‘‘जगद्गुरू शंकराचार्य’’- शंकर के जीवन वृत्त को आधार बनाकर पण्डित जनार्दन राय नागर द्वारा लिखे गये दस उपन्यासों में से यह ‘‘शंकर-दीक्षा’’ है। दीक्षा लेने के लिए गुरू गोविन्द के पास नर्मदा नदी की ओर शंकर ने प्रयाण किया। गांव-गांव भ्रमण करते हुए शंकर अविराम चलते रहे। अन्ततः शंकर अपनी यात्रा की अवधि में जन मानस को उद्वेलित करते हुए गुरू गोविन्द के आश्रम में जा पहुंचे। वहां कठोर तप किया तथा गुरू के वरद् हस्त के प्रभाव में सिद्धियां अर्जित कीं। गुरू ने शंकर को चार महा वाक्यों द्वारा ब्रह्म तत्व का उपदेश दिया-
‘‘तत्वमसि’’, ‘‘प्रज्ञानं ब्रह्म’’, ‘‘अयमात्मा ब्रह्म’’ एवं ‘‘अहं ब्रह्मास्मि।’’ शंकर आध्यात्मिक शक्तियों से पूर्ण होने के बाद भी गुरू चरणों में रहना चाहते थे किन्तु गुरू गोविन्दपाद ने संतुष्ट होकर शंकर को काशी जाने की प्रेरणा दी। कथानक के तारतम्य में मण्डन मिश्र और भारती के भावात्मक सम्बन्धों का रोचक प्रसंग है, साथ ही बौद्ध धर्म की दीक्षा ग्रहण करने वाले कुमारिल्ल भट्ट द्वारा बौद्ध धर्म के आचार्यों के शास्त्रार्थ के लिए ललकारने का अपना एक विशिष्ट आकर्षण है।