हरमन प्यारा जुझारी साथी, संवेदनशील शिक्षक, लड़ाकू नेता, सजग लेखक बुद्धिजीवि शख्सियत और लंबी चौड़ी कदकाट्ठी वाला योद्धा यों हमें छोड़ कर चला जाएगा इस बात का अनुमान 9 नवंबर की रात को किसी को भी नहीं था। 10 की सुबह जब जैसे ही रविन्द्र के चले जाने की खबर फैली तो सभी निशब्द, मूक और रोते-बिलखते शोकग्रस्त हो गए। दोस्तों की एक दुनिया ही उजड़ गयी। इस गम से बाहर निकलने में काफी वक्त निकल गया। कुछ सूझ ही नहीं रहा था क्या करें? परिवार, मित्रों, शिक्षकों और आंदोलनों में कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाले साथियों ने पारिवारिक कार्यक्रमों में अपने सुख-दुःख साझा किया। साथियों का आग्रह था कि प्रगतिशील संगठन मिलकर एक स्मृति सभा का आयोजन करें और साथी रविन्द्र के साथ बिताए समय को भी याद करें और कुछ ऐसा ठोस करें कि उनके विचार कदम और पहलकदमियां आगे चलें।
इस छोटी सी पुस्तिका में उनके व्यक्तित्व, आदर्शों, कार्यों को समेटना नामुमकीन है। लेकिन रविन्द्र स्मृति सभा में हम अपनी तरफ से एक भेंट उनके चाहने वालों को देना चाहते थे। जितने साथियों ने इतने कम समय में उनके बारे में अपनी स्मृतियां लिख कर भेजी हम उनका हार्दिक धन्यवाद करते हैं। आने वाले समय में, उनकी पहली बरसती तक हम कोशिश करेंगे कि इस पुस्तिका का विस्तार किया जाए। पुस्तिका के कवर, टाइपिंग, लेआउट में यूनिक्रिएशन्स पब्लिशर्स कुरुक्षेत्र की पूरी टीम का धन्यवाद। बहुत कम समय में उन्होंने इसको छपने लायक बनाया।