‘आशा, विश्वास और प्रत्याशा’ में ब्रिगेडियर जेम्स अपनी भारतीय सेना के साथ 37 वर्षों की अद्वितीय यात्रा का वर्णन करते हैं। उनके अनुभवों में महत्वपूर्ण घटनाएँ शामिल हैं, जैसे प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद की स्थिति और भोपाल गैस त्रासदी। उन्होंने देश के कठिन इलाकों में सैन्य इकाइयों को महत्वपूर्ण इंजीनियरिंग सहायता प्रदान की। लेकिन इन वीरता की कहानियों के बीच, उनका कैंसर के खिलाफ संघर्ष भी शामिल है — एक ऐसा युद्ध जो किसी भी मोर्चे पर लड़ी गई लड़ाई से कम नहीं था।
पुस्तक की प्रस्तावना (अंग्रेजी संस्करण):
‘आशा, विश्वास और प्रत्याशा’ एक आत्मकथा की सीमाओं को पार करते हुए एक भावनात्मक कथा बन जाती है, जो वीर नेतृत्व, अडिग प्रेम, निरंतर आशा और गहरी आस्था का संगम है, और यह वैश्विक पाठकों के दिलों को छूने के लिए तैयार है।
आर्कबिशप थॉमस थारयिल, आर्केपार्ची चांगानाचेरी, केरल, भारत।
यह आत्मकथा केवल एक व्यक्तिगत कहानी नहीं है; यह पाठकों के लिए एक प्रेरणा है, जो सहनशीलता और आशा का प्रतीक है। मैं पूरे दिल से इस किताब की सिफारिश करता हूँ, मुझे पूरा विश्वास है कि यह गहरे रूप से जुड़कर दिलों को छुएगी।
लेफ्टिनेंट जनरल डॉ. मोहन भंडारी, PVSM, AVSM*, DLitt, FIMA
ex-अध्यक्ष UKPSC, Ex-DGNCC, रक्षा मंत्रालय
Proceed from this book will be dedicated to helping cancer patients.
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