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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh PalAt Unicreations, we specialize in Digital Printing. From Book to Ebooks, web design to product photography, video advertisement to customized stationary and gift items, we pride ourselves on being a one-stop-shop for all your marketing needs. Each member of our team is passionate about crafting eye-catching, engaging content that will help your brand stand out from the competition. Contact us today to see how we can help grow your business! Mo. No 9050182156 https://theunicreationsRead More...
At Unicreations, we specialize in Digital Printing. From Book to Ebooks, web design to product photography, video advertisement to customized stationary and gift items, we pride ourselves on being a one-stop-shop for all your marketing needs.
Each member of our team is passionate about crafting eye-catching, engaging content that will help your brand stand out from the competition. Contact us today to see how we can help grow your business!
Mo. No 9050182156
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साबिर अली साबिर की रचनाएं संवेदना और शिल्प दोनों ही दृष्टियों से महत्वपूर्ण हैं। संवेदना की बात करें तो साबिर अन्य अनेक सूफी-संत कवियों की तरह सच की तलाश में लगे हैं। सत्य का शोध
साबिर अली साबिर की रचनाएं संवेदना और शिल्प दोनों ही दृष्टियों से महत्वपूर्ण हैं। संवेदना की बात करें तो साबिर अन्य अनेक सूफी-संत कवियों की तरह सच की तलाश में लगे हैं। सत्य का शोध करने के लिए तमाम तरह के झूठ व प्रपंच को पहचानते हैं। उसे बहुत बेबाकी के साथ अभिव्यक्त करते हुए उसका खंडन करते हैं। हिन्दी संत कवि कबीर की तरह का उनका मिजाज है, जो झूठ और पाखंड के प्रचारकों को बुरी तरह लताड़ता है। साबिर को जो दिखाई देता है, वे उसे कहने में जरा भी संकोच नहीं करते। वे अपनी कविता ‘झूठ’ में कहते हैं- ‘सच अकेला एक है, गाँव है झूठ का।’ सच और झूठ की जंग में साबिर अकेले सच के साथ मजबूती के साथ खड़े होते हैं। इकबाल ने कभी कहा था-‘मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना।’ लेकिन वक्त ने मजहब के नए-नए रंग देखे हैं। धर्म ने आज जो रूप ले लिया है, अनुवादित पुस्तक में एक कविता है ‘मजहब’, लेकिन इसको लिखने में पूरे ग्यारह साल लगे। वह एक ही शब्द में वे युगों का सच कह जाते हैं। कविता में वे मजहब को ‘माफिया’ की संज्ञा देते हुए एक शब्द में ही बहुत कुछ कह जाते हैं। क्योंकि मजहब के नाम पर कुछ लोगों को पाप कर्म करने का लाइसेंस मिल गया है। इसी के नाम पर वे दूसरे धर्म के लोगों को इन्सान भी मानने को तैयार नहीं है। अपनी धार्मिकता के दंभ का ही नया रूप दिखाते हुए वे मॉब लिंचिंग करते हैं। इसी के नाम पर वे दंगा करते हैं। कवि का कहना है कि इस तरह की घटनाओं से ऐसा नहीं कि कुछ हो नहीं रहा है। धर्म का नाम लेकर तरह-तरह के काम करने वाले लोगों का सच उजागर हो रहा है। वे कहते हैं- ‘कौन क्या है, नंगा हुआ है।’ एक अन्य कविता में वे साहस के साथ उन पंडत, फादर और मुल्लों को ललकारते हैं, जोकि भगवान के नाम पर इन्सानों को मारते हैं।
गुलामगिरी...
गुलामगिरी में 16 अध्याय हैं और यह किताब संवादात्मक शैली में लिखी गयी है। पुस्तक में धोंडीराव और जोतिबा एक दूसरे से बात चीत करते हैं। सवाल जवाब करते हैं और भारत के इ
गुलामगिरी...
गुलामगिरी में 16 अध्याय हैं और यह किताब संवादात्मक शैली में लिखी गयी है। पुस्तक में धोंडीराव और जोतिबा एक दूसरे से बात चीत करते हैं। सवाल जवाब करते हैं और भारत के इतिहास में जा घुसते हैं।
सामंतवाद पर आधारित ब्राह्मणवादी जातिवाद ने आर्थिक-राजनीतिक-सामाजिक रूप से गुलाम बनाने के लिए जहां एक तरह भयंकर दमन, हिंसा का सहारा लिया वहीं पर इस को टिकाए रखने के लिए, जातिवाद का वैचारिक और मानसिक आधार कायम करने के लिए, उसके जनमानस में अंदर तक बैठा देने के लिए धार्मिक रीति-रिवाजों, कर्मकांडों, संहिताओं, वेद और पुराणों का सहारा लिया है। मनुष्य के दिमाग में बिठा दिया गया है कि वह गुलामी ढोने के लिए ही पैदा हुए हैं। ब्राह्मवादी दर्शनशास्त्र पुनर्जन्म और कर्म के सिद्धांत के बल पर मानसिक गुलामी को थोपे हुए है। इसी की और जोतिबा फुले इशारा करते हुए कहते हैं कि इन झूठे, कृत्रिम ग्रंथों के कारण ही शूद्रों-अतिशूद्रों को गुलाम बनाया गया है।
इस पुस्तक ने दक्षिण, पश्चिम भारत में अपने समय में क्रांतिकारी भूमिका निभाई और कई जातिविरोधी आंदोलनों का आधार बनी है। आज हिंदी पट्टी को भी ऐसे साहित्य की जरूरत रही है। हिंदी पट्टी में भक्तिकाल के बाद कोई ऐसा साहित्य नहीं रचा गया जो जातिवाद के खिलाफ किसी आंदोलन का आधार बन सके। हमें देश की विभिन्न भाषाओं में मौजूद जातिवाद विरोधी साहित्य के हिंदी अनुवाद की बेहद जरूरत है।
gagandeep singh
यह किताब एक बहुत बड़ी बहस के डॉक्युमेंटेशन का अनूठा प्रयास है। इस सम्वेदन शील विषय पर संकलन कर्ता की अपनी दृष्टि काफी स्पष्ट दिखती है। चूँकि वे हिमाचल से बाहर के हैं, तो उन की सीमा
यह किताब एक बहुत बड़ी बहस के डॉक्युमेंटेशन का अनूठा प्रयास है। इस सम्वेदन शील विषय पर संकलन कर्ता की अपनी दृष्टि काफी स्पष्ट दिखती है। चूँकि वे हिमाचल से बाहर के हैं, तो उन की सीमाएं भी साफ साफ दिख रहीं हैं और शक्तियाँ भी। सीमाएं इस अर्थ में कि इस ऐतिहासिक बहस का कुछ पक्ष इन से छूट गया लगता है। आठवें नवें दशक में भी हिमाचल की पत्र पत्रिकाओं में भाषा पर गम्भीर बहस हुई थी। मैं समझता हूँ कि दैनिक जनसत्ता तथा अनूप सेठी की पत्रिका हिमाचल मित्र में हुई बहस के कुछ अंश यहाँ ज़रूर जाने चाहिए थे। शक्तियाँ इस अर्थ में कि इस पूरे काम में भावुकता के स्थान पर तार्किकता से काम लिया गया है। एक वांछित तटस्थता भी निभाई गई है, जो काम एक गैर हिमाचली ही कर सकता था। स्थानीय लेखक ऐसे मामलों में पूर्वाग्रह, भावुकता, और राजनीतिक पक्षधरता से शायद ही बचा रह पाता। खैर, यह पक्षधरता भी एक स्तर पर ज़रूरी भी है। हम सब अपनी-अपनी मातृभाषा के अनूठेपन, सौदर्य और ताक़त को ले कर बेहद पज़ेसिव और भावुक होते हैं। आखिरकार भाषा आप की सामूहिक व सामुदायिक स्मृतियों, अस्मिता एवम सांस्कृतिक वजूद का सब से महत्वपूर्ण सम्वाहक होती है।
साथ ही साथ यह बता देना ज़रूरी है कि इस किताब में लिखी हर बात से सहमत नहीं हुआ जा सकता। निस्सन्देह यह एक ज़रूरी बहस है और इस किताब ने हिमाचल में भाषा के यक्ष प्रश्न को एक बार फिर से खड़ा करने का तथा इस पुरानी बहस को आगे बढ़ाने का सराहनीय दुस्साहस किया है। गगन दीप सिंह को ढेर सारी शुभ कामनाएं!
अजेय
16.01.2024
पटियाला, उत्तर क्षेत्र भाषा केन्द्र
तीसरे संस्करण के बारे में दो शब्द
सुकेत रियासत के विद्रोह को लगातार पाठकों का सहयोग मिल रहा है। जितनी आशा थी उससे कहीं ज्यादा प्यार इस पुस्तक को मिला। 2021 सितंबर में इसका पहला
तीसरे संस्करण के बारे में दो शब्द
सुकेत रियासत के विद्रोह को लगातार पाठकों का सहयोग मिल रहा है। जितनी आशा थी उससे कहीं ज्यादा प्यार इस पुस्तक को मिला। 2021 सितंबर में इसका पहला संस्करण प्रकाशित हुआ था। अब जनवरी 2024 में इसका तीसरा संस्करण प्रकाशित करते हुए हमें बहुत खुशी हो रही है।
हिमचाल प्रदेश के संक्षिप्त इतिहास नामक लेख में कुछ जानकारी और जोड़ी गयी है। जल्द ही हिमाचल के इतिहास पर किये गये अध्ययन को पाठकों के सामने विस्तृत रुप से रखने की योजना है।
इस पुस्तिका को खास बनाते हैं तुलसी राम गुप्ता के लेख जोकि सुकेत रियासत में हुए अंतिम विद्रोह के दौरान बालक थे और उनके पिता दिला राम महाजन सुकेत रियासत की करसोग तहसील के रियासती प्रजामंडल संगठन के अध्यक्ष थे। उनको कई बार राजा के गुस्से का शिकार होना पड़ा। तुलसी राम गुप्ता ने अपने पिता जी से सुन-सुन कर अपनी डायरी में कई बाते नोट की थी जो कि प्रजा मंडल आंदोलन के बारे में जानकारी का प्रथम स्रोत है। जब हम उनके पास प्रजा मंडल आंदोलन पर चर्चा करने गये तो उन्होंने चर्चा के बाद पहली बार में ही उन्होंने हमें अपनी पांडुलिपी सौंप दी, और यह भी दुख व्यक्त किया कि कई पत्रकार उनके लेख ले गये और अपने नाम से छपवा लिए।
पुस्तिका में सुकेत के प्राचीन इतिहास से लेकर भारत में विलय और भूमि सुधारों तक काल की घटनाओं को समेटने की कोशिश की गई है।
गगनदीप सिंह
करसोग
जनवरी 2024
डॉ.ओमप्रकाश ग्रेवाल बदलाव के लिए प्रयासरत सक्रिय बुद्धिजीवी थे। हरियाणा के साहित्यिक-सांस्कृतिक परिवेश को उन्होंने गहरे से प्रभावित किया। रचनाकारों-संस्कृतिकर्मियों से हम
डॉ.ओमप्रकाश ग्रेवाल बदलाव के लिए प्रयासरत सक्रिय बुद्धिजीवी थे। हरियाणा के साहित्यिक-सांस्कृतिक परिवेश को उन्होंने गहरे से प्रभावित किया। रचनाकारों-संस्कृतिकर्मियों से हमेशा विमर्श में रहे। उनकी उपस्थिति किसी भी साहित्यिक संगोष्ठी-सेमिनार को बौद्धिक शिखर पर पहुंचा देती थी। डॉ.ग्रेवाल मार्गदर्शक, दोस्त व गंभीर पाठक-आलोचक के रूप में हमेशा ही उपलब्ध रहते थे। उनकी प्रखर बौद्धिकता, गहरे सामाजिक सरोकार, उदार दृष्टि, संवेदनशीलता, सदाश्यता, आदर्श-भावना, विनम्रता, सादगी और मिलनसारिता के समावेश से निर्मित व्यक्तित्व ने बहुतों को गहरे से प्रभावित किया।
डॉ. सुभाष चंद्र
डॉ. ओम प्रकाश ग्रेवाल एक बहुआयामी व्यक्तित्व के मालिक थे। वह हिन्दी साहित्य में एक स्थापित आलोचक, संवेदनशील चिन्तक, जनवादी लेखक संघ के आन्दोलन से जुड़े एक महत्वपूर्ण सिपाही, एक प्रेरणादायक शिक्षक और मित्रों के मित्र थे।
डी.आर.चौधरी
हरमन प्यारा जुझारी साथी, संवेदनशील शिक्षक, लड़ाकू नेता, सजग लेखक बुद्धिजीवि शख्सियत और लंबी चौड़ी कदकाट्ठी वाला योद्धा यों हमें छोड़ कर चला जाएगा इस बात का अनुमान 9 नवंबर की रात
हरमन प्यारा जुझारी साथी, संवेदनशील शिक्षक, लड़ाकू नेता, सजग लेखक बुद्धिजीवि शख्सियत और लंबी चौड़ी कदकाट्ठी वाला योद्धा यों हमें छोड़ कर चला जाएगा इस बात का अनुमान 9 नवंबर की रात को किसी को भी नहीं था। 10 की सुबह जब जैसे ही रविन्द्र के चले जाने की खबर फैली तो सभी निशब्द, मूक और रोते-बिलखते शोकग्रस्त हो गए। दोस्तों की एक दुनिया ही उजड़ गयी। इस गम से बाहर निकलने में काफी वक्त निकल गया। कुछ सूझ ही नहीं रहा था क्या करें? परिवार, मित्रों, शिक्षकों और आंदोलनों में कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाले साथियों ने पारिवारिक कार्यक्रमों में अपने सुख-दुःख साझा किया। साथियों का आग्रह था कि प्रगतिशील संगठन मिलकर एक स्मृति सभा का आयोजन करें और साथी रविन्द्र के साथ बिताए समय को भी याद करें और कुछ ऐसा ठोस करें कि उनके विचार कदम और पहलकदमियां आगे चलें।
इस छोटी सी पुस्तिका में उनके व्यक्तित्व, आदर्शों, कार्यों को समेटना नामुमकीन है। लेकिन रविन्द्र स्मृति सभा में हम अपनी तरफ से एक भेंट उनके चाहने वालों को देना चाहते थे। जितने साथियों ने इतने कम समय में उनके बारे में अपनी स्मृतियां लिख कर भेजी हम उनका हार्दिक धन्यवाद करते हैं। आने वाले समय में, उनकी पहली बरसती तक हम कोशिश करेंगे कि इस पुस्तिका का विस्तार किया जाए। पुस्तिका के कवर, टाइपिंग, लेआउट में यूनिक्रिएशन्स पब्लिशर्स कुरुक्षेत्र की पूरी टीम का धन्यवाद। बहुत कम समय में उन्होंने इसको छपने लायक बनाया।
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