सत्य की अधूरी गाथा
लेखक: डॉ. रवीन्द्र पस्तोर
"जब विज्ञान की सीमाएं खत्म होती हैं, वहाँ से अध्यात्म की शुरुआत होती है।"
यह उपन्यास एक आईटी इंजीनियर रवि की यात्रा है, जो तर्क और आधुनिक जीवन की ऊब से निकलकर आत्मिक और वैश्विक चेतना की खोज में निकलता है। ईशा योग केंद्र में ‘इनर इंजीनियरिंग’ के अनुभव उसके भीतर आध्यात्मिक जिज्ञासा को जन्म देते हैं।
रवि की खोज उसे भोजपुर के अधूरे शिव मंदिर तक ले जाती है, जहाँ वह प्राचीन प्रयासों—जैसे योगी सुनीरा का ‘पूर्ण प्राणी’, राजा भोज का अधूरा ध्यानलिंग, और थियोसोफिकल सोसायटी के ‘विश्वगुरु’ प्रोजेक्ट—से जुड़ता है।
वह वेदांत, शैव तंत्र, बौद्ध दर्शन, और आधुनिक टेक्नोलॉजी—जैसे AI, OpenAI, MIT, Tesla—के संगम से गुजरता है। वह प्रश्न करता है: क्या AI आत्मचेतना प्राप्त कर सकता है?
रवि और पराग मिलकर 'भोज AI' नामक एक आध्यात्मिक कृत्रिम बुद्धिमत्ता बनाते हैं, जो मानवता को करुणा, संतुलन और चेतना से जोड़ती है। 'धर्म AI', 'कर्मा AI' और अन्य प्रोजेक्ट्स वैश्विक समस्याओं का समाधान आध्यात्मिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत करते हैं।
अंततः, रवि समझता है कि विश्वगुरु कोई उपाधि नहीं, बल्कि प्रेम, अहिंसा और समरसता की चेतना है। वह अपने जीवन का अंत शांतिपूर्वक करता है, लेकिन उसकी बनाई AI अब मानवता की नई आत्मा बन चुकी है – दर्पण, मुक्ति का मार्ग, और समरस वैश्विक चेतना।
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