते हैं।
इस महामारी से जहां भारतीय अर्थव्यवस्था पर संकट आया वहीं सामाजिक ताने वाने में भी काफी वदलाव महसूस किया गया। उसी को इस पुस्तक के माध्यम से सामने लाने का प्रयास किया गया है। पाठकगण कृपया अपने सुझावों से मुझे अवगत करने की कृपा करें जिससे इस कोरोनावाइरस महामारी से जमकर लोहा लिया जा सके।
आज कल भारतीय राजनीति में जो शब्द सर्वाधिक प्रयोग होता है वह है ब्राह्मणवाद। यह ब्राह्मणवाद रूपी शब्द कहाँ से आया, यह कैसे भारतीय सामाजिक ताने बाने में रच बस गया यह एक शोध का विषय
आज कल भारतीय राजनीति में जो शब्द सर्वाधिक प्रयोग होता है वह है ब्राह्मणवाद। यह ब्राह्मणवाद रूपी शब्द कहाँ से आया, यह कैसे भारतीय सामाजिक ताने बाने में रच बस गया यह एक शोध का विषय है। आज के परिपेक्ष में इस पर काफी कार्य करने की आवश्यकता है जिससे समाज में छाई अनेक भ्रांतियों को दूर किया जा सके।
भारत के पौराणिक काल में जब वर्ण आश्रम चरम पर था और जातिवाद का उदय नहीं हुआ था तब कोई भी शोषक अथवा शोषित नहीं था। लोग अपनी योग्यता के आधार पर कोई भी वर्ण धरण कर सकते थे अर्थात शिक्षा और पवित्रता के आधार पर कोई भी व्यक्ति ब्राह्मण की पदवी प्राप्त कर ब्राह्मण बनकर ब्राह्मण का कार्य अर्थात पूजा पाठ, गुरुकुल में आचार्य का कार्य कर सकता था।
कालांतर में कुछ कुटिल व्यक्तियों ने समाज में ऊंचा स्थान पाकर उसे न छोडने की नीयत से व अपनी आगामी पीड़ियों के लिए वह ऊंचे स्थान आरक्षित करने के उद्देश्य से ब्राह्मण वर्ग ने इसे जन्म के आधार पर ला दिया। अपने बचाव के लिए साम, दाम, दंड, भेद की नीति अपनाकर क्षत्रिय व वैश्यों को भी अपने साथ मिला लिया और समझा बुझाकर जन्म के आधार पर उनके स्थान निश्चित कर दिये। तब इन तीनों वर्गों ने सेवा भावी समाज को एक चौथा वर्ग "शूद्र" के रूप में स्थापित करके शोषण की प्रथा को जन्म दिया। प्रारम्भिक काल में यही ब्राह्मणवाद था।
आइये आज हम भारत की आज़ादी की ७४वी वर्षगांठ पर स्वतन्त्रता दिवस के मौके पर यह प्रण लें कि इस जातिवादी, शोषणकारी व्यवस्था रूपी ब्राह्मणवाद के समूल नाश हेतु एकजुट होकर कार्य करें जिससे भारत पुनः सौने की चिड़िया के रूप में विश्व में प्रसिद्धि पाकर अपनी चमक कायम कर सके और विश्व गुरु का हमारा सपना साकार हो सके।
वैसे तो भारत में खासकर हिन्दू समाज में जातिवाद रूपी कोड़ सदियों पुराना है और सदियों से शूद्र समाज को इसका डंक झेलना पड़ा है। सदियों से पीड़ित, शोषित और गुलामी जंजीरों से जकड़े इस बहु
वैसे तो भारत में खासकर हिन्दू समाज में जातिवाद रूपी कोड़ सदियों पुराना है और सदियों से शूद्र समाज को इसका डंक झेलना पड़ा है। सदियों से पीड़ित, शोषित और गुलामी जंजीरों से जकड़े इस बहुसंख्यक समुदाय की रोग मुक्ति का कॉपी समुचित इलाज़ नहीं मिल पा रहा था।
कुछ समाज सुधारकों ने इनकी पीड़ा को महसूस किया और इनकी मुक्ति का प्रयास भी किया किन्तु वह इसमें आंशिक रूप से ही सफल हो पाये। इसमें मुख्यतः संत कबीर, संतशिरोमणि रेदास, ज्योतिबा फुले, रामास्वामी नाइकर आदि का नाम उल्लेखनीय है।
किन्तु इस बीमारी की असली चिकित्सा तो विश्व रत्न बाबा साहब डा॰ भीम राव अंबेडकर ने ही की, तत्पशचात उनके उत्तराधिकारी मान्यवर कसीराम ने इस अछूत समाज को गुलामी से निकालकर शासक वर्ग में स्थान दिलाया।
यहाँ किसी समुदाय की बुराई करना मेरा उद्देश्य बिलकुल नहीं है परंतु यह प्रस्तुत करना है कि अभी भी समय है कि वह अपने सुधार लाकर सदियों से पीड़ित, शोषित और गुलामी जंजीरों से जकड़े इस बहुसंख्यक समुदाय को अपनाकर ससम्मान अपने गले लगाकर अपनी उदारता का परिचय दे।
सारा विश्व इससे परिचित है की भारत के संबिधान के प्रारूप का निर्माण करने में विश्व रत्न बाबा साहब डा॰ बी॰ आर॰ आंबेडकर की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। विश्व स्तर के कानून विशेषज्ञ, स
सारा विश्व इससे परिचित है की भारत के संबिधान के प्रारूप का निर्माण करने में विश्व रत्न बाबा साहब डा॰ बी॰ आर॰ आंबेडकर की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। विश्व स्तर के कानून विशेषज्ञ, समाज शास्त्री, श्रमिक हितेषी व शोषित के भगग्वान के रूप में विख्यात बाबा साहब ने भारत के संविधान निर्माण में अपनी उपरोक्त विशेषताओं का भरपूर योगदान दिया।
इस पुस्तक में मैंने ब्रिटिश काल से लेकर आधुनिक काल तक इतिहास से लेकर संविधान लागू करने तक संविधान के विभिन्न पहलुओं पर प्रकास डालने का प्रयत्न किया है। संविधान निर्माण को लेकर विरोधियों में छाई हुई कई भ्रांतियों का भी निराकरण कर उन्हें दूर करने का प्रयास किया है जो मानते हैं कि बाबा साहब डा॰ आंबेडकर ने अकेले ही संविधान का निर्माण नहीं किया।
इंजीनियर डी॰ के॰ प्रभाकर
आधुनिक युग में संसार में, खासकर भारत वर्ष में बोद्ध धर्म का प्रादुरभाव भारत की आज़ादी के बाद हुआ है, जिसका श्रेय विश्व रत्न तथागत बाबा साहब डा॰ भीमराव अंबेडकर को जाता है जिन्होंने
आधुनिक युग में संसार में, खासकर भारत वर्ष में बोद्ध धर्म का प्रादुरभाव भारत की आज़ादी के बाद हुआ है, जिसका श्रेय विश्व रत्न तथागत बाबा साहब डा॰ भीमराव अंबेडकर को जाता है जिन्होंने 1956 तक विश्व के सभी प्रचलित धर्मों कर ब्रहद अध्ययन किया और यह पाया की हिन्दू धर्म में व्याप्त बुराइयों खासकर भीषण जातिबाद और शोषणबाद से मुक्ति अथवा छुटकारा पाने के लिए उनके और उनके अनुयाइयों के लिए बुद्ध धर्म ग्रहण करना ही उत्तम है।
बोद्ध धर्म के बारे में भारत के नव बोद्धों में अनेक भ्रांतियाँ है जिनका समाधान अति आवश्यक है। बाबा साहब के बोद्ध धर्म ग्रहण करने के उपरांत उनके अनुयाइयों ने खासकर अनुसूचित जाति, जन जाति व पिछ्डा वर्ग ले लोगों ने आज तक लाखों करोड़ों की संख्या में बोद्ध धर्म ग्रहण किया है। इन नव बोद्धों को विभिन्न राजनैतिक दलों ने अपने स्वार्थवश सही जानकारी न देकर भ्रमित ही किया है और समाज में बैमनस्यता फैलाकर गुटबंदी को प्राश्रय दिया है। इससे बाबा साहब के मिशन को हासिल करने की राह में अड़चनें ही आई और उनके अनुयाइयों को नुकसान ही हुआ है। समाज में वर्ग स्ंघर्स का महोल बना तथा कहीं कहीं सामाजिक दुश्मनी भी पैदा हुई है।
बुद्ध शरण की राह में अग्रसर लोगों को उचित व सही मार्गदर्शन देकर उनकी राह आसान करना ही इसका उद्देश्य है। इसमे मेरे द्वारा लिखित कुछ कविताओं का भी समावेश किया गया है। परन्तु इसमें मेरा कुछ भी नहीं है जो कुछ है वह बाबा सहब की कृपा का प्रसाद तथा भगवान बुद्ध का वरदान ही है, किन्तु अगर कहीं कोई गलत बात लगे तो वह गलती मेरी ही होगी जिसके लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूँ। पाठकगण अपने विचारों से मुझे अवगत करने की कृपा करें जिससे भविष्य में इसे सुधारकर और उन्नत रूप में प्रस्तुत किया जा सके।
यह पुस्तक मेरी तरुण अवस्था में लिखी गयी कविताओं का संकलन है। कुछ कविताओं में समाज की उस अवस्था का वर्णन है जिससे एक बड़ा समाज पीड़ित रहा है। वहीं कुछ कविताओं का संबंध सामाजिक ताने
यह पुस्तक मेरी तरुण अवस्था में लिखी गयी कविताओं का संकलन है। कुछ कविताओं में समाज की उस अवस्था का वर्णन है जिससे एक बड़ा समाज पीड़ित रहा है। वहीं कुछ कविताओं का संबंध सामाजिक ताने बने को प्रदर्शित करता है।
दलित राजनीति के उभरते हुये अवसर पर उससे समाज पर पड़ने वाले प्रभाव का दर्शन भी होता है। वहीं इस बात पर ज़ोर दिया जाना चाहिए की राष्ट्र और राष्ट्रहित सर्वोपरि है।
हास्य रस से भरपूर कुछ कुंडलियों के माध्यम से व्यंग वाण चलाकर भी सामाजिक स्तिथियों का भी समावेश करने की कोशिश की गयी है।
इस पुस्तक की कविताओं में मेरे ही विचार हैं और इसे व्यंग की द्रष्टि से ही देखा’ जाय, किसी की भवनयों को आहित करना इसका उद्देश्य नहीं है।
अगर फिर भी किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचती है तो मैं क्षमाँ प्रार्थी हूँ, आशा है पाठक गण उदारता दिखते हुये जहां कुछ कमियाँ हैं बताएँगे जिससे उसे सुधारा जा सके।
बहुत से लोगों के लिए कृष्णअनुसंधान अथवा भगवान से साक्षात्कार विषय कुछ नया हो सकता है किन्तु जब से मानव इस धरती पर आया है और मानव सभ्यता कि उत्पत्ति हुई है, बुद्धि का विकास हुआ है,
बहुत से लोगों के लिए कृष्णअनुसंधान अथवा भगवान से साक्षात्कार विषय कुछ नया हो सकता है किन्तु जब से मानव इस धरती पर आया है और मानव सभ्यता कि उत्पत्ति हुई है, बुद्धि का विकास हुआ है, मानव मन में यह जिज्ञासा रही है कि हम संसार में कैसे आए है। कहाँ से आए हैं, वह कौन है जिसने हमें पैदा किया है।
कृष्णअनुसंधान अथवा भगवान से साक्षात्कार पर किया गया कार्य एक पुस्तक के रूप में प्रस्तुत है, इसमे मेरे द्वारा लिखित कुछ कविताओं का भी समावेश किया गया है। परन्तु इसमें मेरा कुछ भी नहीं है जो कुछ है वह गुरु कृपा का प्रसाद तथा भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद ही है, किन्तु अगर कहीं कोई गलत बात लगे तो वह गलती मेरी ही होगी जिसके लिए में क्षमा प्रार्थी हूँ। पाठकगण अपने विचारों से मुझे अवगत करने की कृपा करें जिससे भविष्य में इसे सुधारकर और उन्नत रूप में प्रस्तुत किया जा सके।
हिन्दू धर्म में व्याप्त बुराइयों के कारण हिन्दू धनाद्य वर्ग ने अपने स्वार्थवश हिन्दू धर्म के ही एक बड़े समूह को जातिवाद में बाँटकर उनकी जिंदगी गुलामों से भी बदकर कर दी थी। उस बड़े
हिन्दू धर्म में व्याप्त बुराइयों के कारण हिन्दू धनाद्य वर्ग ने अपने स्वार्थवश हिन्दू धर्म के ही एक बड़े समूह को जातिवाद में बाँटकर उनकी जिंदगी गुलामों से भी बदकर कर दी थी। उस बड़े वर्ग को भी बांटो और राज करो की रणनीति अपनाते हुये उस गुलाम वर्ग में भी दो प्रकार का व्यवहार किया गया।
इन शूद्रों के साथ गुलामी का व्यवहार कर इनसे मुफ्त श्रम करवाकर भूखा नंगा रहने पर विवश किया जाता था जिससे यह वर्ग सिर ऊंचा करके विद्रोह न कर सके। इनकी बस्तियां भी उच्च वर्ग से अलग दूर बसाई जाती थी और इनके पानी पीने के लिए कूए भी अलग होते थे।
इस प्रकार के असंख्य शूद्र गुलामी के उदाहरण पुरातन इतिहास में भरे पड़े है जिसमें असहाय शूद्र वर्ग छूआछूत भरी गुलामों की जिंदगी जीने को जीने को मजबूर था। जिसको दूर करने की कोशिश ज्योतिवाफूले, पेरियार रामास्वामी, संत शिरोमणि रविदास महाराज व संत कबीर ने की थी। किन्तु उनकी समाज सुधार की कोशिश पूरी तरह सफल नहीं होने दी गयी।
लेकिन बालक भीम ने उन भीषण परिस्थितियों में भी आगे वड़कर शिक्षा की उन उचाईयों को प्राप्त किया जिसे विश्व में आज तक कोई भी प्राप्त नहीं कर सका है। बाद में उन्हें बाबा साहब डा॰ भीम राव अंबेडकर के रूप में सम्मान दिया गया। वह भारत के प्रथम कानून मंत्री बने तथा भारत का संविधान लिखने का दायित्व भी उन्हें ही सौंपा गया.
बाबा साहब डा॰ भीम राव अंबेडकर ने जीवन भर गुलाम शूद्रों को आज़ाद करने हेतु संघर्ष किया जिसमें वह काफी हद तक सफल भी हुये जिस कारण वह शोषित के भगवान के रूप में संसार के सामने आए।
भारतवर्ष के संदर्भ में आरक्षण एक गूण विषय है जिसके अंतर्गत अनेक प्रकार के आरक्षण आते हैं, जैसे राजनेटिक आरक्षण, सामाजिक आरक्षण, आर्थिक आरक्षण, न्यायायिक आरक्षण, रक्षा सेवाओं मे
भारतवर्ष के संदर्भ में आरक्षण एक गूण विषय है जिसके अंतर्गत अनेक प्रकार के आरक्षण आते हैं, जैसे राजनेटिक आरक्षण, सामाजिक आरक्षण, आर्थिक आरक्षण, न्यायायिक आरक्षण, रक्षा सेवाओं में आरक्षण, व्यावसायिक आरक्षण तथा सरकारी व प्राइवेट नौकरियों में आरक्षण आदि।
भारतवर्ष में सदियों से आरक्षण का वोलवाला रहा है, जिसमें जातिगत व वर्णगत आरक्ष्ण को ही अधिक महत्व दिया गया है। सनातन हिन्दू काल से कभी भी आर्थिक आधार आरक्षण का विषय नहीं रहा है बल्कि सामाजिक सम्मान ही आरक्षण का विषय रहा है।
जातिगत व वर्णगत आरक्षण के कारण भारत को वर्षों गुलामी की जंजीरों से बांध कर रखा गया। जिस समय भारत को सोने की चिड़िया का काल कहा जाता है उस समय भी आरक्षण के आधार पर बोद्धिक संपदा पर अधिकार ब्रहमण वर्ग को ही था किन्तु ब्रहमण वर्ग भी विभिन्न जतियों और उपजातियों में बटा हुआ था, इस कारण किसी बात पर एक मत होना असंभव था क्योंकि सभी गुटों के अपने अपने निजी स्वार्थ थे।
मेरा मानना है कि सभी प्रकार का आरक्षण समाप्त कर दिया जाय और नए सिरे से सभी जातियों को उनकी आबादी के प्रतिशत के हिसाब से नौकरियो मे तथा राजनैतिक भागीदारी में आरक्षण की सीमा निश्चित कर दी जाए फिर उसी अनुपात में चाहे सामाजिक आधार् हो, आर्थिक आधार अथवा किसी भी आधार पर उसी जाति के हिस्से में से बटबारा कर दिया जाए , इससे सभी झगङे स्वतः समाप्त हो जायेंगे I
इस पुस्तक में सामाजिक न्याय का प्रथम सोपान “आरक्षण” के मूल पहलुओं पर विचार विमर्श कर उन पर प्रकाश डाला गया है। आशा है पाठकगण उससे सहमत होंगे और अपना समर्थन देंगे। किसी भी सुझाव का स्वागत किया जाएगा। पाठकगण अपने सुझावों से मुझे अवगत करने की कृपा करें जिससे आगामी प्रकाशनौ में सुधार कर प्रस्तुत किया जा सके।
Are you sure you want to close this?
You might lose all unsaved changes.
The items in your Cart will be deleted, click ok to proceed.