वैसे तो भारत में खासकर हिन्दू समाज में जातिवाद रूपी कोड़ सदियों पुराना है और सदियों से शूद्र समाज को इसका डंक झेलना पड़ा है। सदियों से पीड़ित, शोषित और गुलामी जंजीरों से जकड़े इस बहुसंख्यक समुदाय की रोग मुक्ति का कॉपी समुचित इलाज़ नहीं मिल पा रहा था।
कुछ समाज सुधारकों ने इनकी पीड़ा को महसूस किया और इनकी मुक्ति का प्रयास भी किया किन्तु वह इसमें आंशिक रूप से ही सफल हो पाये। इसमें मुख्यतः संत कबीर, संतशिरोमणि रेदास, ज्योतिबा फुले, रामास्वामी नाइकर आदि का नाम उल्लेखनीय है।
किन्तु इस बीमारी की असली चिकित्सा तो विश्व रत्न बाबा साहब डा॰ भीम राव अंबेडकर ने ही की, तत्पशचात उनके उत्तराधिकारी मान्यवर कसीराम ने इस अछूत समाज को गुलामी से निकालकर शासक वर्ग में स्थान दिलाया।
यहाँ किसी समुदाय की बुराई करना मेरा उद्देश्य बिलकुल नहीं है परंतु यह प्रस्तुत करना है कि अभी भी समय है कि वह अपने सुधार लाकर सदियों से पीड़ित, शोषित और गुलामी जंजीरों से जकड़े इस बहुसंख्यक समुदाय को अपनाकर ससम्मान अपने गले लगाकर अपनी उदारता का परिचय दे।
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