मानव मात्र को अपने व्यक्तिगत कल्याण एवं सुन्दर समाज के निर्माण की प्रेरणा प्रदान करने वाला साहित्य ही वस्तुतः सत्साहित्य है। आज अनेकों धार्मिक एवं आध्यात्मिक ग्रंथों के होते हुए भी ऐसे साहित्य की कमी प्रतीत हो रही है, जो वास्तव में मानव को मानव बनाने में समर्थ हो। 'साधुवेश में एक पथिक' द्वारा लिखित साहित्य मानव को आत्मनिरीक्षण द्वारा अपने दोषों के दर्शन, दृढ़ संकल्प द्वारा निज दोषों के त्याग, सत्संग-स्वाध्याय द्वारा सद्गुणों के विकास एवं सद्विवेक का प्रकाश प्राप्त कर, सेवा-त्याग-प्रेम के सन्मार्ग पर चलकर शाश्वत शांति. जीवनमुक्ति एवं भगवद् भक्ति रूपी परम परमार्थ को प्राप्त करने की अनुपम, अलौकिक एवं दिव्य प्रेरणा प्रदान करता है। स्वामी पथिक जी महाराज द्वारा लिखित इन (लगभग 70) पुस्तकों में केवल विभिन्न सद्ग्रंथों के स्वाध्याय का सार ही नहीं, वरन् अपने संपूर्ण जीवन की कठिन, एकांतिक तपः साधना एवं स्वानुभव जनित दिव्य ज्ञानामृत का अक्षय स्रोत समाविष्ट है। सामान्य मूल्य पर उपलब्ध इन बहुमूल्य पुस्तकों के मनAन-चिन्तन एवं अनुसरण से श्रद्धावान-मनीषी पाठकों का सर्वांगीण उत्थान एवं कल्याण अवश्यमेव होगा, ऐसा हमारा दृढ़ विश्वास है।